विविधताओं के देश हिन्दुस्तान के गर्भ में कई कहानियां छिपी हैं. बरसों पुराने इस देश के इतिहास में आज भी ऐसी कई कहानियां हैं, जिनसे बहुत लोग वाकिफ़ नहीं होंगे. भारतीय संस्कृति से आकर्षित होकर ही तो विदेशियों ने हम पर आक्रमण कर हम पर राज किया था.
हमारे समाज में कितनी भी विविधतायें और विचारों में मतभेद क्यों न हों,पर हम आज भी एक धागे में जुड़े हुए हैं. शांतिपूर्ण तरीके से कई संस्कृतियां हमारे देश में रहती हैं और ये हमारे देश की सबसे ख़ास बात है.
सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों का अपना इतिहास, अपनी संस्कृति और अपनी भाषा है. मॉर्डनाइज़ेशन और ग्लोबलाइज़ेशन के बाद सबकी जीवनशैली लगभग एक जैसी हो गई है. लोग अपने विकास के लिए गांव-घर छोड़ कर शहरों में बसने लगे हैं. लेकिन अब भी कुछ ऐसे संप्रदाय हैं, जो अपनी संस्कृति से, इतिहास से जुड़े हुए हैं. ये हैं भारत की जनजातियां.
जनजाति शब्द सुनकर कुछ लोगों के दिमाग़ में बस यही आयेगा: झोपड़ी में रहने वाले, कम कपड़े पहनने वाले, और पशुओं का शिकार करने वाले कुछ मनुष्य. यक़ीन मानिये जनजातियां इनसे कहीं ज़्यादा होती हैं. भारत की जनजातियों के कुछ ऐसे नियम और तौर-तरीके हैं, जो सभ्य समाज में भी नहीं होंगी.
आज जानिये देश की जनजातियों के कुछ प्रगतिशील नियमों के बारे में-
1) भील
महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में फैली है भील जनजाति. ये भारत के प्रमुख जनजातियों में से एक है. पितृसत्तात्मक होने के बावजूद इस जनजाति में महिलाओं को पुरुषों से कम नहीं समझा जाता. भील महिलाएं खुलेआम हुक्का गुड़गुड़ाते या शराब पीते भी नज़र आ जाती हैं.
भीलों में विधवा विवाह भी मान्य है. 100 वर्ष की विधवा भी चाहे तो विवाह कर सकती हैं. अगर कोई विधवा शादी करना नहीं चाहती, तो उसका भरण-पोषण और सुरक्षा का भार पूरा गांव उठाता है. भीलों में महिलाएं एक से ज़्यादा शादियां कर सकती हैं.
2) खासी
मेघालय और असम के बॉर्डर के आस-पास बसते हैं इस जनजाति के लोग. खासी जनजाति मातृसत्ता को मानते हैं, यानि मां ही परिवार की प्रमुख होती है. मां की संपत्ति उसकी मृत्यु के बाद बेटी को मिलती है. यहां तक कि बच्चों का उपनाम भी मां के नाम पर ही रखा जाता है.
खासी जनजाति में तलाक की प्रक्रिया बहुत आसान है. पति अपनी पत्नी को 5 पैसे का सिक्का देता है, पत्नी भी 5 पैसा देती है. ये दोनों सिक्के घर के किसी बुज़ुर्ग को दिए जाते हैं, जो इन्हें हवा में उछालता है और तलाक हो जाता है.
3) पटुआ और चित्रकार
कपड़े पर चित्रकारी कर और, कहानियों को गीतों में पिरोकर, गांव-गांव घूमकर लोगों को मनोरंजन और शिक्षा साथ में देती है ये दोनों जनजाति. चित्रकार और पटुआ नाम इस जनजाति में मौजूद मुस्लिम और हिन्दुओं के नाम पर रखा गया है. सद्भावना की बहुत अच्छी मिसाल है ये जनजाति. लोगों को सरकारी योजनाओं के बारे में भी बताता है पटुआ और चित्रकार जनजाति के आर्टिस्ट्स. लेकिन दुख की बात ये है कि इनकी संख्या बेहद कम है.
4) Gowda
Gowda जनजाति गोवा के समुद्री तटों के आस-पास पाई जाती है. ये कोंकण क्षेत्र के असल बाशिंदे हैं.
Gauda जनजाति में भी कई ऐसे नियम हैं जिनसे हम कुछ सीख ले सकते हैं. इस जनजाति में पति की मृत्यु के बाद सारी संपत्ति पत्नी के अधीन होती है. पत्नी की मृत्यु के बाद सारी संपत्ति सभी बेटों और अविवाहित पुत्रियों के बीच बांट दिया जाता है. बरसों से ये जनजाति इस नियम का पालन कर रही है.
5) Halakki Vokkaliga
कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ क्षेत्र में Halakki Vokkaliga जनजाति पाई जाती है. अकसर इस जनजाति की तुलना अफ़्रीका की मसाई जनजाति और ऑस्ट्रेलिया की एबोरिजीन जनजाति से की जाती है. महिलाओं को इस जनजाति में ऊंचा स्थान दिया गया है. खेती से लेकर पूरे संप्रदाय को एक सूत्र में बांधकर रखने का श्रेय इस जनजाति की महिलाओं को ही जाता है. संगीत इस जनजाति का अहम हिस्सा है और उन्होंने इसे संभालकर रखा है. महिलाएं अपने विचारों को गीतों के रूप में खुलकर प्रकट करती हैं.
6) Mishing
असम की Mishing जनजाति पितृसत्तात्मक व्यवस्था को मानती है. पिता की संपत्ति भी बेटों को ही मिलती है. लेकिन एक बात जो हम सभी इस जनजाति से सीख सकते हैं वो है, ‘प्यार और भाईचारा’ इस जनजाति के लोग अलग-अलग धर्मों को मानते हैं लेकिन मिल-जुलकर रहते हैं. अतिथि कोई भी हो, कहीं से भी आया हो Mishing जनजाति के लोग उसका हाथ जोड़कर स्वागत करते हैं और अपने घर में बैठाते हैं.
जिन जनजातियों की संस्कृति और तौर-तरीकों को हम पिछड़ा समझते हैं, वो कई मायनों में हम से आगे हैं. अगर आप किसी जनजाति की ऐसी ही किसी ख़ास बात से परिचित हैं, तो हमें ज़रूर बतायें.