हमारे देश में लड़कियों को आज भी बोझ समझा जाता है. कई परिवारों में आज भी लड़कियों की भ्रूण में ही हत्या कर दी जाती है. इतने आंदोलन, स्कीम्स के बाद भी, आज भी कई जगह लड़की पैदा होते ही मार दी जाती है या फेंक दी जाती है.


वक़्त-बेवक़्त बच्चियों और महिलाओं ने अपने दम पर ये साबित किया है कि अगर उनको जीने दिया जाये तो वो दुनिया बदल सकती हैं.  

The Better India

मिलिये सुषमा वर्मा से 


7-8 साल की उम्र में जब हम गणित के मुश्किल सवाल हल करना शुरू ही किया था तब सुषमा ने 10वीं पास कर ली थी. 2010 में महज़ 10 साल की उम्र में उत्तर प्रदेश बोर्ड से 12वीं की पढ़ाई भी पूरी कर ली. 

13 साल की उम्र तक आते-आते सुष्मा ने माइक्रोबायलॉजी में लखनऊ विश्वविद्यालय से मास्टर्स डिग्री हासिल कर ली. सुषमा ने छलांग लगाना जारी रखा और महज़ 15 साल की उम्र में बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में सन् 2015 में PhD में दाखिला ले लिया! चौंक गये न? 

2016 में विश्वविद्यालय में हुए कॉन्वोकेशन में सुषमा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वर्ण पदक मिला. 

One India में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़, सुष्मा ने University Research Entrance Test में 7वां रैंक हासिल की थी. 

The Better India

जिस कॉलेज से पास किया पिता उसी में कर्मचारी 


एक रिपोर्ट के अनुसार, सुषमा ने जिस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था उसके पिता, तेज बहादुर उसी कॉलेज में सफ़ाईकर्मी थे. सुषमा की अकल्पनीय प्रतिभा और जीत को देखने के बाद बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति ने उन्हें सैनिटेशन सुपरवाइज़र बना दिया ताकि वो अपने परिवार का भरण-पोषण अच्छे से कर सकें. 

Times of India

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने की थी तारीफ़ 


सन् 2017 में 17 साल की उम्र में सुषमा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिली. रामनाथ कोविंद ने उसके लिए ‘Extraordinary’ शब्द का इस्तेमाल किया. अप्रैल 2017 में सुषमा को UGC का स्वामी विवेकानंद गर्ल चाइल्ड स्कॉलरशिप मिला. 

मेहनत और क़ाबिलियत से सुषमा ने जो कर दिखाया उसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है.