मैं तीसरी कक्षा में थी. Second Terminal Exams के बाद हमने अपना किराए का घर बदला था. स्कूल जाने का रास्ते के साथ ही स्कूल जाने वाले दोस्त भी बदल गए. पुराने ब्लैक एंड वाइट टीवी में शायद शिफ़्टिंग के दौरान कुछ ख़राबी आ गई थी क्योंकि उसमें केबल के कोई चैनल नहीं आ रहे थे.


मेरी बहन ने तो काफ़ी दंगा मचाया था कार्टून न देख पाने को लेकर पर मुझे तो दूरदर्शन के शो भी मज़ेदार लगते थे, तो अपना टाइमपास का दाना-पानी उसी टीवी से चल रहा था.   

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एक दिन शाम मैंने मम्मी-पापा को बात करते सुना कि अब कलर टीवी ले ही लेना चाहिए. जैसा कि आमतौर पर हर घर में होता है, मैंने भी तुरंत ये सूचना ब्रेकिंग न्यूज़ के माफ़िक अपनी बहन को दी. ख़ुशी के मारे उसने मुझे अपनी आधी चॉकलेट दे दी थी (असल में चॉकलेट देने की बात पर ही उसे ये ख़ुशखबरी सुनाई गई थी.)


2 दिन बाद, रविवार के दिन कलर टीवी घर आने वाला था. आमतौर पर रविवार को लेट से खुलने वाली नींद काफ़ी जल्दी खुल गई. सुबह से ही हर एक काम मैंने दोगुने उत्साह से किया. मैंने सोच लिया था कि टीवी आते ही सारी शैतानियां बंद करूंगी और मम्मी-पापा की हर बात मानूंगी.  

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जितनी बार भी पापा से आमना-सामना होता, दिमाग़ में एक ही सवाल आता कि ‘ये टीवी लाने कब जाएंगे’. 11 बजे जब बात बर्दाशत के बाहर हो गई, तब मैंने पापा से पूछ ही लिया कि आप टीवी ख़रीदने क्यों नहीं जा रहे. वो हंसे और कहा कि ऑर्डर दिया जा चुका है और 3 बजे तक टीवी घर पर होगा.


ये सुनते ही Excitement 3 गुना बढ़ गया. इतनी ज़्यादा कि पड़ोस की दोस्त के खेलने के लिए बुलाने पर भी मैं नहीं गई. 2:30 बज चुके थे और अब इंतज़ार मुश्किल हो रहा था, फिर क्या था साईकिल उठाया और घर से फुर्र. पूरे मोहल्ले के 4 चक्कर लगा लिए पर कहीं भी कोई टीवी लाता नहीं दिखा. थोड़ी देर बाद काफ़ी दूर एक ठेला दिखा. मैंने कन्फ़र्म करने के लिए उस तरफ़ हैंडल मोड़ दिया और… वो टीवी ही था. ठेले से बंधा हुआ, Philips का बड़ा सा डब्बा. अब तो मैं ठेले वाले के साथ ही पैडल करते हुए घर की तरफ़ आने लगी.  

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बाहर वाले कमरे में टेबल पहले से ही तैयार था. दुकानदार भी पहुंच गया. पापा और उसने मिलकर टीवी फ़िट किया. मैंने और मेरी बहन पहले से ही सोफ़े पर जगह बनाकर बैठ चुके थे. केबल का तार लगाया गया और टीवी ऑन किया गया. दूरदर्शन ही आ रहा था पर सबकुछ रंगीन. मुझे उस दिन दूरदर्शन के उस गोलाकर Logo का रंग दिखा.


ये सब किसी जादू से कम नहीं था. मम्मी कुछ तो कह रही थी, शायद पानी वगैरह लाने का या कुछ, पर उस स्क्रीन में कुछ ऐसा था कि मम्मी की बात सुनाई ही नहीं दे रही थी. इतने में पड़ोस की आंटी भी आ गई, शायद टीवी देखने. आज भी याद है उन्होंने मम्मी को टीवी की पूजा करने की हिदायत दी थी, जिसे मां ने हंसकर टाला था!   

रात तक केबल भी ठीक हो गया. रात में कार्टून नेटवर्क पर कार्टून्स को कलर में देखकर लगा मैं भी उन्हीं के बीच में हूं. उस दिन के बाद से घर में रिमोट को लेकर नोक-झोक होने लगी. मम्मी के सीरियल के टाइम अक़सर कोई न कोई मैच आता और हमारे कार्टून के टाइम पर पापा जानबूझकर न्यूज़ लगा देते.


उस Philips के कलर टीवी के साथ कई सारी यादें जुड़ी हैं. 2004 में आई सुनामी की ख़बर, मुंबई हमलों की ख़बर, 2011 में धोनी को वर्ल्ड कप जीतते भी हमने उसी टीवी पर देखा. सबसे अच्छी बात पता है क्या है, वो टीवी आज भी घर पर है और अच्छी हालत में है.   

क्या आपको अपने घर में आया पहले रंगीन टीवी याद है? तो उससे जुड़ी यादें हमारे साथ शेयर करिए.