‘मर्द होकर रोता है?’

‘अबे तू मर्द है या नहीं? अगर मर्द है तो चुपचाप दारू का ग्लास खाली कर’

‘मर्द होकर इंडियन डांस सीखोगे, पागल हो तुम?’

ज़्यादातर पुरुषों ने कभी न कभी ये बातें सुनी ही होंगी. मर्दों को मर्द बनने के लिए जितनी मेहनत करनी पड़ती है, उतनी मेहनत औरतों को औरत बनने के लिए नहीं करनी पड़ती.

आसान नहीं होती पुरुषों की ज़िन्दगी. बचपन में सबसे अच्छा बेटा बनने का प्रेशर, फिर अच्छा पति, फिर पिता. पुरुषों को सारी ज़िन्दगी ज़िम्मेदारियों के बोझ तले ही बितानी पड़ती है. ज़िम्मेदारियों और सामाजिक दबाव की वजह से कई पुरुष वो नहीं कर पाते, जो वो करना चाहते हैं. चाहे वो इच्छानुसार करियर चुनना हो या फिर हॉबी, उन्हें हमेशा ये ध्यान में रखना पड़ता है कि वो ‘मर्द’ हैं.

मैंने ऐसे पुरुषों को देखा है, जो क्लासिकल डांस सीखना चाहते थे लेकिन माता-पिता के दबाव में क्रिकेट पिच पर जाते थे या कराटे क्लास में.

International Men’s Day पर कुछ पुरुषों के मन की बातें, जो वो दुनिया से कहना चाहते हैं:

जब स्त्रियों को हर बात की स्वतंत्रता मिलती है, क्या पुरुषों को भी अपनी इच्छानुसार जीने का अधिकार नहीं होना चाहिए? 

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