कुछ 8 साल पहले की बात है. झारखंड की हसरत बानो की ज़िन्दगी दूभर थी. एक कर्ज़दार उसे रोज़ परेशान करता. हसरत ने कर्ज़दार से 10 हज़ार उधार लिए थे.
New Indian Express से बात-चीत में हसरत ने बताया,
मेरे पति मज़दूरी करते थे और हम कर्ज़दारों पर निर्भर थे.
-हसरत बानो
गांव कनेक्शन से बात-चीत में हसरत ने बताया,
महाजन और हमारे बीच में बहुत बड़ा फ़ासला था, हम उनके बराबर बैठ नहीं सकते थे. हर बात पर उनकी जी हजूरी करनी पड़ती थी. अगर घर पर आ जाएं तो मेहमानों की तरह खातिरदारी करनी पड़ती थी. उनके सामने न तो हंस सकते थे और न ही खुलकर बोल सकते थे.
-हसरत बानो
हसरत ने आगे बताया कि महाजन से कभी मुक्त हो पाएंगी ऐसा उन्होंने नहीं सोचा था.
पलामू ज़िले के एक गांव में रहने वाली हसरत की ज़िन्दगी महिलाओं के स्वयं सहायता समूह ने बदल दी. हसरत ने 2013 में ये समूह जॉइन किया. अन्य महिलाओं के साथ मिलकर हसरत हर हफ़्ते 10 रुपये की बचत करतीं.
मुस्लिम परिवार में पैदा होने की वजह से मुझे अकेले घर से बाहर निकलने नहीं दिया जाता था. मैंने ख़ुद को आर्थिक तौर पर स्वावलंबित किया और अब मेरे ससुरालवाले मुझ पर कोई पाबंदी नहीं लगाते.
-हसरत बानो
हसरत बानो अकेली महिला नहीं हैं. ‘आजीविका मिशन’ की बदौलत, झारखंड की 30 लाख महिलाओं की ज़िन्दगी बदल गई है. महिलाएं अपनी सुविधानुसार कभी भी पैसे वापस कर सकती हैं.