बिहार में बहती गंगा के पूर्वी तट पर बसा है बेगुसराय… बिहार के 38 ज़िलों में से इस ज़िले का नाम आजकल हर तरफ़ सुनने को मिल रहा है. बड़े से बड़ा, छोटे से छोटा, मीडिया का हर तबका पिछले 1 महीने में यहां के चक्कर लगा चुका है.


कारण? जेएनयू के पूर्व प्रेसिडेंट कन्हैया कुमार, सीपीएम के टिकट पर यहां से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. किसी ज़माने में बेगूसराय को ‘बिहार का लेनिनग्राद’ कहा जाता है. कम्यूनिस्ट्स की यहां अच्छी पकड़ है.  

Dainik Bhaskar

जावेद अख़्तर से लेकर स्वरा भास्कर तक, योगेंद्र यादव से लेकर सीताराम येचुरी तक बहुत सी जानी-मानी हस्तियां कन्हैया कुमार की तरफ़ से प्रचार-प्रसार करने पहुंच रही हैं. बेगूसराय ने इतनी भारी मात्रा में जानी-मानी हस्तियां और पत्रकारों की आवा-जाही काफ़ी समय बाद देखी है.


देश के बहुत से लोग शायद यही मान बैठे हैं कि कन्हैया कुमार ने ही बिहार के इस ज़िले को पॉपुलर बनाया है. विकीपीडिया पर बने बेगूसराय के पेज के अनुसार,   

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इस पर सिर्फ़ एक बात कहना उचित होगा, ये ग़लत है. बेगूसराय को पहचान कन्हैया कुमार ने नहीं, रामधारी सिंह दिनकर ने दिलाई थी.  

राष्ट्रकवि दिनकर का जन्म बेगूसराय के सिमरिया में 23 सितंबर 1908 को हुआ था. हिन्दी भाषी- ग़ैर हिन्दी भाषी, दोनों के बीच ही रामधारी सिंह दिनकर प्रसिद्ध थे.  


रामधारी सिंह दिनकर… एक ऐसे कवि जो राजनीति में न होते हुए भी राजनीति के बेहद पास थे. वे राजनीति और जनता दोनों के ही क़रीब थे. उनकी कविता ‘जनतन्त्र का जन्म’ की कुछ पंक्तियां- 

सदियों की ठंडी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है; दो राह,
समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है. 

Veethi

वीर रस से भरी उनकी कविताएं 5वीं-6वीं क्लास की किताबों में पहली बार पढ़ी थी. ‘रश्मिरथी’ के तृतीय सर्ग की ये पंक्तियां सभी को याद होंगी-


है कौन विघ्न ऐसा जग में, 

टिक सके वीर नर के मग में 
खम ठोंक ठेलता है जब नर, 

पर्वत के जाते पांव उखड़. 
मानव जब जोर लगाता है, 

पत्थर पानी बन जाता है.  

Pinterest

आमतौर पर समकालीन कविओं और लेखकों के बीच स्पर्धा रहती है पर राष्ट्रकवि दिनकर अपने समकालीनों के बीच भी उतने ही प्रसिद्ध थे. दिनकर के समकालीन थे हरिवंश राय बच्चन. Quora पर भी ये प्रश्न पूछा गया था कि ‘दिनकर और हरिवंश राय बच्चन में से बेहतर कवि कौन है ?’ Quora वाले भी इसका जवाब नहीं दे पाए.

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BBC

राष्ट्रकवि दिनकर की कई विशेषताओं में से एक यह भी थी कि पाठक उनकी कविताओं से ख़ुद को जोड़कर देखता था. 1933 में पहली बार उन्होंने किसी कवि सम्मेलन में अपनी कविता ‘मेरे नगपति मेरे विशाल’ सुनाया, तो दर्शक बावले हो गए. वही कविता दिनकर ने 4 बार सुनाई.  

Rediff

पंडित नेहरू को वो ‘लोकदेव’ कहकर बुलाते थे. दोनों ही एक दूसरे के बेहद क़रीब थे और उतनी ही ज़ोर से उनकी आलोचना भी करते थे. दिनकर मानव के दुख-दर्द को महसूस कर पाते थे और यही उनकी कविताओं में नज़र आता था. ये कहना ग़लत नहीं होगा कि दिनकर को ‘राष्ट्रकवि’ किसी सरकार ने नहीं, उनके पाठकों ने बनाया.