सोशल मीडिया के इस दौर में आज हम जिस तरह से तस्वीरों के ज़रिये एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं. एक समय वो भी था जब लोग पोस्टकार्ड के ज़रिये एक दूसरे के संपर्क में रहा करते थे.
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जब हम किसी ट्रिप पर जाते हैं तो वहां की अच्छी-अच्छी यादों को तस्वीरों में क़ैद कर लेते हैं. फिर उन्हें इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक के ज़रिये दोस्तों तक पहुंचाते हैं. ठीक इसी तरह 20वीं सदी में लोग पोस्टकार्ड के ज़रिये ही इंस्टाग्राम की फ़ीलिंग लिया करते थे.
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दरअसल, पिछले दिनों लंदन की ‘Brunei Gallery’ में 20वीं सदी के पोस्टकार्ड्स की प्रदर्शनी लगी थी. इस दौरान लोगों को वहां कई तरह के पोस्टकार्ड देखने को मिले.
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Gallery में लोगों को उस समय मद्रास में रहने वाली May Reynolds नाम की एक लड़की के कई सारे पोस्टकार्ड देखने को मिले. जिनमें वो 1912 से 1919 तक बर्मिंघम में रहने वाली अपनी दोस्त Annie के साथ पोस्टकार्ड के ज़रिये संपर्क में थी. May Reynolds ने कई सारे पोस्टकार्ड में अपनी आंटी की ज़िंदगी, छुट्टियों में नीलगिरी, बैंगलोर और महाबलीपुरम के दृश्यों, सड़कों पर घूमते लोगों, धार्मिक स्थलों, स्मारकों और मद्रास की माउंट रोड पर चलती गाड़ियों के चित्रों को उकेरा था.
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पिछले 20 सालों से इसी तरह के हज़ारों पोस्टकार्ड इकट्ठा करने वाले Dr. Stephen Putnam Hughes का कहना था कि यही पोस्टकार्ड 20वीं शताब्दी की शुरुआती दिनों में लोगों के लिए इंस्टाग्राम का काम किया करते थे.
Colonial Encounters
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सन 1900 से 1930 के दशक यूरोपीय लोग इसी तरह के पोस्टकार्ड के ज़रिये अपने परिवार और दोस्तों के संपर्क में रहते थे. पोस्टकार्ड ही उस समय संचार के सबसे लोकप्रिय साधन हुआ करते थे. करीब 1000 से अधिक संग्रहित पोस्टकार्ड में से इस प्रदर्शनी में सिर्फ़ 300 पोस्टकार्ड ही प्रदर्शित किये गए थे.
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सन 1902 और 1910 के बीच करीब 6 बिलियन पोस्टकार्ड अकेले ‘ब्रिटिश डाक प्रणाली’ से गुज़रते थे. वहीं इसके मुक़ाबले इंस्टाग्राम में करोड़ों यूज़र्स के 40 बिलियन से अधिक फ़ोटो और वीडियो उपलब्ध हैं.
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सन 1900 के शुरुआती दशक से ही बैंगलोर और मद्रास पोस्टकार्ड का गढ़ बन चुके थे. यहां धीरे-धीरे फ़ोटोग्राफ़र और स्टूडियोज़ का नेटवर्क फैलने लगा था. इन स्टूडियोज़ में निर्मित पोस्टकार्ड भारत ही नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर प्रसारित होने लगे. सन 1930 के आसपास तक अंग्रेजी और तमिल कैप्शन वाले पोस्टकार्ड भी छपने लगे थे.
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इस प्रदर्शनी में बड़ी संख्या में बंगलौर और मद्रास में यूरोपियंस के घरों में काम करने वाले सेवकों के चित्र वाले ऐसे कई पोस्टकार्ड भी मौजूद थे जो ब्रिटिश मध्यम वर्ग के बीच काफी लोकप्रिय थे. इन पोस्टकार्ड्स में महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों की तस्वीरें थीं.
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इस प्रदर्शनी में ‘मद्रास हंट और मास्टर्स सीरीज़’ जो 1900 के शुरूआती दशक में ख़ूब प्रचलित हुई थी. जिसमें सड़क के किनारे महिलाओं और बच्चों को एक-दूसरे के साथ लिपटते हुए दिखाया गया है.
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कुल मिलाकर इस प्रदर्शनी में इन पोस्टकार्ड के माध्यम से ब्रिटिश भारत की उस तस्वीर को पेश करने की कोशिश की गई जिसे हम देख नहीं पाए. उस वक़्त के लोगों के लिए यही पोस्टकार्ड्स इंस्टाग्राम का काम किया करते थे.