अपने आस-पास गंदगी देखकर लोग नाक-भौं सिकोड़कर निकल जाते हैं. शायद नगरपालिका को दो-चार गाली भी दे देते हों. लेकिन उसे साफ़ करने के लिए कोई आगे नहीं आता है. वहीं समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं, ख़ुद आगे बढ़कर अपने आस-पास के वातावरण को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए आगे आते हैं.  

आंध्र प्रदेश की रहने वाली तेजस्वी पोदपती(Tejaswi Podapati) भी उन्हीं में से एक हैं. तेजस्वी जब बी-टेक कर रही थीं, तब उन्होंने अख़बार में एक ख़बर पढ़ी की उनका गृहनगर ओंगोल राज्य का तीसरा सबसे पिछड़ा इलाका. ये ख़बर पढ़ तेजस्वी को बहुत बुरा लगा, तभी उन्होंने ठान लिया कि वो अपने शहर के लिए कुछ करेंगी. 

इसके बाद उन्होंने सोचा क्यों न अपने शहर को पोस्टर मुक्त बनाकर स्वच्छ किया जाए. इरादा नेक था, लेकिन इसे यथार्थ बनाने में उन्हें काफ़ी मेहनत करनी पड़ी.  

तेजस्वी ने द लॉजिकल इंडियन से कहा ‘मैं सरकार को दोषी ठहराने कि बजाए मैं स्वयं कुछ करना चाहती थी. शहर की गंदगी उसका नाम बदनाम कर रही थी. इसी बीच मैंने The Ugly Indian Initiative के बारे में पढ़ा, जो बेंगलुरू की गलियों को साफ़ करने में जुटे थे. मैंने सोचा क्यों न इसी तरह हम अपने शहर को भी साफ़ करें.’ 

इसके बाद उन्होंने ये आइडिया अपने पिता और दोस्तों से शेयर किया. पिता ने साथ दिया, जबकि मां ने कहा तुम लड़की होकर शहर कि सफ़ाई करती फिरोगी तो लोग क्या कहेंगे? 

दोस्तों में 80 फ़ीसदी ने उनका साथ देने से मना कर दिया. लेकिन तेजस्वी के पिता ने उनका हौसला बढ़ाते हुए कहा कि 20 प्रतिशत लोग तुम्हारे साथ हैं. तुम्हें आगे बढ़ना चाहिए और हुआ भी ऐसा ही.

ऐसे हुई भूमि फ़ाउंडेशन की शुरूआत 

15 अक्टूबर 2015 को डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के जन्मदिन पर उन्होंने अपने इस मिशन की शुरूआत की. उनके साथ 10 स्वयंसेवक थे जिन्होंने मिलकर ओंगोल के एक पार्क की सफ़ाई की. और इस तरह उनके भूमी फ़ाउंडेशन की शुरूआत हुई. 

प्रारंभ में लोगों ने उनका और उनके फ़ाउंडेशन के लोगों को मज़ाक उड़ाया. लेकिन उन्होंने इसकी परवाह किए बिना अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित किया. उनके स्वयंसेवकों ने मिलकर ओंगोल की गलियों, दीवारों और पेड़ों पर लगे पोस्टर साफ़ करने जारी रखे. उन्होंने ‘One Goal, Clean Ongole’ का नारा दिया और देखते ही देखते ओंगोल की सूरत बदल गई. 

330 किलोमीटर का सफ़र कर हर वीकेंड पर ओंगोल पहुंचती थीं 

तेजस्वी एक इंज़ीनियर हैं, जो हैदराबाद में काम करती हैं. वो हर वीकेंड 330 किलोमीटर का सफ़र कर इस काम के लिए ओंगोल आती थीं. वीकेंड के दो दिन वो अपने शहर को साफ़ करने में ख़र्च करती थीं. उनके संस्थान ने अब तक शहर के 125 गंदे स्पॉट्स को साफ़-सुथरा कर दिया है. 

यही नहीं जिस संस्थान में महज 10 ही लोग थे उसके वॉलंटियर्स की संख्या भी 3500 से अधिक हो गई है. इसमें शहर के 25 वर्ष से कम उम्र के युवा शामिल हैं. इस शहर की सूरत बदलने के बाद अब वो हैदराबाद की गलियों को साफ़ करने में जुटी हैं. 

अपनी 70 प्रतिशत सैलरी ख़र्च कर देती हैं

हैदराबाद में वो अब तक 80 ऐसे गंदे स्पॉट्स का काया कल्प कर चुकी हैं. इस काम में वो किसी से वित्तीय सहायता भी नहीं लेतीं. इसके लिए वो अपनी 70 फ़ीसदी कमाई इसी में लगा देती हैं. कई बार उनके पिता भी शहर को साफ़ करने वाले इस काम में मदद करते हैं.

अच्छी बात ये है कि इनके वॉलंटियर्स किसी जगह को तब तक साफ़ करते रहते हैं, जब तक वो पूरी तरह क्लीन नहीं हो जाती. लोग उनकी साफ़ की गई जगह पर फिर से पोस्टर लगा जाते हैं. लेकिन वो फिर उसे साफ़ कर देते हैं. अपने लक्ष्य कर प्रति ये समर्पण ही तेजस्वी को इस काम जुटे रहने की प्रेरणा देता है.

अगर हर शहर के नागरिक तेजस्वी की तरह सफ़ाई को लेकर सजग हो जांए, तो देश की काया पलट सकती है.