पूर्वोत्तर भारत के लोगों के जीवन में बांस का बहुत महत्व है. ये कई तरीके से उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करता है. बांस जो कि एक घास है, महज़ 23 दिन में 25 फ़ीट की ऊंचाई तक बढ़ सकती है, जबकि अन्य पेड़ों को इतनी लंबाई हासिल करने में क़रीब 10 साल लग जाते हैं. उच्च आद्रता वाली जलवायु और गीली-उपजाऊ मिट्टी में ये घास तेज़ी से बढ़ते हैं.
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नॉर्थ-ईस्ट के लोग इसका उपयोग मज़बूत बाढ़-प्रूफ़ घरों, पुलों के साथ ही स्ट्रॉ, टिफ़िन बॉक्स और यहां तक कि बोतलों के निर्माण में भी करते हैं. आज हम आपको बताएंगे कि बांस को कितनी तरह से पूर्वोत्तर भारत के लोग इस्तेमाल में लाते हैं.
1-ड्रिप सिंचाई के लिए बांस का इस्तेमाल (Bamboo Drip Irrigation)
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मेघालय में पहाड़ियों के बीच से गुज़रते हुए अक़्सर पहाड़ियों के माध्यम से छोटी-छोटी धाराएं बहती हुई देखी जा सकती हैं. ये पानी साफ़ है और अशुद्धियों से मुक्त है जिसे सिंचाई के लिए पुन: उपयोग किया जा सकता है और लोगों ने ऐसा ही किया है.
खासी और जयंतिया पहाड़ियों के जनजातीय किसान दो सौ साल से पाइप बनाने के लिए बांस का इस्तेमाल बेहद प्रभावी तरकी से करते आए हैं. ये प्रणाली इतनी कारगर है कि बांस की नलियों की प्रणाली में प्रति मिनट आने वाला 18 से 20 लीटर पानी सैकड़ों मीटर दूर तक ले जाया जाता है और किसानों द्वारा इसका इस्तेमाल आम तौर पर पान के पत्ते और काली मिर्च की फ़सलों में किया जाता है.
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इस प्रणाली को बनाने से पहले बांस को छीलकर पतला किया जाता है और उसके बीच में बनी गांठों को हटा दिया जाता है. उसके बाद एक स्थानीय छेनी का उपयोग करके चैनल को चिकना किया जाता है, जिसे दाओ के रूप में जाना जाता है. पानी के प्रवाह को विनियमित करने के लिए सिस्टम में अलग-अलग आकार के बांस का उपयोग किया जा सकता है. अलग-अलग जुड़े पाइप की मदद से एक ही प्रणाली से विभिन्न गांवों को पानी दिया जा सकता है.
2- जापी (Jaapi)
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असम की शंकु के आकार की टोपी को जापी कहा जाता है. ऐतिहासिक रूप से जापी को किसानों द्वारा खेतों में धूप से बचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था. असम के किसी भी घर में जाएं, ये आपको हर जगह मिल जाएगी. स्थानीय कारीगरों द्वारा इसे काफ़ी रंग-बिरंगा बनाया जाता है. आज सजी-धजी जापी असम की सांस्कृतिक प्रतीक बन गई है. राज्य में बिहू त्योराहों के दौरान असमिया संस्कृति के इस प्रतीक को बेहद गर्व के साथ प्रदर्शित किया जाता है. बिहू डांसर भी जापी का इस्तेमाल अपनी परफ़ॉर्मेंस में एक प्रॉप की तरह करते हैं.
लेकिन कसकर बुने हुए बांस और ताड़ के पत्तों से बनी ये बड़ी टोपी का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है. राज्य में धान के खेतों में काम करने वाले किसानों को अक़्सर बारिश और कड़ी धूप से खुद को बचाना पड़ता है. जापी लगभग एक छतरी के रूप में कार्य करता है. इसका एक अतिरिक्त उपयोग ये है कि ये किसानों को हाथों से मुक्त रखता है, जिससे वो आसानी से अपने दूसरे काम कर सकें. यहां इस्तेमाल होने वाली जापी को ज़्यादा सजा-धजा कर नहीं बनाया जाता है, बल्क़ि काम लायक बनाने के लिए इसे साधारण रखा जाता है.
3- बैंबू शूट (Bamboo shoots)
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Bamboo shoots बांस के पेड़ के साथ एक किनारे पर उगता है जोकि काफ़ी नरम होता है. विभिन्न पूर्वोत्तर राज्यों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है. इसका ताज़ा, सुखाकर या फिर खमीरीकृत कर खाया जा सकता है. इससे बने अचार और करी बहुत स्वादिष्ट होते हैं साथ ही पौष्टिक भी क्योंकि इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल्स और फ़ाइबर जैसे कई जरूरी पोषक तत्व होते हैं. विटामिन और मिनरल्स का अच्छा स्रोत होने के कारण इससे आपका इम्युनिटी सिस्टम मज़बूत होता है.
क्रीम रंग का शूट प्राप्त करने के लिए कठोर आवरण हटा दिए जाते हैं. इसे पतले टुकड़ों में काटकर सुखाया जा सकता है या कटी हुई लाल मिर्च के साथ नमकीन पानी में इसे स्टोर किया जा सकता है.
4- बैंबू टंबलर (Bamboo Tumblers)
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Basar शहर अरुणाचल प्रदेश के Leprada जिले में एक छिपा हुआ स्वर्ग है. इस शहर में 26 गांव हैं, जो लोग प्रकृति के बीच में रहना पसंद करते हैं, वो यहां जंगलों, गुफ़ाओं को ट्रैक ट्रेल्स को एक्सप्लोर कर सकते हैं. यहां ग्रामीण लोग चावल की बीयर या ‘पोका’ पीते हैं और यहां घूमने आने वालों को इन बांस के टम्बलर्स में पिलाते हैं.
ग्रामीण खुद भी बांस के टंबलर से पीते हैं और इसके साथ रस्सी को जोड़ते हैं ताकि इसे किनारे पर आसानी से गिराया जा सके. इन बांस के टंबलर का उपयोग शहर में एक आदिवासी त्योहार वार्षिक बसर कॉन्फ्लुएंस में भी किया जाता है. प्लास्टिक या पेपर कप के स्थान पर टंबलर का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है. ये एक ऐसी चीज है जिसे देश भर के कई म्यूज़िक फ़ेस्टिवल्स में दोहराया जा सकता है जो बड़ी मात्रा में अपशिष्ट पैदा करने के लिए कुख़्यात हैं.
5- खाना पकाने के लिए Bamboo hollows का यूज़
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Bamboo hollows एक तरह से बांस के ख़ोखल होते हैं, जिनका इस्तेमाल खाना बनाने में किया जाता है. बांस के खोखले लंबे समय तक चावल या मांस (पौधों के पत्तों में लिपटे) से भरे होते हैं, जिन्हें बाद में कोयले पर पकाया जाता है. जले हुए बांस के धुएं से व्यंजनों को एक विशेष स्वाद मिलता है. बांस को एक बर्तन के रूप में तैयार करने के लिए, बेलनाकार कॉलम के नीचे के भाग को वैसा ही रखते हुए ऊपर से आधा काट लिया जाता है. फिर कॉलम को धोया जाता है और रातभर के लिए उसमें पानी भरकर रख दिया जाता है.
बांस द्वारा अवशोषित की जाने वाली नमी खाना पकाने की प्रक्रिया में मदद करती है. बाद में पानी को हटा दिया जाता है और जो खाना बनाना है, उसे इसमें भर दिया जाता है. इसमें लोग चावल और मीट वगैरह बनाते हैं. जो बेहद स्वादिष्ट बनता है.