हिमालय में ग्लेशियर का पिघलना कोई नई बात नहीं है. सदियों से ग्लेशियर पिघलकर नदियों के रूप में लोगों को जीवन देते रहे हैं. मगर पिछले दो-तीन दशकों में ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से पर्यावरण को पहुंचने वाली हानि के कारण इनके पिघलने की गति में जो तेज़ी आई है, जो बहुत ही ज़्यादा चिंताजनक है.
इसका दुष्परिणाम सिर्फ़ पर्यावरण पर ही नहीं, बल्कि हम पर भी पड़ रहा है. इसके चलते गर्मियों में भीषण गर्मी हो ही रही है साथ ही सर्दियां भी अब ठंड का एहसास नहीं करा रही हैं.
इससे पर्यावरण को, जो हानि पहुंच रही है, उसे फ़ोटोग्राफ़र Dillon Marsh ने अपनी फ़ोटोग्राफ़ी में CGI Elements का इस्तेमाल करके हमें समझाने की कोशिश की है.
1. हर मिनट Naradu Glacier पर गिरती बर्फ़ की औसत मात्रा 7.06 क्यूबिक मीटर है.
2. Chhota Shigri Glacier (हिमाचल प्रदेश) पर बर्फ़ की प्रति मिनट औसत मात्रा 18.64 क्यूबिक मीटर है.
3. हर घंटे नेह नर ग्लेशियर (कश्मीर) पर 92.58 घन मीटर की औसत मात्रा से बर्फ़ गिर रही है.
4. हर मिनट में चंगमेखंगपु ग्लेशियर (सिक्किम) पर क़रीब 3.09 क्यूबिक मीटर बर्फ़ पिघल रही है.
5. टिपरा [बामक] ग्लेशियर (उत्तराखंड) पर हर आधे घंटे में 62.15 घन मीटर बर्फ़ पिघल रही है.
6. डोकरेनी ग्लेशियर (उत्तराखंड) पर हर मिनट 6.78 घन मीटर बर्फ़ पिघल जाती है.
7. दुनागिरी ग्लेशियर (उत्तराखंड) में हर मिनट में पिघलने वाली बर्फ़ की औसत मात्रा 2.55 घन मीटर है.
8. हर घंटे गारा ग्लेशियर (हिमाचल प्रदेश) पर 176.6 घन मीटर बर्फ़ पिघल जाती है.
Dillon ने बताया,
मैंने वैज्ञानिक रिपोर्ट के अनुसार डेटा इकट्ठा करके CGI का उपयोग करते हुए बर्फ़ के मॉडल बनाए और उन्हें विशिष्ट मानव वातावरण में रखा. ऐसा करने से, हमारा उद्देश्य उन नाटकीय जलवायु परिवर्तनों पर ध्यान आकर्षित करना है, जो हमारे रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़े हैं और जिनपर हमारा ध्यान ही नहीं जाता.
ये ‘Counting the Costs’ नामक एक परियोजना है, जो एक वैश्विक परियोजना है. इसका अर्थ है कि हम इन गेंदों को पूरी दुनिया में देखने जा रहे हैं, लेकिन उन्होंने भारत को सबसे पहले इसलिए चुना क्योंकि ये देश दुनिया के कुछ सबसे ऊंचे पहाड़ों का घर है.
फ़ोटोग्राफ़र ने जो अपनी तस्वीरों से हमें समझाना चाहा है, उसे समझना बहुत ज़रूरी है.