मदर टेरेसा का नाम लेते ही मन में पहला शब्द आता है मानवता.
एक ऐसी शख़्सियत जिनके लिए लोग ऐसा मानते हैं कि उनका जन्म ही दुनिया को प्यार और मानवता सिखाने के लिए हुआ था. जब तक वे ज़िंदा रहीं दूसरों के लिए जीती रहीं.
मदर टेरेसा की उदारता की एक ऐसी ही कहानी हम आपके लिए लेकर आए हैं.
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कलकत्ता की सड़कों पर हमेशा की तरह अफरा-तफरी मची हुई थी. लोग मलेरिया, टाइफ़ाइड, हैज़ा जैसी बीमारियों से संक्रमित थे. जो कि अधितकर मामलों में जानलेवा थीं. मदर टेरेसा और उनके सहियोगी हर दिन की तरह उस दिन भी अपनी पूरी ईमानदारी और हिम्मत से इन लोगों की मदद करने में लगे हुए थे ताकि थोड़ा ही सही पर लोगों का दर्द कुछ तो कम हो.
उस दिन मदर टेरेसा को कलकत्ता के एक हॉस्पिटल के बाहर नाली में एक महिला पड़ी हुई मिली. महिला इतनी बीमार थी कि उसको ये भी महसूस नहीं हो रहा था कि कॉकरोच और चूहे उसके पैर को खा रहे थे. मदर टेरेसा ने महिला को उठाया और उसको हॉस्पिटल के अंदर ले गईं.
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उन्होंने नर्स से कहा, “ये महिला मर रही है. इसे मदद चाहिए.”
इस पर नर्स ने जवाब दिया, “सॉरी इसके लिए यहां कोई कमरा नहीं है. ये ग़रीब है, ख़र्चा उठा नहीं पाएगी. वैसे भी किसी तरह हम इसको बचा नहीं पाएंगे इसलिए हम अपना एक बेड इस महिला पर बेकार नहीं करना चाहते हैं. अब कृपया आप यहां से हट जाएं.”
मदर टेरेसा का दिल टूट गया और वे महिला को बाहर सड़क पर ले आईं. वे वहीं महिला के साथ घंटों रहीं जब तक वो मर नहीं गई. मदर टेरेसा बहुत गुस्से में थी और उन्हें लगा कि ऐसी गंदी गली में किसी को अकेले, बिछड़ा हुआ और निराशा के साथ नहीं मरना चाहिए.
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मदर टेरेसा ने एक हिन्दू मंदिर के ठीक पीछे एक ख़ाली और पुराना होटल लिया और वहां उन लोगों को लेकर आने लगीं जिनको हॉस्पिटल लेने से मना कर देता था. वे लोग इतने बीमार होते थे कि मदर टेरेसा को पता होता था कि उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं होगी. फिर भी उन्हें इस बात की तसल्ली थी कि ये एक ऐसी जगह है जहां लोग आकर मर सकते थे. ये पूरा कमरा एक भयावह तस्वीर में बदलता जा रहा था क्योंकि जो लोग वहां आ रहे थे उनके घाव खुले हुए और उनमें कीड़े लगे हुए होते थे या फिर बीमारी की वजह से उनके शरीर का कोई अंग नहीं होता था. मंदिर में आ रहे हिन्दू इन लोगों को अपने क़रीब नहीं आने देना चाहते थे और मदर टेरेसा पर कूड़ा और पत्थर फेंका करते थे.
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एक दिन मदर टेरेसा ने एक आदमी को मंदिर की सीढ़ियों पर देखा जो कि बहुत बीमार था. उन्हें तुरंत एहसास हो गया कि ये मंदिर का ही एक पुजारी है. पुजारी को कोई भी इस डर से हाथ नहीं लगा रहा था कि वो बीमारी उन लोगों को न लग जाए. इसलिए उन्होंने उसे सीढ़ियों पर मरने के लिए छोड़ दिया. मदर टेरेसा उन्हें उठाकर उस पुराने होटल ले गईं जब तक वो शांति से मर नहीं गए.
मंदिर में हिंदुओं ने देखा कि मदर टेरेसा ने उस पुजारी के लिए क्या किया और फिर कभी किसी ने उन्हें परेशान नहीं किया.