दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जो धर्म के नाम पर लोगों में नफ़रत फैलाने का काम करते हैं. वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो नफ़रत नहीं आपसी भाई-चारे की मिसाल पेश करने से पीछे नहीं हटते. दिल्ली के काका नगर से भी आपसी भाई-चारे की ऐसी ही एक मिसाल पेश की है एक मुस्लिम युवक ने, जिसने एक महिला और उसके बच्चे की जान बचाने के लिए अपना रोज़ा तोड़ दिया.

रूपेश कुमार जो दिल्ली के काका नगर में रहते हैं. कुछ दिनों पहले उनकी पत्नी जो प्रेग्नेंट थीं उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया था. उनके शरीर में ख़ून की कमी थी और डिलीवरी का समय भी आ गया था. इसलिए डॉक्टर ने सीज़ेरियन करने की सलाह दी और तुरंत 2 यूनिट ख़ून का इंतजाम करने को कहा.

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मगर रूपेश को लाख कोशिश करने के बाद भी कहीं से B+ ब्ल्ड नहीं मिला. तब एक उनके एक दोस्त संदीप कुमार ने एक व्हाट्सएप ग्रूप में इसकी पूरी जानकारी और अस्पताल का पता शेयर कर दिया. उस ग्रूप से सूचना मिलने पर समाज सेवक आबिद सैफ़ी ने उनसे संपर्क किया और बताया कि वो ब्लड डोनेट करने को तैयार हैं. उस वक़्त वो रोज़े से थे मगर स्थिति की गंभीरता को देखते उन्होंने अपना रोज़ा तोड़ दिया और रक्तदान किया.

इस तरह रुपेश कुमार के बीवी और बच्चे की जान बच सकी. फ़िलहाल मां और बच्चा दोनों ख़तरे से बाहर हैं. रुपेश कुमार ने आबिद का शुक्रिया अदा करते हुए उन्हें फ़रिश्ता बताया है, जो उनकी मदद के लिए ईश्वर ने भेजा था. बच्चे के जन्म के बाद उन्होंने आबिद जी से कहा कि वो ख़ुद उनके बच्चे का नामकरण करें. 

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आबिद ने कहा कि वो अल्लाह के शुक्रगुज़ार हैं कि उन्हें ये नेक काम करने का मौक़ा दिया, वो भी रमज़ान के पवित्र महीने में. उन्होंने ये भी कहा कि ईश्वर रोज़े रखने से ख़ुश होते हैं मगर उनके रोज़ा तोड़ने से वो और भी ख़ुश हुए होंगे क्योंकि इसकी वजह से दो लोगों की जान बच सकी. 

आबिद कहते हैं कि कुछ लोग धर्म के नाम पर नफ़रत फैलाने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनकी नज़र में मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं. इसलिए वो सावन के महीने में कावड़ियों के लिए शिविर का आयोजन करते हैं और उनके लिए भोजन आदि की व्यवस्था भी करते हैं.

इस तरह के प्यार से ही नफ़रत को प्यार में बदला जा सकता है. यही असल भारत की पहचान है, जिसके हम नागरिक हैं. 
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