भारत की आज़ादी के लिये अनेकों देशभक्तों ने अपनी-अपनी समझ से अलग-अलग रास्तों को अपनाया था. इन रास्तों पर चलकर हज़ारों देशभक्तों ने शहादत भी प्राप्त की. जब भी देश की आज़ादी की बात होती है भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का नाम हमेशा गर्व के साथ लिया जाता है. इन तीनों ने देश की आज़ादी के लिए एक साथ हंसते-हंसते अपने प्राण न्योछावर कर दिए.
ऐसे ही देशभक्तों में से एक थे शिवराम हरी राजगुरु जिनका जन्म 24 अगस्त, 1908 को पुणे में हुआ था. राजगुरु और सुखदेव दोनों ही भगत सिंह के बहुत अच्छे मित्र थे. मगर इन तीनों में जितनी प्रसिद्धि एक देशभक्त के तौर पर भगत सिंह को मिली उतनी प्रसिद्धि सुखदेव और राजगुरु को नहीं मिल पायी.
राजगुरु के पिता हरिनारायण कर्मकाण्ड और पूजा पाठ करके अपने परिवार का पालन पोषण करते थे. ब्राह्मण परिवार में जन्म होने के नाते राजगुरु के पिता चाहते थे कि उनका बेटा भी अच्छी पढाई-लिखाई करे, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने की वजह से राजगुरु अधिक पढ़ नहीं पाए. जिस समय राजगुरु मात्र 6 साल के थे उनके पिता स्वास्थ्य ख़राब होने के कारण दुनिया छोड़ चले. इसके बाद राजगुरु ने कम उम्र में ही अपने परिवार की ज़िम्मेदारी उठानी शुरू कर दी थी.
राजगुरु जिस समय बाल्य अवस्था में थे, उस वक़्त देश आज़ादी की जंग लड़ रहा था. भारत को अंग्रेज़ों की गुलामी से आज़ाद कराने के लिये क्रान्तिकारी आन्दोलन जोरों पर थे, अनेकों क्रान्तिकारी ब्रिटिश सेना से संघर्ष करते हुए शहीद हो चुके थे. देशभर में अंग्रेज़ों के खिलाफ़ क्रांतिकारियों का विरोध बढ़ता ही जा रहा था. इसी दौरान ब्रिटिश सरकार ने अपनी दमनकारी नीतियों को लागू करते हुए भारतीयों पर अपने शासन की पकड़ को और मज़बूत करने के लिये 1919 रोलेक्ट एक्ट लागू कर दिया था. जलियांवाला बाग में इस एक्ट का विरोध कर रहे लोगों पर जनरल डायर ने गोलियां चलवा दी थी, जिसमें हज़ारों लोग मारे गए.
जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ उस समय राजगुरु स्कूल में थे और इस घटना ने उनके व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डाला. जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में क्रांतिकारियों ने देशभर में अंग्रेज़ों का विरोध करना शुरू कर दिया. राजगुरु के अंदर इस हत्याकांड के मुख्य आरोपी जनरल डायर से बदले की ज्वाला भड़क रही थी.
इसी दौरान राजगुरु जब मात्र 15 साल के थे उन्होंने अपना घर छोड़ दिया और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े. राजगुरु लगातार छः दिनों तक पैदल चलते हुये नासिक पहुंचे. कुछ दिन यहां घूमने के बाद वो झांसी, कानपुर और लखनऊ होते हुए लगभग 15 दिन बाद बनारस पहुंचे. बनारस उस वक़्त क्रांतिकारियों का अड्डा हुआ करता था.
5 साल बनारस में रहते हुए राजगुरु की मुलाकात कई क्रान्तिकारी दलों के सदस्यों से हुई, जिनके सम्पर्क में आने के बाद ये ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन दल’ के सक्रिय सदस्य बने. राजगुरु निशाना बहुत अच्छा लगाते थे इसलिए दल के अन्य सदस्य इन्हें निशानची (गनमैन) भी कहते थे. पार्टी में इनके सबसे घनिष्ट मित्र आज़ाद, भगत सिंह, सुखदेव और जतिनदास थे.
इस दौरान उन्होंने देश की आज़ादी के लिए आज़ाद, भगत सिंह, सुखदेव और जतिनदास के साथ मिलकर कई क्रांतिकारी कदम उठाये. लाला लाजपत राय पर हुए लाठीचार्ज में जब वो शहीद हो गए, तो क्रांतिकारियों ने अपने नेता की मृत्यु का बदला लेने के लिये पुलिस अधीक्षक स्कॉट को मारने की योजना बनाई. योजना के तहत चन्द्रशेखर आज़ाद ने भगत सिंह, राजगुरु और जयगोपाल को इस काम के लिए चुना. जयगोपाल को स्कॉट पर नज़र रखने जबकि भगत सिंह, राजगुरु और जयगोपाल को गोली चलाने के लिए तैनात किया गया.
17 दिसम्बर, 1928 की शाम 7 बजे योजना के मुताबिक़ जयगोपाल लाहौर मॉल रोड चौकी के सामने अपनी साइकिल को ठीक करने का बहाना करते हुए बैठकर स्कॉट का इंतज़ार करने लगे. जयगोपाल से कुछ ही दूरी पर भगत सिंह और राजगुरु निशाना साधे खड़े थे. जैसे ही जयगोपाल ने पुलिस अधिकारी सांडर्स को आते हुए देखा उसने सांडर्स को गलती से स्कॉट समझकर राजगुरु की ओर इशारा किया. इशारा मिलते ही राजगुरु ने एक गोली चलायी जो सीधे जाकर सांडर्स को लगी और वो वहीं ज़मीन पर गिर गए. इसके बाद भगत सिंह ने एक के बाद एक 5-6 गोलियां चलाई और सांडर्स की वहीं पर मौत हो गयी.
सांडर्स को मारने के बाद चारों वहां से फ़रार हो गए. उसी रात सांडर्स को मारकर लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने की सूचना के साथ पूरे शहर में फ़ैल गयी. इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार में खलबली मच गयी. ऐसी स्थिति में जयगोपाल, आज़ाद, भगत और राजगुरु का लाहौर से निकलना मुश्किल था क्योंकि इंस्पेक्टर फ़र्न ने घटना स्थल पर भगत सिंह को पहचान लिया था. किसी तरह चकमा देकर चारों लाहौर से भाग निकले.
राजगुरु सच्चे, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और वतन के लिए खुद को न्यौछावर करने के लिये तैयार रहने वाले क्रांतिकारी थे. सांडर्स की मौत के बाद भी राजगुरु रुके नहीं. असेम्बली बम कांड में बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को गिरफ़्तार कर लिया गया था. सी.आई.डी. अफ़सर शरद केसकर की सूचना पर राजगुरु को भी नागपुर 30 सितम्बर, 1929 में गिरफ़्तार कर लिया गया.
सांडर्स हत्या मामले में पुलिस ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु पर केस चलाया. इस मामले में दोषी पाए जाने पर राजगुरु को भगत सिंह और सुखदेव के साथ 23 मार्च, 1931 को फ़ांसी दे दी गयी और भारत मां का ये वीर सपूत मरकर भी हमेशा के लिए अमर हो गया.