लड़कियों के साथ बहुत कुछ बहुत आसानी से हो जाता है. इसमें सोच और परवरिश दोनों का ही बड़ा हाथ है. आजकल के मौहाल का डर पैरेंट्स में इस कदर बन गया है कि उन्हें लड़कियों को लड़कों से बचाने के लिए लड़कों जैसा बनाना पड़ रहा है. ये मैं ऐसे ही नहीं बोल रही हूं मुझे पता चला है.

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दरअसल, दो दिन पहले मेरी दीदी मेट्रो से ट्रैवल कर रही थी, तभी उसने फ़ोन पर बताया कि सोसाइटी में एक लड़का घुस आया था पीकर और उसे घूर रहा था साथ में उसकी बेटी भी थी. उस सोसाइटी में मैं और मेरी बहन की फ़ैमिली रहती है. मैं उस दिन दिल्ली से बाहर थी तो वो मुझे फ़ोन पर बता रही थी. मैंने सुना तो मेरा दिमाग़ ख़राब हो गया. मैं फ़ोन के दूसरी साइड थी, लेकिन मुझे कुछ सुनाई दिया, दीदी ने फ़ोन ऑन रखा था उसके बगल में बैठी एक महिला पूछ रही थी आप जो बोल रही हैं वो सच है मैंने इतना सुना और फ़ोन कट गया.

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फिर जब दीदी घर आई तो उसने मुझे बताया कि उस महिला ने उसे बहुत ही चौंकाने वाली बात बताई. वो ये थी कि वो महिला अपनी 9 साल की बच्ची को सिर्फ़ इसीलिए लड़का बना कर रखती है ताकि उसके साथ ऐसा कुछ ग़लत न हो.

उन्होंने बताया,

मेरी बेटी बहुत चुलबुली है, बोलती बहुत है इसलिए कोई भी उसे आसानी से बहला-फुसला लेता है. यही वजह है कि मैं उसे लड़कियों जैसा नहीं रखती हूं. 

दीदी की बात सुनकर मुझे बहुत अजीब लगा कि हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां लड़कों से बचने के लिए लड़का बनना पड़ रहा है. ये तो उन्होंने अपनी समस्या बताई, लेकिन क्या ये समस्या सिर्फ़ एक ही मां की है? क्या बाकी मांओं को भी ऐसा लगता है? 

अगर ऐसा ही लगता है तो वाकई हम एक ऐसे समाज का हिस्सा हैं, जहां लड़कियां सुरक्षित नहीं है और उनकी सुरक्षा के लिए सरकार, समाज और परिवार सबको सोचने की ज़रूरत है.

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Feature Image Illustrated By: Muskan Baldodia