लुधियाना के हेडों बेट गांव में एक भी मुस्लिम नहीं है, वहां की पूरी आबादी हिन्दू और सिखों की है लेकिन गांव के बीच में एक मस्ज़िद है और उसकी देख भाल हिन्दू और सिख करते हैं. 

The Print ने इस गांव के ऊपर एक रिपोर्ट तैयार की है, मस्ज़िद की दीवार एक मंदिर से जुड़ती है और साथ में जुड़ता इसका इतिहास. 

The Print(Representational Image)

विभाजन के बाद गांव की पूरी मुस्लिम आबादी पाकिस्तान चली गई थी लेकिन मस्ज़िद वहीं रह गए. तब से उसकी देखभाल गांव के स्थानीय हिन्दू-सिख ही करते हैं. उनके लिए बस ये भगवान का पवित्र घर है. 

रिपोर्ट के अनुसार साल 2009 से मस्ज़िद को देखने का काम गांव के 54 वर्षीय प्रेम सिंह करते आ रहे हैं. हर गुरुवार को वह मस्ज़िद में प्रसाद बांटते हैं और सुबह-शाम दिया जलाते हैं. हर साल गांव के लोग मस्ज़िद के पास मेला भी लगाते हैं. उनका मानना है कि सेवा का काम मस्ज़िद में हो या गुरुद्वारे में क्या फ़र्क पड़ता है. 

पंजाब में ऐसे कई मस्ज़िद हैं जिनकी देखरेख का काम हिन्दू-सिख ही करते हैं. राज्य के वक़्फ़ बोर्ड के अनुसार पहले मस्ज़िदों को चलाने के लिए लाइसेंस जारी किया जाता था, लेकिन एक फ़तवा निकलने के बाद से लाइसेंस की प्रथा बंद कर दी गई, तभी से कई मस्ज़िद और दरगाह वीरान पड़े हैं. 

वीरान पड़े दरगाहों और मस्ज़िदों में कोई अपनी पशुओं को बांध जाता है या कुछ लोगों ने कब्ज़ा जमा लिया है.