हम सब जानते हैं भारत कितना विविध देश है. ‘दो कोस पर पानी बदले, चार कोस पर बानी’ कहावत हम बचपन से सुनते आ रहे हैं और ऐसा होता भी है. हर त्यौहार भारत के अलग अलग कोने में अलग अलग तरह से मनाया जाता है. आइये जानते हैं पूरे देश में कैसे मनाया जाता है ये खुशियों का पर्व:

कुल्लू का अंतरराष्ट्रीय दशहरा:
हिमाचल प्रदेश में कुल्लू का दशहरा बहुत फ़ेमस है. यहां रथयात्रा और जुलूस निकाला जाता है. देश के साथ विदेश से भी लोग यहां का दशहरा मनाने आते हैं इसलिए इसे ‘अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा’ भी कहते हैं. ऐसा माना जाता है यहां देश दुनिया से 4- 5 लाख लोग जुटते हैं. यहां यात्रा, जुलूस, मेला और रावण दहन होता है.

पंजाब का रावण दहन:
पंजाब में दशहरा के पर्व को नवरात्रि के नौ दिन के रूप में मनाया जाता है. पंजाब के लोग नवरात्रि के दौरान और कई जगहों पर व्रत भी रखते हैं. अष्टमी और नवमी के दिन मां दुर्गा जी की उपासना की जाती है और दशमी के दिन रावण-दहन तथा मेलों का आयोजन होता है.

बस्तर में मां दंतेश्वरी की पूजा:
छत्तीसगढ़ में दशहरा एकदम अलग तरह से मनाया जाता है. यहां के लोग मां दंतेश्वरी की आराधना को समर्पित एक पर्व मानते हैं. दंतेश्वरी माता बस्तर की आराध्य देवी हैं, जो दुर्गा का ही रूप हैं. यह त्यौहार 75 दिन तक चलता है.

पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा:
पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा के बारे में कौन नहीं जानता होगा. यह त्यौहार पश्चिम बंगाल को अलग पहचान देता है. देवी की मूर्तियों के साथ अलग-अलग थीम पर पंडाल बनाये जाते हैं. दुर्गा पूजा में लोगों का उत्साह देखते ही बनता है. इस त्यौहार के समय पूरा राज्य बदल जाता है.

कर्नाटक में जगमागता मैसूर पैलेस:
कर्नाटक के मैसूर शहर में शाही दशहरा मनाया जाता है. शहर की पहचान मैसूर पैलेस की रौनक उस दिन देखने लायक होती है. दशहरे के ख़ास अवसर पर पूरा महल रोशनी से जगमगा जाता है. इसके साथ ही एक भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है. इसे जम्बू सवारी भी कहा जाता है. इस यात्रा को देखने के लिए देश-विदर्श से लोग आते है.

गुजरात में गरबा की धूम:
गुजरात में दशहरा के दिन गरबा खेला जाता है. गरबा इस त्यौहार की शान है. नवरात्रि से ही त्यौहार शुरू हो जाता है जो 10 दिन चलता है. सभी लोग रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर उत्सव में शामिल होते हैं.

दिल्ली की राम-लीला:
दशहरा मनाने में देश की राजधानी पीछे नहीं है. दिल्ली में मंदिरों और घरों को लोग सजाते हैं. रावण के साथ साथ मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले शहर भर में जलाये जाते हैं. यहां की राम-लीला सबसे ख़ास होती है. इस राम-लीला में बड़े-बड़े कलाकार भाग लेते हैं. त्यौहार के दौरान दिल्ली में रामायण का नाटकीय संस्करण देखना एक अलग ही अनुभव होता है.

तरीके सब जगह के अलग अलग हो सकते हैं मगर जो एक चीज़ सबके एक जैसी ही है उल्लास, ख़ुशी और सबके साथ होने का सुख.