नाम बदलने का ऐसा दौर चल पड़ा है कि लोग अब इस पर चुटकुले भी बनाने लग गए. अब नाम का बदलना किसी को चौंका भी नहीं रहा. बस एक दिन तक सोशल मीडिया पर हौ-हल्ला सुनने को मिलता है, अगले दिन सब सामान्य हो जाता है.

लेकिन नाम तो पहले भी बदलते थे, तब लोगों ने इस चीज़ को कैसे लिया या अब भी जिनके शहरों के नाम बदल रहे हैं, वो इसके बारे में क्या सोचते हैं. ये सवाल एक रेडिट यूज़र के दिमाम में आया. इसके बाद सबने अपने दिल और दिमाग़ की बात लिख दी.

जिस तरह तेलांगना की चुनावी रैलियों में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने जगहों के नाम बदलने की बात कही, इससे साबित होता है नाम बदलना मुख्यरूप से राजनैतिक हथकंडा है. इस बात पर रेडिट के यूज़र्स ने भी सहमति ज़ाहिर की है.

1996 में मद्रास का नाम बदल कर चेन्नई कर दिया गया. ये लगभग 22 साल पुरानी बात हो गई फिर भी कई लोग इस नाम को नहीं अपना सके. जो जेनरेशन नाम बदलने के बाद पैदा हुई, उसे इस बात से ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ा.

कलकत्ता और मुंबई के भी नाम बदल गया था. इस बात से कलकत्ता वाले ज़्यादा ख़फ़ा लग रहे हैं.

शहरों के नाम बदलने वाली लिस्ट में गुरुग्राम ज़्यादा नीचे नहीं है इसलिए वहां के लोग अब भी गुड़गांव के ही आदी हैं.

सबसे मज़ेदार जनता दिल्ली की है. आप चाहे डेल्ही कह लो या दिल्ली कह लो, चाहे राजीव चौक कह लो सी. पी कह लो… वो ‘मैनू की फ़र्क पैंदा ए’ वाले Attitude के साथ मस्त हैं.

अब ये सवाल आप तक पहुंच चुका है, इसलिए आप भी ज़रूर बताएं कि आपके शहर का नाम बदला तो आपको कैसा लगा या कैसा लगेगा?