26/11, वो तारीख़ है जिसे मुंबई के लोग शायद ही भूल पाए. 10 आतंकियों ने कभी न रुकने वाले मुंबई शहर की धड़कन बंद कर दी थी.
Livemint से बातचीत में अंजलि ने कहा, ‘मुझे ये एहसास हुआ कि मुझे अपने मरीज़ों की देखभाल के लिए ज़िंदा रहना था, उन्हें सुरक्षित रखना था. वो मेरी ज़िम्मेदारी थे.’
जब मैंने साधारण कपड़े पहने तो मुझे एहसास हुआ कि मैं रास्ते पर चलते किसी आम आदमी की तरह ही ख़तरे में हूं. मुझे समझ नहीं आया कि मैंने एक रात पहले इतना रिस्क क्यों लिया. मैं भी किसी दूसरे की तरह ज़ख़्मी हो सकती थी या मर सकती थी.
-अंजलि
Livemint के मुताबिक़ लगभग 1 महीने तक रात में हुई एक हल्की सी आवाज़ से ही अंजलि जाग जाती थी.
हमारी मेट्रन ने नर्सिंग कोर्स के दौरान Psychology में Specialisation की थी इसलिए उन्हें पता था कि मुझे कैसे संभालना है. काफ़ी दिनों तक मुझे कोई सीरियस केस या नाइट ड्यूटी नहीं दी गई. उन्होंने मुझे बात करने का प्रोत्साहन दिया और मेरी काउंसिलिंग की.
-अंजलि
हमलों के 1 महीने बाद अंजलि को आर्थर रोड जेल में कसाब की पहचान करने को बुलाया गया. पहले तो उन्होंने मना कर दिया पर बाद में पुलिस के समझाने पर वो परिवार के विरुद्ध गईं और शिनाख़्त करने के लिए राज़ी हो गईं. कसाब को पहचान लेने के बाद कसाब ने अंजलि को बधाई दी जिसके बाद वो ज़रा डर गईं.
अजंली कुलथे को उनकी बहादुरी के लिए सलाम!