अगस्त से लेकर अक्टूबर तक त्योहारों की बहार आ जाती है. सावन से शुरू होकर रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, करवाचौथ, दशहरा, गणेश चतुर्थी, दिवाली और 13 दिनों तक चलने वाला ओणम. अगर ओणम के बारे में आपको ज़्यादा नहीं पता तो अब जान लीजिए. 

कैसे करते हैं ओणम की तैयारियां?

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केरल में ओणम शुरू होने से क़रीब 10 दिन पहले ही फूलों की सजावट होनी शुरू हो जाती है. इसके बाद घर में भगवान विष्णु की मूर्ति लाई जाती है. घर की महिलाएं भगवान की मूर्ति के चारों ओर नाचती हैं और गीत गाती हैं. शाम को गणेश और श्रावण देवता की मूर्ति बनाई जाती है. ओणम के आखिरी दिन को केरलवासी दीपावली की तरह बड़ी धूमधाम से मनाते हैं. इस अवसर पर घरों में तरह-तरह के ख़ास व्यंजन बनाए जाते हैं, जिनमें से पचड़ी–पचड़ी काल्लम, ओल्लम, दाव, घी, सांभर प्रमुख हैं. इसके अलावा केरल के प्रसिद्ध पापड़ और केले के चिप्स भी बनाए जाते हैं. ओणम त्योहार में दूध से जो खीर बनाई जाती है उसका भी काफ़ी महत्व है. केरल में नारियल के पेड़ों की सुंदरता, ताड़ के पेड़ों से भरे तालाब प्राकृतिक सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं.  

ओणम क्या है और कब है?

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ओणम, केरल राज्य का सबसे प्रमुख त्योहार है और ये मलियाली हिन्दुओं का नव वर्ष भी होता है. जिस तरह उत्तर भारत में फ़सल के पक जाने पर वैसाखी मनाते हैं, उसी तरह दक्षिण भारत में फ़सल पकने पर ओणम मनाते हैं. इसे दस दिनों तक मनाया जाता है. इस साल ओणम 1 सितंबर से शुरू होकर 13 सितंबर तक मनाया जाएगा. इस दौरान घर की महिलाएं रंगोली के चारों तरफ़ गीत गाते हुए लोक नृत्‍य करती हैं.  

ओणम फ़ेस्टिवल – सांस्कृतिक समारोह, अनुष्ठान और अभ्यास

Attachamayam (जुलूस)

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ओणम की शुरुआत उस जुलूस से होती है जो कोच्चि के थिपुनीथारा से शुरू होता है. इस दौरान महाभारत और रामायण से जुड़ी कहानियों को लोक नाटकों और रंग-बिरंगी झाकियों के रूप में दर्शाया जाता है. इसके अलावा केरल की संस्कृति को हाथी मार्च और ड्रम बीट्स के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं. ये जुलूस थिपुन्निथरा की ओर जाता है, जो विष्णु के अवतार वामन को समर्पित है. 

वल्लमकली: द फ़ेमस बोट रेस

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ओणम के त्योहार के दौरान पारंपरिक Boat Race होती है. इसमें पेडल्ड लॉन्गबोट्स, स्नेक बोट्स और केरल की पारंपरिक नावें शामिल होती हैं. इस दौरान लोगों का मनोरंजन करने के लिए वचीपाटू या नाव के गीत गाए जाते हैं. इसे केरल की पम्पा नदी पर आयोजित किया जाता है. 

‘ओणसद्या’ पारंपरिक दावत

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मलयालम में सद्या का अर्थ भोज होता है. ये शाकाहारी होता है. इसमें 29 व्यंजन, चावल, सांबर, चिप्स, शकरवरात्रि, इंजिपुली, पापड़म, अवलीन, ओलान, अचार, दाल, थोरन, घी, रसम, पुलसेरी, एरिशेरी, पचड़ी, नारियल चटनी और मोरू होते हैं. इन्हें केले के पत्ते पर परोसा जाता है. 

कुछ अन्य रीति-रिवाज़ होते हैं

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इस दौरान मंदिरों में पलमायरा के पेड़ को लकड़ी और सूखे पत्तों से घेरा जाता है. इसके बाद पेड़ को एक मशाल के साथ जलाया जाता है जो महाबली के बलिदान के प्रतीक के रूप में जलकर राख हो जाता है. इसके अलावा एक और रिवाज़ होता है, जिसमें ग्रामीण इलाकों में युवा पुरुष और महिलाएं ओनापाटू गाते हैं और झूला झूलते हैं.

पूकलम  

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ओनापुक्कम कुछ और नहीं बल्कि फूलों से बनाई गई बहुत बड़ी रंगोली है, जो फूलों की चादर सी लगती है. ये एक धार्मिक कला है, जिसमें रचनात्मक तरीके से रंगोली को सजाया जाता है. केरल के सभी हिस्सों में पुूकलम प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं.

ओणम के पारंपरिक नृत्य

केरल की पारंपरिक नृत्य शैली कथकली को सभी बहुत पसंद करते हैं. इसके अलावा ये नृत्य भी है:

तिरुवातिरकली

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ओणम के दिन महिलाओं द्वारा किया जाने वाला एक लोकप्रिय नृत्य है. इसके साथ थिरुवथिरा पाट्टू है, जो भगवान शिव और पार्वती के लोक गीत हैं. महिलाओं का समूह नीलविलाकु (एक खड़ा दीपक) के चारों ओर नृत्य करता है.

कुम्‍मातीकलि

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इसमें भारी भरकम रंगीन मुखौटे पहनकर नृत्य किया जाता है, जिसमें कृष्ण, नारद, द्वारिका और किरात को दर्शाया गया है. ये केरल के त्रिशूर ज़िले में सबसे अधिक प्रचलित है. 

ओणम काली

ये नृत्य का एक और रूप है, जहां कलाकार एक दीपक के चारों ओर मंडलियां बनाते हैं और उन गीतों पर नृत्य करते हैं, जो रामायण की कहानियों को दर्शाते हैं. 

पुलिकली 

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इस नृत्य को कडुवक्ली के रूप में भी जाना जाता है. ये चौथे दिन किया जाता है, जहां कलाकार चमकीले पीले, लाल और नारंगी रंग के बाघों के रूप में ख़ुद को रंगते हैं और चेंदा, थकिल और उडुक्कू जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर नाचते हैं.

मंदिरों में पूजा नहीं करते हैं

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जिस दिन ओणम शुरू होता है उस दिन से लोग मंदिर में पूजा नहीं करते हैं, बल्कि घरों में ही देवी-देवताओं को पूजते हैं. इसके अलावा पहले दिन से ही घरों के आंगन में फूलों की पंखुड़ियों से रंगोली बनानी शुरू कर दी जाती है, जिसमें 10 दिनों तक फूल जोड़े जाते हैं. इससे 10वें दिन यानी कि तिरुवोनम तक रंगोली का आकार काफ़ी बड़ा हो जाता है. 

कहां हुई थी ओणम की शुरुआत?

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, केरल के त्रिकाकरा मंदिर में ओणम की शुरुआत हुई थी. इस दौरान मंदिर में कई आयोजन होते हैं. साथ ही दस दिनों तक यहां एक ख़ास तरह का झंडा फ़हराया जाता है. कथाओं की मानें, तो ब्राह्मण ऋषि प्रह्लाद के पास महाबली नामक एक पौत्र था, और भगवान विष्णू का बहुत भक्त था. भगवान विष्णु के उसे अपना भक्त न मानने के चलते उसने देवताओं से युद्ध करके उन्हें हराकर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया. महाबली ने देवताओं पर अपनी जीत के बाद एक यज्ञ किया. भगवान विष्णु ने महाबली की भक्ति का परीक्षण करने का ये अवसर लिया और वामन नामक एक बौने लड़के के अवतार में महाबली के पास पहुंच गए.

राजा ने लड़के को वो सब कुछ देने की पेशकश की, लेकिन वामन ने इनकार कर दिया और कहा कि किसी को अपनी ज़रूरतों से ज़्यादा नहीं चाहिए और उसे तीन-पेस की ज़रूरत थी. महाबली, हालांकि लड़के की इच्छा से आश्चर्यचकित था, लेकिन वो इसे देने के लिए सहमत हो गया. वामन बढ़े और एक पैर और आकाश के साथ ज़मीन और पानी को एक दूसरे पैर से ढंक दिया, अब अपने तीसरे पैर की महाबली को ख़ुद को चढ़ाने के लिए. वामन ने महाबली को नरक में गिरा दिया, लेकिन उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे हर साल अपनी भूमि पर जाने का वरदान दिया. महाबली के पुनर्मिलन में ओणम का त्योहार है.

ओणम ख़त्म होने के बाद

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अगर थिरुवोनम मुख्य अवसर है, तो अगले दिन एविटॉम (तीसरा ओणम) और चटायम (चौथा ओणम) को महाबली के प्रस्थान की तैयारी की जाती है और पूकलम को साफ़ कर दिया जाता है. ओनाथप्पन की मिट्टी की मूर्तियों को नदी या समुद्र में विसर्जित कर दिया जाता है. केरल के कुछ हिस्से अभी भी वल्लमकली और पुलिकली का आयोजन करते हैं. 

ओणम केवल एक केरल उत्सव नहीं है. ये जाति और पंथ की परवाह किए बिना दुनिया भर के सभी राज्यों में मनाया जाता है. संयुक्त अरब अमीरात, संयुक्त राज्य अमेरिका और सिंगापुर में रहने वाले मलयाली प्रवासी इसे मनाते हैं.