इस पर विश्वास करना थोड़ा कठिन है, पर यह सच के ज़्यादा करीब है कि आज भी दुनिया में कुछेक ऐसी चीज़ें हैं जो विज्ञान और वैज्ञानिकों से परे बनी हुई हैं. जैसे आसमान में कोई विद्युतीय गोला क्यों दिखलाई पड़ता है? या फिर कोई 700 पाउंड का बेहद भारी पत्थर बिना किसी इंसान और जानवर की मदद से कैसे लुढ़कता चला जाता है? क्या यह हमारे लिए हमेशा कोई गुत्थी ही बनी रहेंगी या फिर हम इन्हें सुलझा लेंगे? बहरहाल, पेश हैं देश-दुनिया की कुछ ऐसी ही गुत्थियां जो आज भी मानवमात्र के लिए किसी रहस्य की तरह हैं…

1. सूरज को कोरोना या फिर मुकुट

कोरोना शब्द दरअसल लैटिन से आया है जिसका अंग्रेजी शब्द Crown होता है और हिन्दी में उसे मुकुट कहते हैं. यह वह प्रकाश है जो सूर्य को घेर लेता है. वैज्ञानिकों के लिए यह आज भी एक गुत्थी है कि यह कोरोना क्यों सूर्य की सतह से भी ज़्यादा गरम होता है? जब सूर्य के सतह की गर्मी का तापमान 5800 केल्विन होता है तो वैसे समय पर कोरोना का तापमान 10 से 30 लाख केल्विन क्यों होता है? क्यों सोचने वाली बात है कि नहीं?

2. जीव-जंतुओं का पलायन

पलायन अमूमन हर तरह के जीव-जंतुओं में देखा-सुना जाता है. इसमें पक्षी, स्तनपायी, मछलियां, सरिसृप और कीड़े भी शामिल हैं. आश्चर्य तो यह है कि किस प्रकार ये सारे जीव-जंतु ऐसी अद्भुत यात्राओं पर जाकर वापस लौट आते हैं और वे कभी रास्ता भी नहीं भूलते? इसे लेकर कई तरह की बातें चलती हैं मगर वैज्ञानिक वास्तविक कारण अब तक नहीं खोज पाए हैं.

3. जेलीफिश झील से जेलीफिश का एकदम से गायब हो जाना

पलाउ के आइल मल्क द्वीप के इस झील का नाम कभी जेलीफिश झील हुआ करता था. यह झील एक समुद्री झील है और यह सोतों और बांधों के माध्यम से समुद्र से जुड़ा है. पहले यहां लाखों की संख्या में जेलीफिश देखी जाती थीं मगर सन् 1998 से 2000 के बीच जाने ऐसा क्या हुआ कि इस रास्ते एक भी जेलीफिश नहीं आईं, और वैज्ञानिक इसके पीछे की वजह आज भी नहीं खोज पाए हैं.

4. बर्फीय वृत्त

इन्हें बर्फ का गोला और तश्तरी भी कहते हैं, बर्फीय वृत्त वह दुर्लभ प्राकृतिक संरचना है जो धीमे बहने वाले जल में और बर्फ जमा देने वाले तापमान में होता है. वैज्ञानिक आज तक इस बात को नहीं जान सके हैं कि ऐसा किस प्रकार संभव होता है. मगर यदि लोगों की मानें तो वे एडी करेन्ट्स की वजह से पैदा होते हैं जहां पतली-पतली प्लेटनुमा बर्फ पैदा होती है और धीरे-धीरे और ठंडी हो जाती है. इन बर्फीले वृत्तों का व्यास एक फीट से लेकर 50 फीट तक हो सकता है.

5. बिगफुट

पिछले कई दशकों से देश-दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में लोगों ने ऐसा दावा किया है कि उन्होंने एक भारी-भरकम और ढेर सारे बालों वाला जानवर देखा है, और उसके पूरे शरीर के साथ-साथ उसका पैर भी बहुत बड़ा है. कुछ लोग इस यति भी कहते हैं, हालांकि हिन्दू धर्म ग्रंथों की मानें तो ऐसे जीव वास्तविक हैं और हिमालय की कंदराओं में देखे जाते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे सारे जीव लाखों साल पहले खत्म हो चुके हैं और आज उनकी बात करना भी बेमानी है.

6. शनि ग्रह का तूफ़ान

शनि नाम मात्र से ही पूरा हिन्दू समाज रोमांचित हो उठता है. शनि को विनाश और बिगाड़ का देवता कहा जाता है. मगर इधर वैज्ञानिकों ने सन् 2013 में शनि ग्रह की सतह पर एक भारी तूफ़ान देखा था. यहां उस तूफ़ान की तीव्रता 530 किमी प्रति घंटा थी. पृथ्वी पर तो समुद्र एक बड़ी वजह है कि यहां भारी तूफ़ान उठते हैं मगर शनि ग्रह पर ऐसी कोई वजह नहीं दिखलाई पड़ती.

7. मोनार्क तितली का पलायन

हम पहले भी जीव-जंतुओं के पलायन की बात कर चुके हैं, मगर इस जीव का पलायन तो बिल्कुल से चौंकाता है. इस तितली का जीवन मात्र 6 माह का होता है. इसका मतलब होता है कि किसी जगह पर वापस लौटने का मतलब होता है कि उनकी अगली पीढ़ी की वापसी पुराने जगह पर होती है. वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं का दावा है कि ऐसा उन तितलियों के एंटीना की वजह से संभव हो सका है, मगर यह पूरा और अंतिम सच नहीं है.

8. जंतुओं की बारिश

अब तक इस दुनिया में ऐसे कई वाकये हुए हैं जब आसमान से जीव-जंतु टपके हैं, मगर 2000 की गर्मियों में कुछ ऐसा हुआ कि पूरी दुनिया दंग रह गई. दरअसल यहां की सड़कों पर एकाएक मछलियां बरसने लगीं. कहने वाले कहते हैं कि तूफ़ान किसी जगह पर आकर इस कदर संकुचित हो जाते हैं कि वे वहां से जीवों को उठा ले जाते हैं, और इस तरह के तूफ़ान में कोई एक प्रकार के ही जीव बरसते हैं जैसे मछली, मेंढक और झींगे.

9. नागा फायरबॉल्स

यह एक अजीबोगरीब घटना है. लाओस और थाइलैंड को मेकौंग नदी के ऊपर एक लाल पिंड उभरता नज़र आता है जो पानी के भीतर से ही निकलता दिखाई देता है. अब तक वैज्ञानकों ने ऐसी पूरी कोशिश की है कि वे इस गुत्थी को सुलझा सकें मगर अफ़सोस.

10. मापिमी शांत क्षेत्र

बेहद शांत जगह के नाम से मशहूर मापिमी नामक यह जगह मैक्सिको में स्थित है. यहां समय-समय पर अजीबोगरीब घटनाए घटती हैं. सन् 1970 में यहां से एक मिसाइल की टेस्टिंग की गई थी, हालांकि यह मिसाइल उसका कंट्रोल खो बैठा और यहां गिर पड़ा. अपोलो प्रोजेक्ट के सारे बूस्टर्स भी यहां टूट कर गिर पड़े थे. अब होने को तो यह महज संयोग हो सकता है मगर वैज्ञानिक आज भी इसके पीछे पड़े हैं.

11. भूकंप से निकलने वाली रोशनी

पिछली कई सदियों से ऐसा देखने में आता रहा है कि किसी भारी भूकंप से पहले अलग-अलग जगहों पर भारी प्रकाश हो जाता है. सन् 1960 से पहले लोगों ने तो इसे सिर्फ़ देखा ही था मगर सन् 60 में किसी ने इसकी तस्वीर भी खींच ली. यह पूरा मामला सिर्फ़ चंद सेकेंडों के लिए देखने को मिलता है. वैज्ञानिक इसके लिए पाइज़ोइलेक्ट्रिसिटी, घर्षण से उठने वाली रोशनी और इलेक्ट्रोकाइनेटिक्स को वजह मानते हैं, मगर अब तक वे किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाए हैं.

12. ज्वालामुखीय रोशनी

वैज्ञानिकों ने ऐसा पाया है कि जैसी रोशनी भूकम्प से ठीक पहले देखने को मिलती है वैसी ही रोशनी ज्वालामुखी के फटने से पहले देखे जाते हैं. हालिया अध्ययन की मानें तो यह बड़े-बड़े पत्थरों के टकराने और घर्षण का परिणाम है.

13. चंद्रमा भ्रम

कहा जाता है कि चांद जब क्षितिज पर होता है तो यह सामान्य से ज़्यादा बड़ा दिखलाई पड़ता है. मगर वही चांद जब आसमान में ऊपर होता है तो उसमें कोई परिवर्तन नहीं दिखलाई पड़ता. हालांकि थ्योरियां तो कई हैं जो ऐसा दावा करती हैं कि ऐसा क्यों होता है, मगर किसी के पास भी कोई ठोस जानकारी नहीं है.

14. एक समय पर चमकने वाले जुगनू

यह प्रजाति अमेरिका के धुंआई पर्वतों में पाई जाती है. ये जुगनू एक साथ ही जलते-बुझते हैं जैसे संगीत पर नाच रहे हों. ऐसा वे साल में एक बार ही करते हैं और उनके ऐसा करने की कोई वजह अब तक नहीं पता चल सकी है.

15. बिल्ली का म्याऊं करना और घुरघुराना

क्या आपको पता है कि बिल्ली की घुरघुराहट जानवरों के साम्राज्य की सबसे रहस्यमयी आवाज़ है? वैज्ञानिकों का कहना है कि वे अलग-अलग समय पर अलग-अलग आवाज़ें निकालती हैं. आराम करते वक़्त अलग आवाज़, खाते वक़्त अलग आवाज़ और बच्चों को जन्म देते वक़्त अलग आवाज़. शायद यही वजह हों कि इनकी घुरघुराहट का रहस्य कोई नहीं जान पाया है.

16. हमपैक व्हेल का गीत गाना

हमपैक व्हेल का पुरुष एक बहुत लंबी और जटिल आवाज़ निकालता है, पहले पहल यह माना गया कि यह महिला व्हेलों को आकर्षित करने हेतु ऐसा करता है, मगर अध्ययन से ऐसा पता चलता है कि वे पुरुष व्हेल को भी आकर्षित करते हैं. वे एक दूसरे के लिए गीत गाते हुए आगे को बढ़ते हैं. आज भी हमपैक व्हेल का संगीत पूरी दुनिया के लिए एक रहस्य है.

17. ब्रम्हांड की शुरुआत

कहा जाता है कि ब्रम्हांड की शुरुआत के पीछे बिगबैंग थ्योरी ही कारण है. कहा जाता है कि आज से लगभह 14 बिलियन वर्ष पूर्व पूरा ब्रम्हांड एक ही इकाई था. हालांकि यह थ्योरी सारी गुत्थियां नहीं खोलती कि बिगबैंग से पहले ब्रम्हांड का स्वरूप क्या था? अब यह भी तो एक रहस्य ही है, है कि नहीं?

18. बरमूडा ट्राएंगल

यह जगह अब तक न जाने कितने पानी के जहाजों और हवाई जहाजों को ख़ुद में समाहित कर चुका है? कहते हैं कि इसके नज़दीक जाने वाला कोई भी वापस लौट कर नहीं आ सका. दक्षिण अटलांटिक सागर के पश्चिमी हिस्से में स्थित यह रहस्यमयी जगह आज भी एक अनसुलझी गुत्थी है. वैज्ञानिक इसके पीछे मिथेन गैस के तूफ़ान, समंदर के तूफ़ान, मानवीय गलतियां और न जाने क्या-क्या वजह बताते हैं मगर ये सारी बातें लोगों के गले नहीं उतरतीं. हालांकि कई लोग चुंबकीय दाब को भी एक बड़ी वजह बताते हैं. अब बाकी सच्चाई तो ईश्वर ही जाने.

19. परीय गोलपिंड

दक्षिण अफ्रीका के घास के मैदानों में पाए जाने वाले यह परीय गोलपिंड ख़ुद में ही एक आश्चर्य हैं. ये वृत्तनुमा घसियल गोलपिंड 2 से 14 मीटर व्यासीय लंबाई के हो सकते हैं. वैज्ञानिक इस बात का पता अब तक नहीं लगा पाए हैं कि यह किस प्रकार निर्मित हो जाता है? कुछ लोगों का मानना है कि ज़मीन में रहने वाले दीमक इसे निर्मित करते हैं मगर इसका कोई पुख़्ता सबूत नहीं है.

20. व्हेलों का किनारे पर आकर आत्महत्या कर लेना

हर साल लगभग 2000 व्हेलें समंदर के किनारों पर आकर ख़ुदकुशी कर लेती हैं. लाख कोशिशों के बाबजूद वैज्ञानिक इसके पीछे की वजह नहीं खोज पाए हैं. इसे लेकर हज़ार तरह की बातें हैं मगर कोई बात पुख़्ता नहीं है.

21. पिंडीय रोशनी

यह शायद अब तक की सबसे अधिक उलझाने वाला गुत्थियों में से एक है. इसमें एक छोटे मटर के दानें से लेकर कई मीटर तक के पिंड शामिल हैं. हालांकि इसके उत्पन्न होने की वजह तूफ़ानों को माना जाता है. यह पूरी प्रक्रिया किसी सामान्य बिजली चमकने से लंबे समय तक चलती है. सन् 1834 से ही इस पूरे प्रकरण पर शोध चल रहा है मगर वैज्ञानिकों के लिए आज भी यह एक उलझन ही बना हुआ है.

22. हेसडालेन रोशनी

सन् 1940 से या फिर उसके पहले से ही इस विषय पर शोध हो रहा है कि इस रोशनी के उठने का वाजिब कारण क्या हैं? यह रोशनी कभी पीले तो कभी सफेद रंग का होता है. सन् 1981 से 1984 के बीच यह रोशनी लगभग सप्ताह में 20 बार देखी जा सकती थी. आज इसे साल में 10 से 20 बार देखा जा सकता है. कई तरह के शोधों और अध्ययन के बावजूद आज भी यह गुत्थी और रोशनी अनसुलझी है.

अब जो आपके सामान्य ज्ञान में थोड़ी-बहुत बढ़ोत्तरी हो गई हो तो इसे अपने दोस्तों के बीच बढ़ा दीजिए, आख़िर वे भी तो जानें कि प्रकृति से बड़ा कलाकार कोई और नहीं.