माता-पिता बच्चों को स्कूल इसी उम्मीद में भेजते हैं कि वहां उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ मानवीय मूल्य भी सिखाये जायेंगे. लेकिन कुछ स्कूल अपनी इस ज़िम्मेदारी को भुलाते हुए, बच्चों को ऐसी पाठ्य सामग्री देते हैं, जो उन्हें नस्लभेदी भी बना सकती है.
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ये तस्वीर बच्चों की पाठ्यपुस्तक में छपी है. इसके द्वारा बच्चों को सुन्दर और बदसूरत का अर्थ समझाया जा रहा है. जिस तस्वीर के नीचे सुन्दर लिखा है, उसमें एक गोरी महिला दिखाई गयी है. वहीं, जिस तस्वीर के नीचे बदसूरत लिखा है, उसमें एक सांवली महिला दिखाई गयी है.
ये हैरान करने वाली बात है कि विविधताओं से भरे भारत में भी ऐसी किताबें बच्चों को पढ़ाई जाती हैं. इस उम्र में बच्चों को जो सिखाया जाता है, वो उनके दिमाग पर गहरा असर छोड़ता है. यही कारण है कि इस तरह का स्टडी मटेरियल उनमें गलत मूल्यों को ला सकता है. यहां तक कि वो अपने सहपाठियों के साथ भी रंग के आधार पर भेदभाव करना सीख सकते हैं.
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फ़ेयरनेस क्रीम्स के Ad गलत मूल्यों को बढ़ावा देने में जो कसर छोड़ दे रहे हैं, कहा जा सकता है कि इस तरह की किताबें उसे ही पूरा कर रही हैं.