हिंदू धर्म में महिलाओं को माता लक्ष्मी का दर्जा दिया गया है, साथ ही ये भी कहा गया है कि जो लोग अपने घर की महिलाओं का अपमान करते हैं या उन्हें किसी भी तरह प्रताड़ित करते हैं लक्ष्मी जी उनके घर में कभी निवास नहीं करती हैं. ये बातें सभी बड़े-बुज़ुर्ग अपनी अगली पीढ़ी को बताते हैं, ताकि वो महिलाओं की इज़्ज़त कर उन्हें लक्ष्मी की तरह पूजें. क्यों सही कहा न?
लेकिन अगर दुनिया की हर औरत मां लक्ष्मी है और इसका सम्मान करना चाहिए, तो मासिक धर्म के दौरान औरतों के साथ भेदभाव क्यों. जी हां, आज भी देश-दुनिया के कई कोनों में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के साथ इतना बुरा बर्ताव किया जाता है, जैसे उन्होंने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो.
महिलाओं के साथ होने वाले इसी दुर्व्यवहार को देखते हुए, बीते बुधवार को नेपाल की संसद ने एतिहासिक निर्णय लिया. संसद ने पीरियड्स में औरतों को अछूत घोषित करने और घर से बाहर निकालने की हिंदू प्रथा ‘छौपदी’ को अपराध की श्रेणी में डाल दिया है. दरअसल, नेपाल के विभिन्न समुदायों में महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान अपवित्र समझा जाता है और इस अवधि में घर से दूर एक झोपड़ी में रहने के लिए मजबूर किया जाता है. इस प्रथा को ‘छौपदी’ के नाम से जाना जाता है.
Good news: #Nepal criminalizes practice that banishes women from the home during menstruation and after childbirth https://t.co/2wPmP7r16h
— Lotte Leicht (@LotteLeicht1) August 9, 2017
नए कानून के तहत महिलाओं को माहवारी के दौरान घर से बाहर रहने के लिए मजबूर करने की परंपरा को मानने के लिए बाध्य करने वालों को तीन महीने की सज़ा या तीन हज़ार नेपाली रुपये तक का ज़ुर्माना लग सकता है. दरअसल, ‘छौपदी’ प्रथा के कारण अब तक गांव की कई महिलाएं अपनी जान गंवा चुकी हैं, जिसके चलते नेपाल की संसद ने ये फ़ैसला सुनाया.
#menstruation not a crime but isolating #menstruatingwomen is now real crime in #Nepal : https://t.co/AwnFbJQL39 via @newsbharati
— Mousumi Paul (@mpmousumi) August 10, 2017
ये प्रथा महिलाओं पर पीरियड्स के अलावा बच्चे के जन्म के बाद भी लागू होती है. ये प्रथा महिलाओं के लिए नर्क की सज़ा से कम नहीं होती. उनकी हालत एक अछूत जैसी होती है. न उन्हें घर में जाने की इज़ाज़त होती है, न खाना-पीना छूने की. यहां तक कि वो जानवरों का चारा भी नहीं छू सकतीं. जिस झोपड़ी में वो रहती हैं, उनमें तमाम तरह के ख़तरे होते हैं. जानवरों का खौफ़ तो छोड़िए, उन्हें बलात्कार के डर का भी सामना करना पड़ता है.
वहीं सोशल मीडिया पर भी नेपाल संसद द्वारा लिए गए इस ऐतिहासिक फ़ैसले की काफ़ी प्रशंसा हो रही है. नेपाल ने तो कर दिखाया, भारत में कब?