जहां रोज़ाना कई घरों और होटलों में बचा हुआ खाना फेंक दिया जाता है, वहीं मुंबई का एक क्लब बचे हुए खाने से खाना पका रही है.

मुंबई के पूर्वी उपनगर में सबसे ज़्यादा कचरा पैदा करने के लिए बदनाम Club Emerald ने नई तस्वीर तैयार कर दी है. ये क्लब पिछले दो महीनों में 30,000 जैविक कचरे को बायोगैस में बदल चुका है.

Mangal Pardeshi

चेम्बुर के स्वास्तिक पार्क में स्थित इस क्लब ने भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर(BARC) की मदद से बायोगैस प्लांट बनाई है.

जब गीला कचरा तौल कर अलग कर लिया जाता है तब उसे क्रशर के भीतर के डाल दिया जाता है. उसमें कचरे के छोटे-छोटे टुकड़े होने के बाद उसे फ़ीड टैंक में डाल दिया जाता है. उसका बाद अगला पड़ाव आता है Bio-Digester का. ये एक चेंबर की तरह होता है जिसमें कचरे को सड़ाया जाता है और मिथेन बनाने की प्रक्रिया भी चलती है, जिसे अलग से स्टोर किया जाता है.

प्रतिदिन 500 किलो कचरा से 30 क्युबिक मीटर बायोगैस तैयार होता है. इस पुरी प्रक्रिया में 25 दिन लगता है. इस तैयार गैस से क्लब में काम करने वाले सौ से भी ऊपर स्टाफ़ के लिए खाना बनता है.

हिन्दुस्तान टाइम्स से बात करते हुए Emerald Club के एक्ज़िक्युटिव डायरेक्टर निखिल मेहता कहते हैं, ‘हम प्रतिदिन 250 रुपये की बचत करते हैं, जिसे पहले गैस ख़रीदने के लिए ख़र्च करना पड़ता था. इस पूरे प्रोजेक्ट के ऊपर BARC का पेटेंट है, इसे लगाने में 11 लाख का ख़र्च हुआ है. अगले चार साल के भीतर हम इस लागत की भरपाई कर लेंगे.’

पहले Emerald के ऊपर Brihanmumbati Municipal की ओर से कचरा प्रबंधन का भारी दबाव था, सिर्फ़ दो महीने के भीतर इसने ख़ुद को सौ प्रतिशत कचरामुक्त कर लिया है. इससे सिर्फ़ गैस ही नहीं बनता, कचरा से खाद भी बनता है.