दोस्तों के बीच मस्ती-मज़ाक चलता रहती है. इधर-उधर की बातें होते रहती है, तभी कुछ ऐसी चीज़ो का ज़िक्र हो जाता है कि सब बचपन की यादों में चले जाते हैं. लंबी सांस लेकर कोई एक बोलता है- वो भी क्या दिन थे यार!
सबका नॉसटैलजिया (यादें) अलग-अलग होती हैं. कोई पतंगें उड़ा कर बड़ा हुआ है, तो कई कबड्डी में घुटने फुड़वा कर. सबकी बातें तो नहीं लिखी जा सकतीं इसलिए कुछ कॉमन चीज़ों का ज़िक्र निकालते हैं, जो सबके लिए नॉसटैलजिया का काम करती है.
1. दूरदर्शन
भारत में नॉसटैलजिया का दूसरा नाम ही दूरदर्शन हैं. शक्तिमान, चित्रहार, रविवार की फ़िल्में और पता नहीं कितना कुछ था दूरदर्शन के पास. इसके हर एक प्रोग्राम की एक झलक नॉसटैलजिया में ले जाती है.
2. कुमार सानू
हमारे लिए नॉसटैलजिया मतलब 90’s का दौर और 90’s मतलब कुमार सानू के गाने.
3. अमरीश पुरी
बचपन में हम इतने अच्छे अभिनेता को सिर्फ़ फ़िल्मों में विलेन का किरदार करते देख बुरा इंसान मान बैठे थे.
4. VLC Player
जब भी रोड पर वो प्लास्टिक की लंबी टोपी दिखती है, तो उसे देख कर आज भी VlC मीडिया प्लेयर की याद आ जाती है.
5. 1 DVD में 5 फ़िल्में
10 रुपया भाड़ा देकर दो दिन के लिए ये DVD घर पर आती थी लगातार पांच फ़िल्में हाउस फुल चलती थी.
6. सविता भाभी
इनके बारे में ज़्यादा जानकारी देने की ज़रूरत महसूस नहीं होती.
7. गली क्रिकेट
दीवार पर लकीर खींच कर विकेट बनाना और छक्के मारना पर आऊट हो करार देना, ये पूरे देश के गली क्रिकेट का नियम था.
8. अचार
अचार तो आज भी खाते हैं और आज भी घरों मे अचार बनता ही है लेकिन पता नहीं क्यों इसके साथ एक अनजान बचपन की कहानी होती है जो सबको नॉसटैलजिया वाली फ़ीलिंग देती है.
9. पोलियो
‘दो बूंद ज़िंदगी की’ रट्ट गया था सबको. अमिताभ बच्चन जी आते थे और सबको चेता कर जाते थे कि एक भी बच्चा नहीं छूटना चाहिए.
10. स्टूडियो में फ़ोटो खिंचाना
सेल्फ़ी के ज़माने में पासपोर्ट साइज़ की फ़ोटो निकलवाने जब भी स्टूडियो जाना पड़ता है तब मन नॉसटैलजिया-नॉसटैलजिया हो जाता है.
इनके अलावा और कौनसी चीज़ें हैं जो अपको नॉसटैलजिया की दुनिया में ले जाती हैं?