कल्पना कीजिए एक ऐसे व्यक्ति के बारे में, जो अपने देश में ही आज़ाद न हो?
वो अपने ही देश के ज़्यादातर हिस्सों में घूम नहीं सकता, वो अपने ही देश में जहां चाहे रह नहीं सकता, वो अपने ही देश में अपनी मर्ज़ी से खेती नहीं कर सकता और योग्यता होने के बावजूद सरकारी नौकरी नहीं कर सकता. वो अपने देश की सरकार नहीं चुन सकता और इतनी पाबंदियां सिर्फ़ इसलिए कि ईश्वर ने उस व्यक्ति को जो रंग दिया है, वो काला है.
अब कल्पना से हक़ीक़त में आइये क्योंकि आज से दो दशक पहले दक्षिण अफ़्रीका एक ऐसा ही देश था.
इस देश में रंगभेद सदियों से चल रहा था, जिसे एक लम्बे और यातनापूर्ण संघर्ष के बाद नेल्सन मंडेला ने 1994 में वहां के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बनकर समाप्त किया. ये उनके राजनीतिक संघर्ष का हिस्सा है. मंडेला ने रंगभेद के अलावा भी कई बुराइयों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी थी.
एड्स के ख़िलाफ़ मुखरता से बोलने वाले नेता
नेल्सन मंडेला ने राजनीतिक संघर्षों से अलग इंसानियत के लिए कई लड़ाइयां लड़ी थीं. उनमें से ही एक थी HIV/AIDS के ख़िलाफ़ लड़ाई. 2000 के आस-पास दक्षिण अफ़्रीका में 15 से 49 साल के 24.5% लोग यानी लगभग 40 लाख से ज़्यादा लोग HIV/AIDS से पीड़ित थे. अफ़्रीका जैसे रूढ़िवादी देश में, सेक्स और एड्स पर खुलकर बोलना और उसे रोकने के लिए जागरूकता फैलाना आसान नहीं था. मंडेला ने ख़ुद माना था कि जब वो एड्स के बारे में कोई बात करते थे, तो लोग उन्हें ग़लत समझते और नज़रअंदाज़ करते थे.
जब एड्स ने ले ली उनके ही बेटे की जान
नेल्सन मंडेला के 2 बेटे थे. उनमें से एक की जान कार एक्सीडेंट में गई थी. उन्होंने ज़िन्दगी भर एड्स के ख़िलाफ़ बहुत कुछ बोला. मगर 2005 में उनके ही दूसरे बेटे Makgatho Mandela की जान एड्स ने ले ली. ऐसे में इस नोबेल पुरस्कार विजेता वर्ल्ड लीडर ने बिना किसी झिझक के प्रेस कांफ्रेंस में भरे हुए गले से कहा था, ‘आज मेरे बचे हुए इकलौते बेटे की जान एड्स ने ले ली. पिछले बहुत समय से मैं कहता आया हूं कि HIV/AIDS के बारे में चर्चा करो, इसे छिपाओ मत. मैंने आज आप लोगों को बुलाया है ताकि मैं बता सकूं कि मेरा बेटा एड्स की बलि चढ़ गया है.’ उन्होंने कहा कि अगर आप सामने आकर सबको बताएंगे कि किसी की जान एड्स की वजह से गई है, तो लोगों में जागरूकता फैलेगी.
एड्स को बताया था युद्ध से भी घातक
एड्स के बारे में उन्होंने एक बार कहा था, ‘मैंने उनसे कहा कि अगर हमने एहतियाती क़दम नहीं उठाए, तो ये महामारी हमारे देश को नष्ट कर देगी. HIV किसी युद्ध से भी ज़्यादा ख़तरनाक है. हम यहां जिस वक़्त बात कर रहे हैं, ठीक उसी वक़्त हजारों लोग उससे मर रहे हैं.’ संघर्ष के दिनों में मंडेला जब जेल में थे, तो उनका नंबर 466/64 था, जो बाद में 46664 (Four Double Six Six Four) के नाम से एक गीत के ज़रिये प्रसिद्ध हुआ और एड्स के ख़िलाफ़ मुहीम की पहचान बन गया.
मंडेला दुनिया के सबसे महान और प्रभावशाली नेताओं में गिने जाते हैं. उन्हें दक्षिण अफ़्रीका का ‘गांधी’ भी कहते हैं. अपनी ज़िन्दगी के बेशक़ीमती 27 साल जेल में गुज़ारने वाले मंडेला, अब्दुल गफ्फ़ार ख़ान के अलावा, दूसरे विदेशी व्यक्ति थे, जिन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था. उनके तमाम संघर्षों और लड़ाइयों को रंगभेद और एड्स के खिलाफ़़ कहकर भले हम टुकड़ों में बांट लें, मगर असल में उन्होंने सारी ज़िन्दगी अन्याय, अन्धविश्वास, बुराई और रूढ़िवादिता के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी थी.