जो लोग शायद ये जानते हैं कि अजीत डोभाल भारत के पहले क़ामयाब रॉ एजेंट हैं, तो उन्हें जानकारी दे दें कि ‘रामेश्वर नाथ काव’ को आधुनिक भारत का सबसे शातिर व तेज़ दिमाग़ जासूस कहा जाता है. 

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रामेश्वर नाथ काव ही ‘रिसर्च एंड एनालिसिस विंग’ (रॉ) के पहले चीफ़ थे. रामेश्वर नाथ काव ही वो शख़्स थे, जिन्होंने पहली बार भारत में जासूसी की नींव रखी थी. उनकी ‘रफ़ एंड टफ़’ इमेज के चलते लोग उन्हें ‘काव-बॉयज’ के नाम से भी जानते थे. 

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कौन थे रामेश्वर नाथ काव? 

सन 1918 में उत्तर प्रदेश के बनारस में एक समृद्ध कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में जन्मे रामेश्वर नाथ काव ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम. ए. किया था. सन 1939 में भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हो गए. जबकि सन 1947 में भारत की आज़ादी से कुछ समय पहले वो ‘डायरेक्टोरेट ऑफ़ इंटेलिजेंस ब्यूरो’ से जुड़ गए. इस दौरान काव ब्यूरो में शामिल ब्रिटिश अफ़सरों के साथ काम कर रहे चंद भारतीयों में से एक थे. 

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सन 1962 भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत को सैन्य रूप से बेहद नुक़सान हुआ था, क्योंकि वक़्त भारत के पास उत्तरी सीमा पर चीन की बढ़ती गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए स्पेशल कोई ख़ूफ़िया टीम थी न ही ही इतने अच्छे जासूस. हालांकि, इंटेलिजेंस ब्यूरो के पास एक विदेशी विभाग ज़रूर था, जो सूचना एकत्र करने का करता था. किसी भी देश की सेना के लिए ये काफी नहीं था. 

इसके बाद साल 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद भारत सरकार को एक ख़ास ख़ूफ़िया विभाग की ज़रूरत आन पड़ी. साल 1968 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इंटेलिजेंस ब्यूरो का बंटवारा करने का फ़ैसला किया. 

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21 सितंबर 1968 को ‘रिसर्च एंड एनालिसिस विंग’ की स्थापना की गई. इस महत्वपूर्ण विभाग के लिए एक ऐसे शख़्स की ज़रुरत थी, जिसके पास शातिर दिमाग़ के साथ-साथ ख़ूफ़िया घटनाओं को अंजाम देने की क़ाबिलियत हो. इसके बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ख़ुद रामेश्वर नाथ काव, जो इस दौरान ‘इंटेलिजेंस ब्यूरो’ के उपाध्यक्ष थे, उन्हें रॉ प्रमुख का कार्यभार सौंपा. 

दक्षिण एशिया में ख़ुफ़िया गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए स्थापित रॉ की बागडोर जब रामेश्वर नाथ काव के हाथों में आई तो उपमहाद्वीप में माहौल गरमाने लगा. इस दौरान उन्होंने बेस्ट अफ़सरों और विश्लेषकों की एक टीम बनाकर रॉ को दुनिया की बेस्ट ख़ूफ़िया एजेंसी बनाने का बीड़ा उठाने का काम किया. इसके बाद उन्होंने ख़ुद अंडरग्राउंड होकर सालों तक कई ख़ुफ़िया घटनाओं को अंजाम दिया. इसी काम के चलते उन्हें डिपार्टमेंट ‘काव-बॉयज़’ के नाम से जानता था. 

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साल 1971 में पूर्वी पाकिस्तान को अलग कर बांग्लादेश बनाने में मदद करने वाले प्रमुख लोगों में से एक रामेश्वर नाथ काव भी थे. काव के नेतृत्व में रॉ ने मुक्ति वाहिनी (बांग्लादेश का मुक्ति बल) की मदद की थी. 17 दिनों तक चले इस युद्ध में भारत की जीत हुई और बांग्लादेश का जन्म हुआ. 

रामेश्वर नाथ काव साल 1968 से 1977 तक रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के चीफ़ रहे.