इस दुनिया में बहुत सी भाषाएं बोली जाती हैं. इनमें से कुछ लुप्त हो चुकीं हैं, तो कुछ लुप्त होने की कगार पर हैं. वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इन लुप्त होती भाषाओं को जीवित रखने का हर संभव प्रयास करने के लिए तत्पर हैं. इन्हीं में से एक है बंगाल की बार फ़ैमिली जो इंग्लिश के बढ़ते वर्चस्व वाले दौर में संस्कृत भाषा में बातचीत करती नज़र आती है.

पश्चिम बंगाल के बशीरहाट टाउन में रहने वाली बार फ़ैमिली के फ़्लैट में आप जैसे ही दाखिल होंगे हैं, तो आपको बंगाली, इंग्लिश या फिर हिंदी में नहीं, बल्कि संस्कृत का इस्तेमाल होता नज़र आएगा. यहां प्रणब बार अपनी पत्नी मोमिता बार और दो बच्चों बेटी धृति और बेटे लछित के साथ रहते हैं. इस मिडिल क्लास फ़ैमिली में बच्चों से लेकर बड़े तक सभी सिर्फ़ और सिर्फ़ संस्कृत में ही बात करते हैं.

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हैरत की बात तो ये है कि मोमिता अपने पति से संस्कृत भाषा में ही लड़ती हैं. साथ ही उनके बच्चे भी आपस में एक-दूसरे से संस्कृत भाषा में बात करते हैं. इस परिवार का ये माहौल देखकर आप असमंजस में पड़ जाएंगे कि कहीं आप किसी दूसरे मुल्क में तो नहीं आ गए. लेकिन इनके लिए ये साधारण बात है.

प्रणब और मोमिता की शादी साल 2010 में हुई थी. दोनों की पहली मुलाकात साल 2006 में कॉलेज में हुई थी जहां प्रणब संस्कृत पढ़ाने आए थे. यहीं मोमिता पढ़ती थीं और दोनों को संस्कृत भाषा से बहुत लगाव था.

शादी के बाद दोनों ने डिसाइड किया था कि वो अपने बच्चों को संस्कृत में ही बोलना सिखाएंगे. यानि कि उनकी मातृ भाषा संस्कृत होगी ना कि बंगाली या फिर हिंदी. दोनों के घरवालों ने इसका विरोध किया, जिसके बाद ये पास में ही एक किराए के मकान में रहने लगे.

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वक़्त बीतता गया और इस कपल के दो बच्चे हुए. दोनों ही बच्चे आज के इस ज़माने में संस्कृत में बात करते बहुत ही सहज नज़र आते हैं. ऐसा नहीं है कि, इन्हें बंगाली नहीं आती, दोनों ही बच्चों को बंगाली भाषा का भी ज्ञान है. मगर अपने घर पर ये संस्कृत का ही इस्तेमाल करते हैं.

ये परिवार संस्कृत भाषा में बात करने के साथ ही संस्कृत साहित्य यानि के किताबें भी पढ़ता है. दोनों पति-पत्नी संस्कृत के टीचर हैं. आस-पास के लोग उनके इस कदम का विरोध करते हैं और कहते हैं कि ऐसे तो आपके बच्चे आधुनिक दुनिया से कट जाएंगे. तब ये गर्व के साथ कहते हैं कि संस्कृत हमारी सबसे प्राचीन भाषा है और हिंदी की जननी है. इसको म्यूजियम की बेजान भाषा बनाने से तो अच्छा है कि हम इसे जीवित रखने का प्रयास करें और इसकी शुरुआत हमने अपने घर से ही की है.

बार फैमिली जो कर रही है वो काबिल-ए-तारीफ़ है. उनके इस सराहनीय कदम के लिए हम इन्हें सलाम करते हैं. आशा है कि संस्कृत की शमा यू हीं जलती रहेगी. 

Source: hindustantimes