बिहार में बहती गंगा के पूर्वी तट पर बसा है बेगुसराय… बिहार के 38 ज़िलों में से इस ज़िले का नाम आजकल हर तरफ़ सुनने को मिल रहा है. बड़े से बड़ा, छोटे से छोटा, मीडिया का हर तबका पिछले 1 महीने में यहां के चक्कर लगा चुका है.
जावेद अख़्तर से लेकर स्वरा भास्कर तक, योगेंद्र यादव से लेकर सीताराम येचुरी तक बहुत सी जानी-मानी हस्तियां कन्हैया कुमार की तरफ़ से प्रचार-प्रसार करने पहुंच रही हैं. बेगूसराय ने इतनी भारी मात्रा में जानी-मानी हस्तियां और पत्रकारों की आवा-जाही काफ़ी समय बाद देखी है.
इस पर सिर्फ़ एक बात कहना उचित होगा, ये ग़लत है. बेगूसराय को पहचान कन्हैया कुमार ने नहीं, रामधारी सिंह दिनकर ने दिलाई थी.
राष्ट्रकवि दिनकर का जन्म बेगूसराय के सिमरिया में 23 सितंबर 1908 को हुआ था. हिन्दी भाषी- ग़ैर हिन्दी भाषी, दोनों के बीच ही रामधारी सिंह दिनकर प्रसिद्ध थे.
वीर रस से भरी उनकी कविताएं 5वीं-6वीं क्लास की किताबों में पहली बार पढ़ी थी. ‘रश्मिरथी’ के तृतीय सर्ग की ये पंक्तियां सभी को याद होंगी-
आमतौर पर समकालीन कविओं और लेखकों के बीच स्पर्धा रहती है पर राष्ट्रकवि दिनकर अपने समकालीनों के बीच भी उतने ही प्रसिद्ध थे. दिनकर के समकालीन थे हरिवंश राय बच्चन. Quora पर भी ये प्रश्न पूछा गया था कि ‘दिनकर और हरिवंश राय बच्चन में से बेहतर कवि कौन है ?’ Quora वाले भी इसका जवाब नहीं दे पाए.
राष्ट्रकवि दिनकर की कई विशेषताओं में से एक यह भी थी कि पाठक उनकी कविताओं से ख़ुद को जोड़कर देखता था. 1933 में पहली बार उन्होंने किसी कवि सम्मेलन में अपनी कविता ‘मेरे नगपति मेरे विशाल’ सुनाया, तो दर्शक बावले हो गए. वही कविता दिनकर ने 4 बार सुनाई.
पंडित नेहरू को वो ‘लोकदेव’ कहकर बुलाते थे. दोनों ही एक दूसरे के बेहद क़रीब थे और उतनी ही ज़ोर से उनकी आलोचना भी करते थे. दिनकर मानव के दुख-दर्द को महसूस कर पाते थे और यही उनकी कविताओं में नज़र आता था. ये कहना ग़लत नहीं होगा कि दिनकर को ‘राष्ट्रकवि’ किसी सरकार ने नहीं, उनके पाठकों ने बनाया.