संजुक्त साह और स्वास्तिका गुरंग, दो ऐसे नाम जिन्हें फ़िक्र है उन बच्चों की, जिनके पास पढ़ने के लिए न तो ज़्यादा जगह है और न ही अच्छी किताबें. इन बच्चों की इसी ज़रूरत को पूरा करने के लिए ये दोनों एक मिशन पर निकल चुके हैं. इस मिशन में वो एक विशेष जगह के 100 बच्चों के साथ मिलकर, एक दीवार वाली हाइपरकूल लाइब्रेरी बना रहे हैं, जिसका नाम है Wall O Books. इनमें से ज़्यादातर वो बच्चे हैं, जो तंग जगहों में रहकर पढ़ाई करते हैं.

स्वास्तिका और संजुक्त भारत के हर राज्य में इस तरह की 100 लाइब्रेरी बनाने वाले हैं. Wall O Books, Crayons Of Hope Foundation की शुरू की गई एक पहल है.

1. कैसे काम करता है Wall O Books?

Wallobooks

Wall O Books, उन संगठनों और संस्थानों के सहयोग से काम करता है, जो पहले से ही 5 से 16 साल के कमजोर और ग़रीब बच्चों के लिए काम कर रहे हैं. ये संस्थान जिन शिक्षकों को नॉमिनेट करते हैं, उन्हें Wall O Books के शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशाला में भेजा जाता है. प्रशिक्षण ख़त्म होने के बाद शिक्षकों को 100 किताबों के साथ Wall O Books किट दी जाती है, जिसमें लाइब्रेरी की दीवार बनाने के लिए ज़रूरी चीज़े होती हैं.

2. कैसी दिखती है ये लाइब्रेरी?

इस लाइब्रेरी की ख़ासियत ये है कि यहां दूसरी लाइब्रेरियों की तरह आपको कुर्सियां, मेज और किताबें रखने के लिए आलमारी नहीं मिलेंगी. इस लाइब्रेरी के नाम के जैसे ही इसमें केवल दीवार है, जिस पर किताबें लगी हुई हैं. लाइब्रेरी की दीवार में किताबें फ़िट बैठ जाती हैं. दीवार पर बना रंग-बिरंगा Learning Tree, पोस्टर और नोटिस बोर्ड बताता है कि बच्चों को इस लाइब्रेरी से कितना प्यार है.

3. बच्चे ही हैं इस लाइब्रेरी के कर्ता-धर्ता.

Wallobooks

इस लाइब्रेरी को शिक्षक, बच्चों के साथ मिलकर बनाते है. वे बच्चों को लाइब्रेरी की देखभाल और इसका मालिक बनने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते रहते हैं. बच्चे, शिक्षकों के मार्गदर्शन से लाइब्रेरी का डिज़ाइन और निर्माण करते है और इसके उचित रखरखाव के लिए भी जवाबदेह होते हैं.

Wall O Books का Learning Tree बनाने की प्रक्रिया काफ़ी मज़ेदार और शिक्षाप्रद रहा. न केवल मुझे सीखने और डिज़ाइन बनाने में मजा आया, बल्कि जिन बच्चों को मैनें सिखाया, उन्हें भी इसे बनाने में ख़ुशी हुई.                                                                                                                                            -लिमा गयान, शिक्षक, ऑफ़र इंडिया, कोलकाता

4. यहां लाइब्रेरियन भी बच्चे हैं.

Wallobooks

Wall O Books के उद्घाटन के दौरान, इस लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन का चुनाव बच्चों ने अपने ही बीच से किया. बाल शिक्षा केंद्र स्कूल में पढ़ने वाली शगुफ़ी, Wall O Books के एक केंद्र की लिटिल लाइब्रेरियन है. वो अपना अनुभव शेयर करते हुए बताती हैं कि,

मुझे कहानियों की किताबें पढ़ना बहुत पसंद है और इनसे मैनें बहुत सी नई चीजें सीखी हैं. एक ज़िम्मेदार लाइब्रेरियन होने के नाते, लाइब्रेरी के सदस्यों को जारी की गई सभी किताबों का मैं रिकॉर्ड रखती हूं. मैं पढ़ी हुई किताबों पर प्रतिक्रियाएं भी लिखती हूं और अपने दोस्तों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करती हूं. लाइब्रेरी में पढ़ी एक कहानी पर हमने एक ड्रामा किया था, जो बहुत मजेदार था, हमें दर्शकों से काफ़ी प्रशंसा मिली.

5. छोटी से छोटी चीजें सीखाने पर रहता है ध्यान.

Wallobooks

हर महीने बच्चों का एक समूह अपने शिक्षक के साथ एक कार्यशाला में भाग लेता है. जैसे- लाइब्रेरी शुरू होने के बाद सबसे पहले बच्चों को उनकी पहचान के बारे में कार्यशाला के ज़रिए बताया जाता है. उन्हें बताया जाता है कि एक नाम का ज़िंदगी में क्या महत्व होता है? बच्चों को बताया जाता है कि उनके नाम का क्या मतलब है और उनके नाम के दुनिया में और कितने लोग हैं, जिन्होंने बड़ा नाम कमाया है. ये कहानियों की रंगीन किताबों और कॉमिक्स से सजी एक आकर्षक लाइब्रेरी है, जहां बच्चे चीजों को नये तरीके से सोचना, व्यक्त करना और साझा करना सीखते हैं.

6. भविष्य?

Wallobooks

स्वास्तिका और संजुक्त का लक्ष्य इस साल 2900 Wall O Books लाइब्रेरी शुरू करने का है- हर राज्य में 100 लाइब्रेरी खोल कर 2,90,000 बच्चों को दुनिया से जोड़ना और उन्हें एक बेहतर भविष्य देना है. फिलहाल ये लोग 45000 बच्चों से जुड़े हुए हैं. अभी हाल में ही, इन्होंने अरुणाचल प्रदेश के एक दुर्गम इलाके में इस लाइब्रेरी की शुरुआत की है.