अख़बार के पेज पलटने पर सिर्फ़ नफ़रतों की स्याही में छपी ख़बरें ही दिखती हैं. शायद इसलिये आजकल ख़ुशबूदार अख़बार भी छपने लगे हैं. पर अगर सिर्फ़ नफ़रतों से भरी होती दुनिया तो जनाब अब तक हम पृथ्वी छोड़ किसी और ग्रह की ओर रवाना हो गए होते.
सौहार्द की अनूठी मिसाल की ख़बर आई है धरती के स्वर्ग, कश्मीर से. जी वही कश्मीर जिसका नाम भर लेने से मेट्रो और बसों में कई जोड़ी नज़रें आपकी ओर हो जाती हैं.
कश्मीर में 121 साल पुराने चर्च की घंटी को हर धर्म के लोगों ने एक साथ बजाया है.
मौलाना आज़ाद रोड पर स्थित इस चर्च को 1896 में Reverend Father Winkley M.H.M ने स्थापित करवाया था. 1967 के Arson Attack में इस चर्च ने अपनी घंटी गंवा दी थी. अब 50 साल बाद इस चर्च में Bell बजी. 105 किलोग्राम के इस घंटी को हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हर मज़हब के प्रतिनिधि ने बजाया. इस घंटी को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद ज़िले से लाया गया था. Parish पादरी Roy Mathews ने इस समारोह की अगुवाई की, वहीं Father Sebastian Nagathungal ने घंटी को आशीष दिए. 29 अक्टूबर, रविवार को इसका उद्घाटन किया गया.
पहले इस चर्च में अंग्रेज़ या डच पादरी हुआ करते थे अब इस चर्च का कार्यभार केरल के Capuchin Missionaries के ऊपर है. ये चर्च 42 अन्य चर्चों, 36 शिक्षा संस्थानों और अस्पतालों को Manage करता है. कश्मीर के दूर दराज के इलाकों में भी ये सेवा पहुंचाता है.
इस चर्च ने एक स्टेटमेंट भी जारी किया,
हर मज़हब के लोगों का इस सभा में मौजूदगी से कश्मीर का ये चर्च सभी लोगों के सामने अपनी खुशी ज़ाहिर करना चाहता है. हम पूरी मानव जाति को ये संदेश देना चाहते हैं कि हम सब एक हैं और Minority और Majority तो सिर्फ़ एक संख्या है. समरसता ही जीवन का मूल सत्य है.
इस Event के आयोजकों में से एक Sydney Mark Rath ने The Wire को बताया,
हमारा मकसद सिर्फ़ हर मज़हब के लोगों के साथ अपनी खुशी बांटना था. हमारी संख्या भले कम हो पर हैं तो हम भी कश्मीरी. हम सभी मिल-जुलकर और भाईचारे के साथ रहते हैं.
मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व कर रहे मंज़ूर अहमद मलिक ने कहा,
हम पूरी दुनिया को अमन और सांप्रदायिक एकता का संदेश देना चाहते हैं. दुनिया को कश्मीर और कश्मीरियों के बारे में बहुत सारी ग़लतफहमियां हैं. राजनेताओं को वादी के लोगों को तोड़ने की कोशिशें बंद करनी चाहिए. यहां सालों से हर मज़हब के लोग भाईचारे के साथ रह रहे हैं. हम भी चाहते हैं कि कश्मीरी पंडित वापस आ जाएं और हम पहले की तरह एकसाथ रहें. जिन कश्मीरी पंडितों ने घाटी को अलविदा नहीं कहा था वो आज भी हमारे साथ ही रह रहे हैं.
पिछले साल इस चर्च ने क्रिस्मस भी अच्छे से नहीं मनाया था क्योंकि लगभग 90 लोगों को मौत हो गई थी.
नफ़रतों के दौर में ये छोटा सा उदाहरण किसी मरहम से कम नहीं है. उम्मीद है दुनिया में अमन और शांति बनी रहेगी.