हाल ही एक दुखद बात पता चली- भारत में Puppy Mills के बारे में. ये मूल रूप से ऐसे व्यावसायिक प्रतिष्ठान हैं जो बेचने के लिए Puppy का प्रजनन करवाते हैं और इन Puppy Farms में हालात बहुत अमानवीय होते हैं.
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क्या आप उस दृश्य की कल्पना कर सकते हैं जिसमें छोटे-छोटे Puppy बहुत ही छोटे, नम और मंद रोशनी वाले पिंजरों में अपनी ही गंदगी के बीच रहते हुए घटिया खाने-पीने पर जिंदा रहने की कोशिश में लगे हुए हों. इसे इन बेचारे Puppies के लिए जेल न कहा जाये तो और क्या कहा जाये.
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और अगर मेरी तरह आप सोच रहे हैं कि ऐसा क्या है जिसके कारण ये ब्रीडर्स इन छोटे Puppies को पैसा छापने वाली हाड़-मांस की मशीन की तरह ले रहें हैं, तो इसका जवाब है भारत में ‘Pedigree’ नस्लों को लेकर बढ़ता जुनून.
सस्ती कीमत पर ‘Purebred’ कुत्तों की मांग ने पशु क्रूरता के इस रूप को जन्म दिया है. ब्रीडर्स आमतौर पर कम से कम निवेश कर ज़्यादा से ज़्यादा कमाई करना चाहते हैं.
Puppy mills keep dogs in cramped & dirty conditions without proper vet care or socialization. #PuppyMillAwarenessDay pic.twitter.com/Te13zRvw5V
— PETA (@peta) September 18, 2016
एक सेकंड के लिए आइए हम अपना ‘Pedigree’ के रंग से रंगा चश्मा हटाकर भारत में ब्रीडिंग कल्चर की क्रूर सच्चाई को देखते हैं. Pet Mills एक बहुत ही क्रूर सच्चाई का एक बहुत छोटा हिस्सा भर है. वर्षों से ब्रीडर्स ज़्यादा से ज़्यादा पैसा कमाने के चक्कर में कुत्तों को आनुवंशिक रूप से बदल रहें हैं.
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इसका मतलब ये है कि वो जानवरों को ऐसे ब्रीड कर रहें हैं ताकि वो ज़्यादा बिकने लायक हो जाये, मसलन ऐसे शारीरिक बदलाव जो ग्राहकों को पसंद आये. वो भी इन बातों की परवाह किये बिना कि ऐसे शारीरिक बदलावों का जानवरों के शरीर और स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा.
क्या आप जानते हैं गैर-ज़िम्मेदार ब्रीडिंग के कारण कोई जानवर ज़िन्दगी भर के लिए किसी अंजान जन्मजात बीमारी का शिकार हो सकता है. अंग्रेजी बुलडॉग और पग्स ऐसी ही ग़लत ब्रीडिंग का नतीजा हैं. दोनों नस्लों के कुत्ते स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियों के साथ बड़े होते हैं और शारीरिक-मानसिक तनाव से ग्रस्त रहते हैं.
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आनुवांशिक रूप से बदले जाने से पहले अंग्रेजी बुलडॉग कुछ ऐसा दिखता था.
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नीचे Dutch Mastiff, जो पग प्रजाति की शरुआती शारीरिक संरचना बताता है, सालों तक हुई ग़ैर-ज़िम्मेदार ब्रीडिंग के बाद उसमें आये बदलावों को देखा जा सकता है.
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इस तरह के दो उदाहरणों को देखते हुए महसूस हुआ कि ‘Pedigree’, ‘Purebed’ कुत्तों की पूरी सामाजिक अवधारणा ही वास्तव में एक धोखा है. ‘Perfect’ दिखने वाली नस्लों (जो कुत्ते डॉग शो जीत सकें) को पाने के चक्कर में इंसानों ने क्रूरता और सनक की लकीरों को लांघने में कोई कसर नही छोड़ी है.
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जिस समय हम ये बात लिख रहें हैं, आप जानते हैं कि उस समय हमारे देश की सड़कों पर तीन मिलियन से ज़्यादा आवारा कुत्ते घूम रहें हैं, जिनमें से कुछ को शेल्टर होम्स द्वारा बचाया जा रहा है जबकि अन्य किसी तरह ज़िंदा रहने की कोशिश में हैं. ये सभी प्यार से भरे घरों की तलाश में हैं, ठीक वैसे ही जैसे लोग किसी Puppy से दोस्ती और भावनात्मक जुड़ाव की आशा रखते हैं.
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‘Pedigree’ नस्ल के कुत्तों को पालने का जूनून छोड़ कर और छोड़े गये Purebred कुत्तों को या देशी कुत्तों को अपनाकर हम इस तरह की क्रूर और अमानवीय प्रजनन प्रथाओं को रोकने की दिशा में एक क़दम बढ़ा सकते हैं.
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आइये हम अपने नाक के नीचे होते इस क्रूरता को नज़रअंदाज न करें और न ही इन जघन्य कृत्यों को बढ़ावा दें.
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