कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसके ठीक होने के बाद भी कुछ दर्दनाक निशान रह जाते हैं. कीमोथेरपी से गुज़रे कैंसर पीड़ितों के बाल झड़ जाते हैं और उन्हें काफ़ी समय तक इसी तरह रहना पड़ता है. ऐसा होने के बाद ये लोग समाज की बनायी ख़ूबसूरती की परिभाषा में फ़िट नहीं बैठते. नतीजन, लोगों की नज़रें इन्हें अजीब तरह से देखने लगती हैं. ये वो नज़रें होती हैं, जो पीड़ितों को समाज से अलग होने का अहसास कराती हैं. इसी अहसास को ख़त्म करने के लिए वेदिका और उनकी मां पायल ने एक छोटा सा कदम उठाया है.
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दोनों ने समाज की और लोगों की निगाहों की परवाह न करते हुए कुछ ऐसा किया है, जो उन्हें सबसे ख़ूबसूरत बनाता है. मिलिए पायल कालरा श्रीनाथ और वेदिका नाथ से. दोनों मां-बेटी हैं और एक नेक काम के लिए अपना सिर मुंडवा चुकी हैं.
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46 वर्षीय पायल एक इंटीरियर डिज़ाइनर हैं और उनकी 16 वर्षीय बेटी वेदिका स्टूडेंट है. दोनों ने कैंसर सर्वाइवर्स के लिए अपने बाल डोनेट कर दिए हैं. इतना ही नहीं, दोनों ने मुंबई स्थित एक कैंसर अस्पताल में कैंसर पीड़ित बच्चों के साथ समय भी बिताया.
पायल ने गज़बपोस्ट को बताया कि शुरू में बच्चों को लगा था कि शायद उनके बाल भी कीमोथेरपी के कारण झड़ गए हैं. जब बच्चों को बताया गया कि उन्होंने ऐसा अपनी मर्ज़ी से करवाया है, तो उनकी ख़ुशी देखने लायक थी.
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ऐसा करने का ख़याल पहले वेदिका के मन में आया था. जब उसने इसके बारे में अपनी मां से चर्चा की, तो उन्होंने भी इसमें अपना योगदान देने की इच्छा ज़ाहिर की. इस तरह दोनों ने अपने बाल दान कर दिए. वेदिका आगे चल कर कैंसर पीड़ित बच्चों के लिए काम करना चाहती हैं.
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भारतीय समाज में भी महिलाओं के लिए ख़ूबसूरती की एक बनी-बनायी परिभाषा है. गोरा रंग, छरहरी काया, तीखे नैन-नक्श और लम्बे-घने बाल, ये ही वो पैमाने हैं, जिन पर लोग औरतों की ख़ूबसूरती मापते हैं. इसलिए यकीनन ऐसा करना दोनों के लिए आसान नहीं रहा होगा, सिर मुंडाए हुए अगर कोई औरत नज़र आये, तो लोग उसे अजीब सी निगाहों से देखते हैं. लेकिन पायल और वेदिका को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता, क्योंकि ऐसा कराने की वजह के सामने ये सब मायने नहीं रखता. उनका उद्देश्य कैंसर से जुड़े स्टिग्मा को तोड़ना ही है.
नेकी का कोई भी कदम छोटा नहीं होता. हम ऐसा करने के लिए पायल और वेदिका की सराहना करते हैं. इनकी कहानी जान कर कहना पड़ेगा ‘Bald is Beautiful’.