क्रिकेट की तरह हमारे देश में अब फ़ुटबॉल प्रेमियों की तादाद भी बढ़ती जा रही है और ये तस्वीर देखने के बाद फ़ुटबॉल फ़ैंस का सिर गर्व से ऊंचा हो जाएगा. ये तस्वीर 1911 की है, जब मोहन बागान ने नंगे पांव खेल कर ईस्ट यॉर्कशायर रेजीमेंट को मैच के अंतिम पांच मिनट में दो गोल दागकर हराया था. इसके साथ ही इंडियन फु़टबॉल ऐसोसिएशन का शील्ड जीत कर इस पल को सदा के लिये इतिहास के पन्नों में दर्ज करा दिया था.
इस लम्हे में अजीब ख़ुशी थी और ग्राउंड में झूमते-नाचते 60,000 प्रशंसकों के चेहरे पर जीत की ख़ुशी झलक रही थी. अगले दिन देशभर के अख़बारों में सिर्फ़ मोहन बागान का ज़िक्र था, जिनके लिये लिखा गया था कि ये सिर्फ़ फ़ुटबॉल टीम नहीं, बल्कि देश का वो हिस्सा है जिसकी वजह से हमने सिर उठा कर चलना शुरु किया.
मोहन बागान एथलेटिक क्लब की स्थापना 15 अगस्त, 1889 को हुई थी. भारत का राष्ट्रीय क्लब होने के साथ-साथ इसे एशिया के सबसे पुराने क्लब होने का गौरव भी प्राप्त है. स्थापना के बाद से ही इसने सफ़लता के झंडे गाड़ना शुरु कर दिया था. वहीं 1911 में इसे IFA द्वारा शील्ड खेलने के लिए आमंत्रित किया गया था. बस फिर क्या था टीम सदस्यों ने लोगों के साथ हो रहे उत्पीड़न का विद्रोह करने के लिये फ़ुटबॉल को चुना. कोलकाता के मैदान में इस ऐतिहासिक लड़ाई को देखने के लिये दूर-दूराज से लोग आये हुए थे.
यही नहीं, ईस्ट इंडिया रेलवे को फ़ुटबॉल प्रसशंकों को मैदान तक लाने के लिये एक स्पेशल ट्रेन शुरु करने तक के लिये मजबूर किया गया. नंगे पैर खेल रहे मोहन बागान के 11 खिलाड़ियों का सामना East Yorkshire टीम से था, लेकिन इसके बावजूद मोहन बागान के खिलाड़ियों को कोई फ़र्क नहीं पड़ा. भले ही मोहन बागान के लिये खेल की शुरुआत अच्छी नहीं रही, लेकिन धीरे-धीरे उनके खिलाड़ियों ने गति पकड़ी और अंग्रेज़ी टीम की बराबरी पर आ गये. इसके बाद किस्मत बदली और अभिलाष घोष ने 2-1 से गोल कर टीम को विजय दिला दी.
इस तरह से इस टीम ने देश को ऐतिहासिक जीत दिलाई और ये पल हमेशा के लिये यादगार बन गया. इसके साथ ही बागान टीम के खिलाड़ियों को मरणोपरांत मोहन बागान रत्न से सम्मानित किया गया. यही नहीं, टीम की सफ़लता की याद में, बंगाल के निर्देशक अरूप रॉय ने 2011 में Egaro, The Immortal Eleven नामक एक फ़िल्म भी बनाई थी.