घर के न जाने कितने ही बेकसूर तकियों को बच्चों के WWE के शौक़ की ख़ातिर अपनी कुर्बानी देनी पड़ी होगी. छोटे भाई/बहन बिना बात के ही बड़े भाई से चोकस्लैम के शिकार हुए होंगे. वो तो मम्मी घर पर होती हैं वरना बच्चों के बीच कब का Hell In A Cell Match हो जाता.  

बड़े भाई अक्सर अंडरटेकर, The Rock, स्टोन कोल्ड आदि बनना पसंद करते थे. वहीं छोटों को Rey Mysterio, एडी गुररे, जैफ़ हार्डी का रोल प्ले करना पड़ता था. वीडियो गेम में भी यही होता था. छोटा भाई अंडरटेकर के साथ खेल ही नहीं सकता था, पता नहीं ये WWE वालों ने ये नियम कब बना दिया!  

अब तो आदत छूट गई है लेकिन एक बात तब भी नहीं समझ आती थी अब भी बहुत पल्ले नहीं पड़ती. ये दो पसली वाले रेफ़री के भीतर इतनी हिम्मत कहां से आ जाती है, जो हट्टे कट्टे खिलाड़ियों को धक्का देने लगते हैं या उनपर चिल्ला देते हैं. मैच के दौरान मुझे तो यही चिंता खाई जाती थी कि कहीं ये बेचारे दो लोगों की लड़ाई में चपेट में न आ जाए. रेफ़री के लिए चिंता होती थी और खिलाड़ियों के मैनेजर पर गुस्सा आता था. एक भी मैनेजर ऐसा नहीं था, जो लोगों को पसंद आता हो. सबके सब खांटी कमीने किरदार में होते थे. इनका काम बस अपने हारते खिलाड़ियों को बेइमानी करके जीतने में मदद करना होता था.  

आज जब किसी से पूछो कि WWE में कौनसा मैच उनके फ़ेवरेट होता था, तो अधिकांश लड़के टैग टीम, लेडर मैच, सेल मैच, रोयल रंबल आदि का नाम लेंगे. लेकिन असलियत ये नहीं होती, सब छुप-छुप के लड़कियों की फ़ाइट देखते थे जिसमें जीत प्रतिद्वंदी खिलाड़ी के कपड़े उतारने से तय होती थी.  

हमारे बचपन पर WWE का असर लड़ाइयों तक सीमित नहीं था. रिंगटोन, हाव-भाव की भी ख़ूब नकल की गई है. John Cena का एंट्री सॉन्ग आज भी रिंग टोन होता है. बाथरुम में सीशे के सामने अभी भी कभी-कभी The Rock की तरह भौंवे चढ़ाने की कोशिश हो जाती है. बिस्तर से उठने के दौरान कई बार सबने Shawn Michaels बनने की कोशिश की है.  

अब बड़े हो गए तो समझ आ गया कि WWE में सबकुछ स्क्रिप्टेड होता है, लड़ाईंया असली नहीं होतीं, खून असली का नहीं बहता. केन और अंडरटेकर भाई नहीं हैं. फिर भी वक़्त मिलने पर YouTube और टीवी पर देख ही लेते हैं, फ़िल्मों में भी असली की लड़ाई नहीं होती. फिर भी उसे देखते हैं न!