मां…  
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जितना सिंपल सा ये शब्द है, उतनी ही कठिन ज़िम्मेदारी. मां बहुत दर्द सहकर हमें जन्म देती है और बड़ा करती है. लेकिन कई बार मां को भी समस्याएं होती हैं और हर मां का सफ़र एक जैसा नहीं होता, किसी-किसी का ज़्यादा कठिन होता है. 

ऐसी ही एक मां की कहानी कहानियों के समंदर Humans of Bombay ने शेयर की.  

मैं 12 साल की थी, खेलते हुए मुझे बिजली का झटका लगा और मेरा दाहिना हाथ काटना पड़ा- मेरी 40 सर्जरी हुई, दोनों हाथों में. 

इस दुर्घटना की वजह से उसे लिखने, कपड़े पहनने, बाहर जाने, हर एक काम में दिक़्क़त होने लगी. जब भी वो बाहर जाती, अजनबी उसे घूरते. 

Humans of Bombay
क़िस्मत से गुज़रते वक़्त के साथ, मैं अपने काम ख़ुद से करने लगी और मुझे अपने हाथ को लेकर और कॉन्फ़ीडेंस महसूस होने लगा. 25 की उम्र में मैंने अपने कॉलेज टाइम के प्यार से शादी की, जिसके लिए मेरा हाथ कभी कोई परेशानी नहीं था.  

5 साल बाद, उसने एक बेटी को जन्म दिया, मेहर. ज़ाहिर है ये उसकी ज़िन्दगी का सबसे ख़ूबसूरत वक़्त था. पर उसकी ज़िन्दगी बिल्कुल बदल गई. 

मैं मेहर को गोद ही नहीं ले पाती थी- किसी न किसी को उसे मेरी गोद में देना पड़ता था. मैं उसके डायपर नहीं बदल पाती, मेरा ब्रेस्टमिल्क उसके लिए कम पड़ता था. मुझे लगता था कि मैं एक बहुत बुरी मां हूं. मैं अपने बच्चे के लिए छोटी-छोटी चीज़े भी नहीं कर पाती थी. 
Humans of Bombay

उसका शरीर भी पूरी तरह बदल गया था, 10 किलो वज़न बढ़ गया था. उसे लगने लगा था कि वो बदसूरत है और उसे ख़ुद पर ग़ुस्सा आता. वो सारी रात जागती, उसे छोटी-छोटी बात पर ग़ुस्सा आ जाता. पति और अपनी मां से उसके झगड़े बढ़ गये.  

मेरे दिमाग़ में बस ये ख़याल रहता था कि ज़िन्दगी पहले जैसी कभी नहीं रहेगी. मुझे पता था कि मैं पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुज़र रही हूं, डायग्नॉसिस के बिना ही मुझे ये पता था. 2 महीने बाद चीज़ें ठीक होने लगी. मेहर बड़ी होने लगी और मैं उसे अच्छे से गोद में उठाने लगी. मैंने उसकी डायपर बदलने की भी कोशिश की. स्ट्रेस से राहत के लिए मैंने नये शोज़ शुरू किये. मेहर के सोने के बाद मैं और मेरे पति, दोस्तों के साथ लंबी ड्राइव्स पर जाते. 

वो अभी भी ख़ुद से मेहर का पूरी तरह से ध्यान नहीं रख पा रही थी. वो उसे नहलाना सीख रही है. 

कल ही की बात है, मैं घर पर अकेली थी और मुझे मेहर की डायपर बदलने के लिए 5 बार कोशिश करनी पड़ी. मैं रोज़ अपने लिए छोटे-छोट गोल्स सेट करती हूं, और धीरे-धीरे आगे बढ़ रही हूं. 
Humans of Bombay

7 महीने होने के बाद भी उसे मूड स्विंग्स होते हैं लेकि मेहर की आवाज़, उसकी मुस्कुराहट से उसका आत्मविश्वास बढ़ता है. 

मैं छोटी-छोटी जीतों पर ध्यान दे रही हूं, जैसे अभी मैं अपने पति के साथ, मेहर को लेकर हॉलीडे प्लैन कर रही हूं, उम्मीद है अगले साल.’ ‘मां बनने का एहसास ख़ूबसूरत है, इसमें कोई शक़ नहीं, पर ये आसान नहीं होता. हमारे शरीर, ज़िन्दगी सब बदल जाते हैं. एक चीज़ जो कभी नहीं बदलती है, वो है प्यार… बस सब ठीक हो जाता है.
Humans of Bombay

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