देश ने कल पूरे धूम-धाम से 68वां गणतंत्र दिवस मनाया. विश्व के सबसे बड़े गणतांत्रिक देश होने के इस जश्न में राजपथ पर देश की तमाम सेनाओं ने अपना दमखम दिखाया. पर जहां एक तरफ कई आधुनिक मिसाइल और शस्त्र दिखाए जा रहे थे, वहीं पूरे सैन्य दस्ते से एक हीरो गायब था, ये हीरो था-खच्चर.
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सीमा के पास स्थित कई जगहों पर आज भी आर्मी को यातायात के लिए जानवरों का सहारा लेना पड़ता है. अगर ऐसा कहा जाये कि आर्मी के लिए जानवर ट्रांसपोर्ट की बैकबोन हैं, तो ये गलत नहीं होगा. भारतीय आर्मी के खच्चरों का ऐसा रिकॉर्ड रहा है कि जब-जब इंसान और मशीन ने हार मान ली है, तब-तब इस जानवर ने ही राशन, गोलाबारूद और अन्य चीज़ें सैनिकों तक पहुंचाई हैं.
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कश्मीर और नॉर्थ इस्ट इलाकों में इन जानवरों ने सेना की बहुत मदद की है. 10,000 फीट से लेकर 19,000 फीट की ऊंचाई तक भी इन खच्चरों ने आर्मी का सामान पहुंचाया है. इतना ही नहीं, युद्ध में भी इन जानवरों ने पूरा जज़्बा दिखाया है और अपने दम पर जीत का द्वार दिखाया है. दुर्घटनाओं के समय जब जवानों को हॉस्पिटल ले जाने की कोई सुविधा नहीं थी, तब ये ही काम आए.
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जब इनकी कोई ज़रूरत नहीं होती, तो इन्हें लम्बी दूर तक टहलाया जाता है और आगामी ऑपरेशन्स के लिए इन्हें ट्रेंड किया जाता है. इनके दो से तीन साल के होते ही इनकी क्षमता के अनुसार इनका प्रशिक्षण शुरू कर दिया जाता है. ये तीन तरह के होते हैं: एक सामान्य लोड उठाने वाले, दूसरे तगड़े वाले, जो हथियार को पीठ पर लाद कर कई हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर चढ़ जाते हैं और तीसरे वो जिन पर सवारी की जा सके.
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इन खच्चरों को कोई नाम नहीं होता, बल्कि इन सबका एक नम्बर होता है. जैसे Hoof No. 15328 को Padongi सबसे पुराना खच्चर था. इसको पहाड़ी तोप भी कहा जाता था. 29 साल की उम्र में भी ये खच्चर पीठ पर सामान लाद कर 19,000 फीट की ऊंचाई पर चढ़ गया था. आज भी उसके योगदान को आर्मी याद करती है और उसकी याद में कार्ड जारी किया गया है.
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जानवर बस घरों में ही नहीं, बल्कि हर जगह उपयोगी होते हैं. युद्ध में अपनी काबिलियत दिखा कर तो खच्चरों ने अपनी उपयोगिता साबित कर दी है. ये वाकई देश के उन हीरो में से हैं, जो बिना किसी फल के अपना काम किये जाते हैं. अगर देश के कुछ लोग भी इस जानवर से सबक लें तो बहुत कुछ बदल सकता है.