McDonald’s और Dominos की जेनरेशन से अगर इंडियन कॉफ़ी हाउस की Legacy के बारे में पूछा जाए, तो वो क्या ही बता पाएंगे. जहां आज एक बर्गर और कुछ फ्रेंच फ़्राइज़ पर बातें मिनटों में निपट जाती हैं. वहीं तब एक अख़बार और कॉफ़ी का साथ दिन भर के गपबाज़ी का इंतज़ाम हो जाता था. पुरानी कुर्सियां, खुरदुरे टेबल, बिखरे हुए अख़बार, क़ॉफ़ी की ख़ुशबू और शहर के अदब से बनी है Indian Coffee House.



आपने अपने शहर में Indian Coffee House देखा ज़रूर होगा, चाहे कभी वहां गए हों या न गए हों. वहां से गुज़रते समय ये ज़रूर लगता होगा कि वक़्त कुछ पीछे चला गया है. ये जगह आज के इंडिया में फ़िट नहीं बैठ रही. इसकी जगह फ़ूड कोर्ट होता तो सही रहता. आपके मन में आते इस ख़्याल को ग़लत भी नहीं कहा जा सकता. बदलाव की इस रेस में Indian Coffee House बहुत पीछे रह गया. लेकिन सिर्फ़ इस कारण से ये मानना कि इसे बंद हो जाना चाहिए, मेरे हिसाब से एक कल्ट के साथ ज़्याददती होगी.

क्या है Indian Coffee House की Legacy?
1940 में भारत में ब्रिटिश सरकार ने कॉफ़ी को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग शहरों में कॉफ़ी हाउस खोले थे. शुरुआत में इसकी काफ़ी धूम रही. लेकिन धीरे-धीरे कुछ सालों के बाद कुछ शहरों में ग्राहकों की कमी के कारण ये बंद होने लगे. वहां काम करने वाले लोग बेरोज़गार होने लगे. जहां कॉफ़ी हाउस किसी तरह चल भी रहे थे, वहां भारी तादाद में लोगों की छटनी की जाने लगी.


देश को आज़ादी मिल चुकी थी. ब्रिटिश सरकार द्वारा खोले गए कॉफ़ी हाउस मरणासन्न पर थे. तब एक बड़े मार्कसवादी नेता, श्री ए.के.गोपालन और श्रीमती सुभद्रा जोशी ने आगे आकर इस डूबते कॉफ़ी हाउस की कमान अपने हाथ में ली.


श्री ए.के गोपालन के निर्देश पर सभी राज्यों में कॉफ़ी हाउस के वर्कर्स ने एक सहकारी समिति बनाई. सभी कॉफ़ी हाउस को राज्यों की सहकारी समिति के हवाले कर दिया गया. तब के प्रधानमंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरु ने भी इनके काम को अपना समर्थन दिया.

इस नए कॉफ़ी हाउस को Indian Coffee House नाम दिया गया. सबसे पहला Indian Coffee House 27 अक्टूबर,1957 को दिल्ली में खोला गया.

यहां काम करने वाले सभी कर्मचारियों के पास ही इसका मालिकाना हक़ होता है. जो भी कर्मचारी 2 साल से ज़्यादा Indian Coffee House में काम कर लेता है, वो सहकारी समिति का सदस्य बन जाता है. आज जो Indian Coffee House में उच्च पदाधिकारी हैं, वो कभी न कभी निचले स्तर के कर्मचारी भी रहे होंगे, क्योंकि नियम के अनुसार ऐसा करना अनिवार्य है.



Indian Coffee House आज भी भारत के कई राज्यों में चल रहा है. उसी पुराने अंदाज़ में, वेटरों की वही पुराना ड्रेस कोड, सदियों पुरानी कुर्सियां, दोपहर की अलसायी नींद जैसी…


जैसा कि सभी फ्रेंचाइस व्यवस्था वाले रेस्टोरेंट होते हैं, एक दूसरे के कॉपी-पेस्ट. Indian Coffee House के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं है, एक कॉफ़ी हाउस दूसरे से बिल्कुल अलग. जो समानताएं होती हैं वो ये कि आपको हर Indian Coffee House किसी पुरानी इमारत में दिखेगा.