हमारे देश में VIP कल्चर से हम सभी वाकिफ़ हैं. चाहे वो सिविल अफ़सर हों या नेता. VIP कल्चर की हवा से कम लोग ही बच पाए हैं. नेताओं में तो अलग ही धौंस होता है. बहुत कम अफ़सर ऐसे होते हैं जो अपना सारा काम ख़ुद से करते हैं.
मैंने सफ़ाईकर्मियों की समस्याएं सुलझाने की पूरी कोशिश की पर वो काम पर वापस आने को तैयार ही नहीं थे. मैंने लोगों को बुलाया और उन्हें समझाया कि गंदी परिवेश में रहना उनके परिवारों के लिए ख़तरनाक है. मैंने उनसे कहा कि वो अपने घर की सफ़ाई के लिए सफ़ाईकर्मियों का इंतज़ार क्यों कर रहे हैं, ये कोई गंदा काम तो है नहीं. मेरी कोशिश थी कि वे शहर की स्वच्छता का ज़िम्मा अपने हाथों में लें. वे लोग पहले हंसे फिर मैंने सोचा कि मुझे एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए.
-डॉ. पांडे
डॉ. शंकर पांडे वर्तमान में गाज़ियाबाद के डीएम हैं. बड़े अफ़सर को हाथ में झाड़ू लिया देख दूसरे अफ़सरों ने भी शहर के अलग-अलग क्षेत्र में स्वच्छता अभियान चलाने की सोची. सभी के सहयोग से शहर में स्वच्छता कैंपेन की शुरुआत हो गई.
धीरे-धीरे पूरा शहर सड़कों पर उतर आया. कई दिनों से पड़ा कूड़ा 5-6 घंटे में सारा कूड़ा जमा कर लिया गया. हमने 3-4 दिनों तक ये अभियान जारी रखा. शहर के लोगों को सफ़ाई करता देख सफ़ाईकर्मचारी भी काम पर लौट आए. इस घटना ने मुझे प्रेरित किया और तब से मैं अपना ऑफ़िस ख़ुद ही साफ़ करता हूं. तब से आज तक मैं 10 मिनट पहले आकर अपना ऑफ़िस ख़ुद ही साफ़ करता हूं. मेरे ऑफ़िस के बाहर ही झाड़ू, वाइपर और बड़ा सा डस्टबिन रखा रहता है.
-डॉ. पांडे
डीएम साहब के दफ़्तर के बाहर लिखा है,
डॉ. पांडे की पोस्टिंग जहां भी हुई न उनकी साफ़-सफ़ाई की आदत बदली और न ही उनके दफ़्तर के बाहर का बोर्ड.
म्युनिसिपल कमिश्नर के तौर पर हम शहर के सफ़ाईकर्मचारियों का काम देखते हैं. एक शहर में 2 से 6 हज़ार सफ़ाईकर्मी होते हैं. मैं उन्हें अपने कमरे में नहीं आने देता और अपना कमरा ख़ुद साफ़ करता हूं.’
-डॉ. पांडे
2014 को The Hindu को दिए एक इंटरव्यू में डॉ. पांडे ने कहा,
डॉ. पांडे अपना दफ़्तर खु़ुद साफ़ करते हैं लेकिन उनके अंडर काम कर रहे अफ़सरों पर ऐसी कोई बाध्यता नहीं है. डॉ. पांडे कहते हैं कि उनको देखकर कई लोग अपना दफ़्तर ख़ुद साफ़ करने लगे.