2018 में खड़े होकर देखो तो 1947 बहुत धुंधला नज़र आएगा, वो भी तब जब आपने बंटवारे की फ़िल्में देखी होंगी, कहानियां पढ़ी होंगी, किस्से सुने होंगे या इतिहास का जानकारी होगी. लेकिन आज भी कुछ लोगों के ज़हन में 1947 की यादें आइने की तरह साफ़ है. ये वो लोग हैं जिन्होंने 1947 को अपनी आंखों से देखा, उसको जीया है.

पाकिस्तान का एक मशहूर मीडिया हाउस Dawn और भारत के Hindustan Times ने सांझे रूप से एक स्टोरी की है. इसमें उन लोगों के साक्षात्कार लिए गए हैं, जिन्होंने बंटवारे को अपनी आंखों से देखा है, उसमें अपना बहुत कुछ सहा है.

1. वसंद मल

उम्र बारह साल थी, तब उनका परिवार सिंध में रहता था. पिता जी ज़मींदार थे. 1942 बाढ़ की वजह से उनका गांव बर्बाद हो गया था. परिवार को भिरकन के समीप चाक शहर में जा कर बसना पड़ बया था. 1946 तक माहौल बिगड़ने लगे थे. वसंद मल के चाचा और रिश्तेदार भारत के विभिन्न शहरों में जा कर बसने लगे थे.

1948 की हालत ये थी कि पूरे शहर में मात्र 60 हिन्दू परिवार बचे थे. वसंद मल के पिता ने पाकिस्तान को नहीं छोड़ा. वसंद मल बताते हैं कि भारत जाने का प्रति व्यक्ति ख़र्च सौ रुपये पड़ता था. जो तब के हिसाब से बहुत महंगा था. उनका ये भी कहना था कि उनकी पंचायत की स्थिति देश से उलट थी. उसने मिल कर लोगों की सुरक्षा की और दंगाइयों को मोहल्ले से दूर रखा.

हालात सुधरने के 6 साल बाद सरकार ने वसंद मल के परिवार को टूटा, खंडहर सा घर दिया. आज वसंद मल की आयु 80 बरस से ऊपर है और वो शांति से अपने परिवार के साथ एक जनरल स्टोर चला रहे हैं.

2. डॉक्टर आनंद राज वर्मा

साल 1937 में हैदराबाद में जन्म हुआ, आज़ादी के वक्त उम्र दस वर्ष थी. जहां पूरे देश में आग लगी हुई थी, आनंद राज वर्मा के आस-पास सांप्रदायिक सौहार्द बना हुआ था. उनका परिवार पिछले 200 साल से इस शहर में रह रहा था.

हैदराबाद भारत का हिस्सा बनना नहीं चाहता था, परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि आनंद राज के परिवार को या राज्य को छोड़ना पड़ा. आनंद राज परिवार और 25 रिश्तेदारों के साथ विजयवाड़ा चले गए.

वर्तमान में डॉक्टर वर्मा एक जानी-मानी हस्ती हैं. उन्होंने Zoology के रास्ते अपने करियर की शुरुआत की और कॉलज के डीन तक बने. सात सालों तक टेलीविज़न गेम शो होस्ट किया.

3. Major Geoffrey Douglas Langlands

1917 में इंग्लैंड के Yorkshire में Douglas Langland का जन्म हुआ. 1944 में उनका तबादला भारत के बैंगलोर में हुआ, उन्हें नए अधिकारियों को ट्रेनिंग देने का काम सौंपा गया. उसके बाद उन्हें देहरादून भेजा गया, जहां उन्हे भविष्य के भारत-पाकिस्तान के सैनिकों को प्रशिक्षित करना था.

ये तय हुआ था कि देश को 1948 में आज़ाद होना था, लेकिन बिगड़ती परिस्थितियों को क़ाबू करने के लिए 1947 में ही आज़ाद कर दिया गया. Geoffrey Douglas को हड़बड़ी में रावलपिंडी भेजा गया. लेकिन जब वो वहां पहुंचे, तो देखा कि रावलपिंडी वीरान हो चुका है, सारे लोग भारत जा चुके हैं.

विभाजन से पहले वो Geoffrey भारत आते-जाते रहते थे, कई बार उन्हें यात्रियों की ट्रेन को सुरक्षित पहुंचाने का ज़िम्मा सौंपा गिया था.

जब सभी अंग्रेज़ अधिकारियों को पाकिस्तान छोड़ने के लिए कहा जा चुका था, तब उन्होंने अपनी मर्ज़ी से पाकिस्तान में रहने का फ़ैसला लिया. उनके बेहतरीन काम को देखते हुए पाकिस्तान सरकार ने उन्हें रहने की मंज़ूरी भी दे दी. आज़ादी के बाद Geoffrey शिक्षण कार्य से जुड़ गए.

आज भी वो लाहौर में रहते हैं. जवानी के दिनों में दोस्त सवाल पूछा करते थे कि तुम शादी कब करोगे, तब उनका जवाब होता था, ‘जब युद्ध समाप्त हो जाएगा तब’. आज उनकी उम्र 100 के करीब है और उन्होंने शादी नहीं की.

4. अर्घवानी बेग़म

ये कहानी भी अन्य कहानियों की तरह ही है. अर्घवानी बेग़म का जन्म 1922 में उत्तर प्रदेश के गवर्नर परिवार में हुआ था. बचपना सभी ऐश-ओ-आराम के साथ गुज़रा. 1943 में दिल्ली में शादी हुई.

1947 में दो बच्चे थे, तीसरा बच्चा पेट में था. हालात के मारे ससुराल वाले जान बचाने पाकिस्तान जाने के लिए लाल क़िले के कैंप में शरण लिए हुए थे. बेग़म का तीसरा बच्चा कैंप में हुआ.

लाहौर के लिए जब निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन से निकले, तब गोद में दो दिन का बच्चा भी था और जान भी बचानी थी. लोग भूखे प्यासे थे. जब कहीं ट्रेन रुकती थी, लोग पानी के लिए ट्रेन से उतरते थे लेकिन उनमें से बहुत वापस चढ़ नहीं पाते थे. बेग़म को याद है कि एक ट्रेन विपरीत दिशा से गुज़र रही थी, लोगों ने एक दूसरे पर हमला कर दिया . उन्होंने अपनी आंखों से क़त्ल-ए-आम देखा.

आज अर्घवानी बेग़म लौहर के मॉडल टाउन के एक छोटे से घर में रहती हैं, सरकार ने थोड़ी से ज़मीन दे दी, ख़ेती करने के लिए. एक बार भारत अपने घर को देखने आई थी, पूरे सफ़र के दौरान उनके आंसू नहीं रुक रहे थे.

5. मिल्खा सिंह

इनकी कहानी आपने फ़िल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ में देखी होगी. कुल मिला कर उनके जीवन की असली कहानी कुछ वैसी ही है, जैसी फ़िल्म में दिखती है. मिल्खा सिंह का जन्म पश्चिमी पंजाब में हुआ था, जो बंटवारे के समय पाकिस्तान के हिस्से में चला गया.

पिता पेशे से लोहार थे और खेती भी करते थे. जब बंटवारे की तलवार चली, तब मिल्खा सिंह की उम्र 15 साल थी. परिवार के अधिकांश लोग दंगे में मारे गए. जैसे-तैसे मिल्खा दिल्ली पहुंचे, परिवार के साथ-साथ जीने की सभी उम्मीदों की भी हत्या हो चुकी थी. तीन सप्ताह तक दिल्ली के स्टेशन के पास मौजूद रिफ़्युजी कैंप में मिल्खा सिंह रहे, वहां उन्हें मालूम हुआ कि उनकी बड़ी बहन भी ज़िंदा है.

ज़िंदगी चलाने के लिए कई छोटे-मोटे काम किए, पढ़ाई करने की कोशिश भी की. आर्मी की बहाली में भी पहुंचे लेकिन तीन बार फ़ेल होने के बाद चौथी बार में सलेक्ट हो गए. वहां अपने भीतर तेज़ दौड़ने की प्रतिभा को पहचाना और आगे की कहानी आपको पता है, उन्होंने क्या किया और कैसे Flying Sikh कहलाए.

भारत-पाकिस्तान के बीच आज भले ही अच्छे रिश्ते न हों लेकिन जिन्होंने अविभाजित भारत की मिट्टी में जन्म लिया था, उनके लिए आज भी ये दोनों जगहें उनका घर हैं.