हमारे देश में VIP कल्चर से हम सभी वाकिफ़ हैं. चाहे वो सिविल अफ़सर हों या नेता. VIP कल्चर की हवा से कम लोग ही बच पाए हैं. नेताओं में तो अलग ही धौंस होता है. बहुत कम अफ़सर ऐसे होते हैं जो अपना सारा काम ख़ुद से करते हैं.


देश के कई IAS अफ़सरों में से एक हैं डॉ. अजय शंकर पांडे. डॉ. पांडे रोज़ 10 मिनट पहले ऑफ़िस आते हैं और अपने ऑफ़िस की सफ़ाई करते हैं.

The Better India से बात-चीत में उन्होंने बताया कि इन सब की शुरुआत 1993 में हुई जब वे आगरा के एत्मादपुर में एसडीएम थे और सारे सफ़ाई कर्मचारी स्ट्राइक पर चले गए थे. अगले सोमवार को डॉ. पांडे झाड़ू लेकर गए और अपने कमरे की सफ़ाई करने लगे. उनके ऑफ़िस में कर्मचारियों के अलावा कुछ पत्रकार भी जमा हो गए.  

The Better India
मैंने सफ़ाईकर्मियों की समस्याएं सुलझाने की पूरी कोशिश की पर वो काम पर वापस आने को तैयार ही नहीं थे. मैंने लोगों को बुलाया और उन्हें समझाया कि गंदी परिवेश में रहना उनके परिवारों के लिए ख़तरनाक है. मैंने उनसे कहा कि वो अपने घर की सफ़ाई के लिए सफ़ाईकर्मियों का इंतज़ार क्यों कर रहे हैं, ये कोई गंदा काम तो है नहीं. मेरी कोशिश थी कि वे शहर की स्वच्छता का ज़िम्मा अपने हाथों में लें. वे लोग पहले हंसे फिर मैंने सोचा कि मुझे एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए.

-डॉ. पांडे

डॉ. शंकर पांडे वर्तमान में गाज़ियाबाद के डीएम हैं. बड़े अफ़सर को हाथ में झाड़ू लिया देख दूसरे अफ़सरों ने भी शहर के अलग-अलग क्षेत्र में स्वच्छता अभियान चलाने की सोची. सभी के सहयोग से शहर में स्वच्छता कैंपेन की शुरुआत हो गई.  

धीरे-धीरे पूरा शहर सड़कों पर उतर आया. कई दिनों से पड़ा कूड़ा 5-6 घंटे में सारा कूड़ा जमा कर लिया गया. हमने 3-4 दिनों तक ये अभियान जारी रखा. शहर के लोगों को सफ़ाई करता देख सफ़ाईकर्मचारी भी काम पर लौट आए. इस घटना ने मुझे प्रेरित किया और तब से मैं अपना ऑफ़िस ख़ुद ही साफ़ करता हूं. तब से आज तक मैं 10 मिनट पहले आकर अपना ऑफ़िस ख़ुद ही साफ़ करता हूं. मेरे ऑफ़िस के बाहर ही झाड़ू, वाइपर और बड़ा सा डस्टबिन रखा रहता है.

-डॉ. पांडे

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डीएम साहब के दफ़्तर के बाहर लिखा है,


‘मैंने ये ऑफ़िस ख़ुद साफ़ किया है. गंदगी फैलाकर मेरा काम न बढ़ाएं.’  

डॉ. पांडे की पोस्टिंग जहां भी हुई न उनकी साफ़-सफ़ाई की आदत बदली और न ही उनके दफ़्तर के बाहर का बोर्ड. 

म्युनिसिपल कमिश्नर के तौर पर हम शहर के सफ़ाईकर्मचारियों का काम देखते हैं. एक शहर में 2 से 6 हज़ार सफ़ाईकर्मी होते हैं. मैं उन्हें अपने कमरे में नहीं आने देता और अपना कमरा ख़ुद साफ़ करता हूं.’

-डॉ. पांडे

2014 को The Hindu को दिए एक इंटरव्यू में डॉ. पांडे ने कहा,


‘भारत में ये मान लिया गया है कि साफ़-सफ़ाई एक ही शख़्स का काम है. हमारे घरों में भी महिलाएं ही साफ़-सफ़ाई का काम करती हैं, पुरुष कभी धूल नहीं झाड़ते. इस सिस्टम को बदलना होगा.’  

The Hindu

डॉ. पांडे अपना दफ़्तर खु़ुद साफ़ करते हैं लेकिन उनके अंडर काम कर रहे अफ़सरों पर ऐसी कोई बाध्यता नहीं है. डॉ. पांडे कहते हैं कि उनको देखकर कई लोग अपना दफ़्तर ख़ुद साफ़ करने लगे.