पिछली एक सदी में विज्ञान और तकनीक ने ज़बरदस्त तरक्की की है. आज दुनिया कई ऐसी बीमारियों का तोड़ निकाल चुकी है जो कुछ दशकों पहले तक जानलेवा हुआ करती थी. अमेरिका के एक ब्यूरो के अनुसार, 20वीं शताब्दी की शुरुआत में इंसानों का अनुमानित जीवन-काल महज 47.3 वर्ष था लेकिन एक सदी खत्म होते-होते ये 77.85 साल तक पहुंच चुका था क्योंकि मेडिकल साइंस में हुए अभूतपूर्व विकास के चलते 21वीं सदी तक आते-आते दुनिया भर के डॉक्टर्स कई खतरनाक बीमारियों पर काबू पा चुके थे.

हम साल 2017 में प्रवेश कर चुके हैं लेकिन आज भी कैंसर समेत कई ऐसी बीमारियां हैं जो हर साल लाखों लोगों को मौत के आगोश में भर लेती हैं और मेडिकल साइंस आज भी इन्हें जड़ से खत्म करने में नाकामयाब रहा है.

लेकिन दशकों से लाखों लोगों के लिए नासूर बना कैंसर अब शायद बीते ज़माने की बात होने जा रहा है. हाल ही में कैंसर के एक मरीज़ की हैरतअंगेज़ कहानी सामने आई है. 60 साल के बॉब का कैंसर ऐसी खतरनाक स्टेज में था कि डॉक्टरों ने भी अपने हाथ खड़े कर लिए थे. बॉब को बताया गया कि उनके पास अब केवल डेढ़ साल का समय बचा है.

गौरतलब है कि 60 साल के बॉब को तीन साल पहले कंधे में काफी तेज दर्द होना शुरु हुआ था. डॉक्टरों ने न केवल उनके फेफड़ों के कैंसर की पुष्टि की बल्कि रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी के फेल होने के बाद उन्हें ये भी बता दिया गया था कि अब वे ज़्यादा से ज़्यादा 18 महीने ही ज़िंदा रह सकते हैं.

बॉब के केस को देखते हुए डॉक्टरों ने उन्हें मैनचेस्टर में मौजूद क्रिस्टी एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट में क्लीनिकल ड्रग्स ट्रायल के लिए भेजा और वे दुनिया के उन 12 बेहद चुनिंदा लोगों में शामिल होने जा रहे थे जो इस ड्रग के द्वारा इस ख़तरनाक बीमारी से निदान पाने की उम्मीदें पाले हुए थे. 

ये पहली बार था जब इस रहस्यमयी ड्रग को इम्युनोथेरेपी के साथ मिलकर कैंसर के मरीज़ों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था और अपने आप में इस अनूठे प्रयोग ने कई दिलचस्प नतीजे दिखाकर डॉक्टरों को भी हैरान कर दिया. इसे रहस्यमयी इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि अभी तक इस ड्रग का नाम नहीं रखा गया है.

बॉब के डॉक्टर ने बताया कि “उन्होंने इस क्लीनिकल ट्रायल में बेहद असाधारण प्रदर्शन किया है और अगर उनके हालिया स्कैन्स पर नज़र डाली जाए तो उनके शरीर में ट्यूमर के कोई निशान बाकी नहीं रह गए हैं. लेकिन अब भी हमें उनको करीब से मॉनिटर करने की ज़रूरत है ताकि हमें ये पता चलता रहे कि उनका शरीर इस ड्रग पर कोई विपरीत प्रतिक्रिया तो नहीं दिखा रहा है.”

बॉब ने कहा कि “क्रिस्टी फाउंडेशन ट्रस्ट ने मेरी जिंदगी के कई साल और बढ़ा दिए हैं और मैं इस जगह का तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूं. मैं ये कहना चाहता हूं कि जिस भी व्यक्ति को डॉक्टर क्लीनिकल ट्रायल की सलाह दें, उन्हें इस बारे में गंभीरता से ज़रूर विचार करना चाहिए.”