हिंदू धर्म का नृत्य, कला, योग और संगीत से गहरा नाता है. संगीत को मोक्ष के सभी उपायों में से एक माना गया है. वैदिक काल में ही संगीत ने समाज में अपना स्थान बना लिया था. सबसे पुराने ग्रन्थ ऋग्वेद में आर्यों के मनोरंजन का मुख्य साधन संगीत को बताया गया है. अनेक वाद्य यंत्रों का आविष्कार भी ऋग्वेद के समय में बताया जाता है. संसार में संगीत कला की पहली जानकारी सामवेद में उपलब्ध है. सामवेद को संगीत का मूल ग्रन्थ माना जाता है.
भारत में संगीत की परंपरा अनादि काल से ही रही है. हिन्दू धर्म में तमाम देवी-देवताओं को अलग-अलग वाद्य यंत्रों से जोड़कर देखा जाता है.
भगवान शिव- डमरू
भगवान शिव का स्थान संगीत और नृत्य में सभी देवी-देवताओं से ऊपर है. हिन्दू धर्म में शिव जी को सृजन और विनाश का देवता बताया गया है. माना जाता है कि संगीत पहले सिर्फ़ देवताओं के लिए था. भगवान शिव ने डमरू बजाकर तांडव करते हुए, सुरों को बंधन से मुक्त किया, तब संगीत मनुष्यों के लिए उपलब्ध हुआ. माना जाता है कि ‘रूद्रवीणा’ का निर्माण भी भगवान शिव ने किया था. भगवान शिव ने अपने परमभक्त रावण को रूद्रवीणा का ज्ञान दिया था.
भगवान विष्णु- शंख
शंख समुद्र मंथन से प्राप्त 14 अनमोल रत्नों में से एक है. इसे भगवान विष्णु ने ले लिया. देवी लक्ष्मी के साथ उत्पन्न होने से इसे लक्ष्मी भ्राता भी कहा जाता है. शंख को विजय का प्रतीक माना गया है. महाभारत युद्ध में शंखनाद से ही युद्ध शुरू और बंद होता था. हिन्दू धर्म में इसकी ध्वनि को शुभ माना जाता है.
भगवान कृष्ण- बांसुरी
भारत ही नहीं विश्वभर में श्री कृष्ण और बांसुरी एक-दूसरे के पर्याय हैं. इसे वंसी, वेणु, वंशिका और मुरली भी कहते हैं. श्री कृष्ण बचपन से ही बांसुरी बजाने लगे थे. उनकी बांसुरी की धुन पर पूरा गोकुल, ख़ासकर गोपियां मदमस्त रहती थीं. एक प्रचलित कथा के अनुसार भगवान कृष्ण को बांसुरी, शिव जी ने दी थी.
देवी सरस्वती- वीणा
वीणा भारतीय वाद्ययंत्र है. ये स्वर ध्वनियों के लिए भारतीय संगीत में प्रयोग किए जाने वाला सबसे प्राचीन वाद्य यंत्र है. सरोद और सितार वीणा के ही बदले हुए रूप हैं. हिन्दू धर्म में मां सरस्वती को ज्ञान और संगीत की देवी माना गया है. इनके लगभग हर चित्र में इन्हें वीणा के साथ ही दिखाया जाता है.
वीणा के बारे में याज्ञवल्क्य ने अपनी स्मृति में लिखा है,
“वीणा वाद्यं: तत्वज्ञाना श्रुति, जाथि , विसारद ,तलान्जाप्रयासेना मोक्षमार्गम निश्चयति”
अर्थात, जिसे वीणा में महारत हासिल हो, जो श्रुति का जानकार हो और जो ताल देना जानता हो वो निश्चय ही मोक्ष को प्राप्त होगा.
ब्रह्मा, विष्णु, महेश – ढोल
पौराणिक मान्यता के अनुसार ढोल का निर्माण त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) ने किया, इसलिए इसे ईश्वर पुत्र कहा गया है. ढोल और दमाऊ एक तरह से मध्य हिमालयी यानी उत्तराखंड के पहाड़ी समाज की आत्मा रहे हैं. ढोल सागर ग्रन्थ में प्रकृति, मनुष्य, देवताओं और त्योहारों को समर्पित 600 से ज़्यादा ताल हैं.
भगवान गणेश- ढोलक
संगीत में 4 प्रकार के वाद्य माने गए हैं, इनमें से पीटकर बजाने वाले वाद्यों का देवता गणेश जी को माना जाता है. संगीत के विद्यार्थी सुशांत शर्मा बताते हैं कि ‘पृथ्वी से स्वर्ग की यात्रा में गणेश का लोक पहला है. इसलिए सबसे पहले उन्हीं की पूजा की जाती है. संगीत में मान्यता है कि गणेश जी की पूजा के साथ ही वो ढोलक बजाकर अन्य देवताओं को जगाते हैं, जिससे मनुष्य की पूजा उन तक पहुंच सके.’
देवर्षि नारद- वीणा
हिन्दू मान्यता के अनुसार नारद मुनि ब्रह्मा जी के 7 मानस पुत्रों में से एक हैं. उन्होंने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया है. एक मान्यता के अनुसार वीणा का आविष्कार नारद जी ने ही किया. उनकी वीणा का नाम ‘महती’ है. पुराणों में नारद मुनि को संगीत और विद्याओं का महान जानकार बताया गया है. कुछ लोग इन्हें संसार का पहला पत्रकार भी मानते हैं.
हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं को संगीत से जोड़कर देखना इस बात की पुष्टि करता है कि भारत में संगीत को आदिकाल से ही पवित्र और पूजनीय समझा जाता रहा है. आप दुनिया के किसी भी कोने के संगीत को शांत मन से महसूस करें, आपको अपने भीतर प्राण बहते हुए मालूम पड़ेंगे. यही संगीत की ताकत है, जिसे विज्ञान ने माना. आज संगीत और ख़ासकर भारतीय संगीत को कई तरह के रोगों के इलाज में भी कारगर पाया गया है.