कुछ दिन पहले की ही बात है. रोज़ की तरह एक नॉर्मल दिन था. दोपहर का समय था, मैं ऑफ़िस में अपने काम में व्यस्त थी. तभी पापा का फ़ोन आता है. मैं फ़ोन उठाती हूं तो उधर से मम्मी के रोने की आवाज़ सुनाई देती है. मैं घबरा जाती हूं. उस एक पल में मेरे मन में पच्चासों चीज़ें चलने लगती हैं. उधर से मां बोलती है कि जयती का बहुत बड़ा एक्सीडेंट हो गया है. जल्दी आ जाओ. 

मैं स्तब्ध हो जाती हूं. जयती मेरी बहन है. मेरी आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं लेते हैं. दिमाग़ में बेहद ही बुरे-बुरे ख़्याल आने लगते हैं. 

मैं अपने आप को थोड़ा सा संभालती हूं और पूरी बात जानने के लिए वापिस घर पर कॉल लगाती हूं. वो बस इतना बोल पाती हैं कि हाईवे पर एक कार का ब्रेक फ़ेल होने की वजह से जयती की स्कूटी से वो कार टकरा गई, जिससे कि उसे बेहद गंभीर चोटें आई हैं. 

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मां भी बेहद हड़बड़ी में थी उसके पास जाने को. और मैं यहां लखनऊ से दूर दिल्ली में अपने ऑफ़िस में ये बात सुन कर काफ़ी सदमे में थी. जिस तरह से मां ने बताया बाद बेहद गंभीर थी. 

मैं तुरंत ऑफ़िस से लखनऊ के लिए निकलती हूं. रास्ते में बार-बार कॉल करके उसकी हालत की भी जानकारी लेती जा रही थी. अधिकतर बार तो ये ही पता चल पाया कि उसकी हालत काफ़ी नाज़ुक है और शरीर से बहुत सारा ख़ून भी बह चुका है.   

दिल्ली से लखनऊ की वो जर्नी मेरे लिए बेहद ही मुश्किल और बहुत लम्बी थी. मन में जितने बुरे ख़्याल आ सकते थे सब आ रहे थे और सबसे भयानक यही कि क्या होगा यदि मैंने उसे खो दिया तो. पूरा रास्ता समय देखते-देखते कटा था मैंने. 

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जैसे ही मैं हॉस्पिटल पहुंची और उसे बेड पर लेटा हुआ सांस लेते हुए देखती हूं मन को एक सुकून सा मिलता है. अपने जीवन में पहली बार मैं अपने किसी क़रीबी को हॉस्पिटल बेड पर देख रही थी. 

मैंने डॉक्टर से जाकर ख़ुद बात करके तसल्ली की मेरी बहन किसी भी तरह खतरें में तो नहीं है. सारी बात हो जाने, हॉस्पिटल में कुछ समय बिताने के बाद मुझे एकदम से एहसास हुआ कि ये कितनी छोटी सी बात है मगर रोज़ सुबह सही सलामत उठना, ऑफ़िस जाना और वापिस घर आ जाना भी बेहद बड़ी बात है. 

हम ज़िंदा हैं और जी रहे हैं इससे ज़्यादा अच्छी बात क्या ही हो सकती है. 

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मुझे एहसास हुआ कि कैसे मेरा छोटी-छोटी चीज़ों को लेकर परेशान होना और शिकायत करना सब बेफ़िज़ूल है. ट्रैफिक से लेकर मौसम तक हमें हर चीज़ में शिकायत करने की आदत है मगर अगर ज़िंदगी ही नहीं होगी तो क्या करेंगे इन सब का. 

बहुत हद तक इस घटना ने मेरे मन में जीवन के प्रति मेरा नज़रिया भी बदला है. शायद अब मैं आने वाले समय की चिंता छोड़ आज में जीने पर ज़्यादा ध्यान दूंगी. ज़्यादा उन सब चीज़ों को लेकर सजग रहूंगी जो मेरे पास है. ज़्यादा शुक्रियामंद रहूंगी. अपनों को ज़्यादा समय दूंगी.   

अब से अपनी ज़िंदगी को लेकर कोई शिकायत करूंगी मुझे हमेशा जयती का हॉस्पिटल बेड पर होना याद आएगा.