मायूस होकर हम कई दफ़ा ये कह देते हैं, ‘यार मेरी तो क़िस्मत ही ख़राब है!’


या फिर ये भी सोचते हैं ‘करोड़पति होता तो लाइफ़ सेट होती, न दफ़्तर की चिकचिक और न Rent, EMI भरने की चिंता’ 

हक़ीक़त में दुनिया में हर कोई मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा नहीं होता. जो लोग मेहनत करके टॉप पर पहुंचते हैं उनका रुतबा ही अलग होता है.  

Humans of Bombay ने शेयर की है एक ऐसे शख़्स की कहानी जो फ़र्श से अर्श पर जा पहुंचा. विकी रॉय 11 साल की उम्र में एक अच्छी ज़िन्दगी की तलाश में घर से भाग गया था. उसने कई परेशानियां झेली और आज वो एक सफ़ल फ़ोटोग्राफ़र है. 

विकी की कहानी पढ़कर आपको अपने सपनों पर और ज़्यादा यक़ीन हो जाएगा.  

‘मैं 3 साल का था जब मेरे माता-पिता ने मुझे मेरे दादाजी के पास छोड़ दिया. वो मुझे अक़्सर पीटा करते थे. मैं सुनता था कि लोग एक अच्छी ज़िन्दगी के लिए गांव छोड़कर शहर जाते हैं. जिस दिन मैं 11 साल का हुआ मैंने दादाजी के कुछ पैसे चुराए और दिल्ली की ट्रेन ले ली. जब मैं यहां आया तो मुझे कचरा चुनना पड़ा, ट्रेन में पानी बोतल बेचनी पड़ी और खुली सड़क पर सोना पड़ा- ताकि मैं भूखे न मरूं. मैंने एक ढाबे पर बरतन भी धोए, वहां मुझसे बहुत काम करवाया जाता और लोगों का छोड़ा हुआ खाने दिया जाता.


मैं इतनी गंदी स्थिति में रहता था कि मुझे कई बार Infection हो जाता. एक बार मैं इलाज के लिए एक डॉक्टर के पास गया. मेरी हालत देखकर डॉक्टर ने मुझे बेसहारा बच्चों की देखभाल करने वाले ‘सलाम बालक’ NGO के बारे में बताया. वहां मेरी ज़िन्दगी बेहतर हो गई. मुझे 3 वक़्त का खाना, पहनने को साफ़ कपड़े और सिर पर छत मिली. उन्होंने मेरा एक स्कूल में दाखिला भी करवाया. एक बार एक अंग्रेज़ फ़ोटोग्राफ़र हमसे मिलने आया. सड़क पर रहते हुए मैंने इंसानों को उस तरह से देखा जैसा पहले कभी नहीं देखा था. मैं उसको तस्वीरों के ज़रिए दिखाना चाहता था, ठीक उस फ़ोटोग्राफ़र की तरह.  

जब मैं 18 का हो गया तो NGO ने मुझे 499 का कैमरा दिया और एक लोकल फ़ोटोग्राफ़र के पास इंटर्नशिप पर लगवा दिया.


उन्होंने मुझे सड़कों की ज़िन्दगी पर आधारित मेरी पहली Exhibition ‘Street Dreams’ लगाने में मदद की. बस यहीं से मेरी क़िस्मत चमक गई. लोग मेरी तस्वीरें ख़रीदने लगे और मुझे दुनिया घूमने का भी मौक़ा मिला. मुझे न्यू यॉर्क, लंदन, दक्षिण अफ़्रिका और सैन फ़्रैंसिस्को जाने का मौका मिला. मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरी क़िस्मत यूं बदल जाएगी. 

आज मेरा नाम Forbes 30 Under 30 में शामिल है. हाल ही मैं मेरे गांव से किसी ने मुझे पहचान लिया और मेरे पास फ़ोन कॉल्स की बाढ़ सी आने लगी. 

मैं ये समझ चुका हूं कि हम सभी अच्छी क़िस्मत के साथ पैदा नहीं होते और न ही टॉप पर पहुंचने के लिए सभी को गंदे अनुभवों से गुज़रना पड़ता है. मेरे पास कुछ भी नहीं था और आज मैं अपनी सोच से काफ़ी आगे पहुंच चुका हूं. आप इस बात पर यक़ीन रखिए कि उस भयानक तूफ़ान के बाद भी सूरज निकेलगा.’   

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