31 अगस्त 1997. ये तारीख दुनिया भर के लोग आज भी भुला नहीं पाए हैं. वजह है ब्रिटिश घराने की प्रिंसेस डायना. यूं तो ब्रिटिश शाही घराने का हर सदस्य काफ़ी फ़ेमस होता है, लेकिन डायना की लोकप्रियता और उनकी शख़्सियत के आगे सभी फीके नज़र आते हैं. जितना ख़ूबसूरत डायना का चेहरा था, उससे कहीं ज़्यादा ख़ूबसूरत उनका दिल था. चलिए आज आपको डायना के इसी पहलू से रूबरू करा देते हैं.

एक ग़रीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली प्रिंसेस ऑफ़ डचेस, डायना की सोच शाही घराने से अलहदा थी. शुरुआत में उन्हें रॉयल फ़ैमिली के तौर तरीकों को समझने में समय लगा, पर बाद में उनका आत्मविश्वास इतना बढ़ा की हर कोई उन्हें देखता रह जाता. तभी तो उन्होंने हर उस प्रोटोकॉल को तोड़ा, जो उनकी मानवतावादी सोच के आड़े आता.

फिर चाहे बात एचआईवी पीड़ितों से हाथ मिलाना हो, या फिर कुष्ठ रोगियों से गले मिलने की. उन्होंने बच्चों को गले लगाने के लिए हैट पहनना भी छोड़ दिया था. उनका मानना था कि हैट पहनकर आप इत्मिनान से बच्चों को गले नहीं लगा सकते. ऐसे बहुत से कारण हैं, जो डायना को प्रिंसेस ऑफ़ पीपल बनाते हैं.

डायना ने इतना साहस था कि उन्होंने ही अपनी लगभग ख़त्म हो चुकी शादी पर फु़लस्टाप लगाने का निर्णय लिया. इस तरह वो शाही परिवार की परवाह किए बगैर अपने पति से तलाक लेने वाली पहली महिला बनीं. वो शाही परिवार की ट्रिप्स पर अपने बच्चों को छोड़कर नहीं बल्कि उनके साथ ट्रैवल करती थीं, ताकि वो उनका ख़्याल रख सकें. 

डायना हमेशा बच्चों से आंखों से आंखें मिलाकर बात करती थीं. शाही परिवार की वो पहली महिला थीं, जिन्होंने अपने बच्चों को ब्रेस्टफ़ीड कराया था. AIDS और कुष्ठ रोग जैसी जानलेवा बीमारियों के बारे में लोगों को जागरूक किया.

मनमोहक मुस्कान, नीली आंखें और छोटे बाल वाली उनकी छवि आज भी लोगों को के दिलों में कायम है. शायद यही वजह है कि आने वाले दिनों भी लोग प्रिंसेस ऑफ़ पीपल को याद रखेंगे. 

Feature Image Source: Travel Leisure