बाल श्रमिकों को अगर वक़्त पर बचा लिया जाए तो वो आगे चलकर देश की तरक्की में अपना योगदान दे सकते हैं. ऐसे ही दो बाल श्रमिकों की कहानी आज हम बताएंगे, जिन्हें कई साल पहले बाल मज़दूरी के दलदल से निकाला गया था. आज इनमें से एक साइंटिस्ट तो दूसरा कलेक्टर बनने की तैयारी कर रहा है.
पहले बात करते हैं एस. धारनी की जिन्होंने 12वीं की परीक्षा 378 अंकों से पास की है. एक दशक पहले इन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि वो प्राथमिक शिक्षा भी हासिल कर पाएंगी. धारनी एक हथकरघा बाल मज़दूर थीं, जिन्हें National Child Labour Project (NCLP) के कुछ स्वयंसेवकों ने बचाया था.
धारनी का जन्म एक ग़रीब परिवार में हुआ था. तमिलनाडु के मेलापुरम पुड्डर में उनके परिवार वाले बुनकर थे. 8 साल की उम्र में उन्हें भी मजबूरन बाल मज़दूर बनना पड़ा. NCLP के लोग उन्हें वहां से निकाला और उनका दाखिला एक स्कूल में करवा दिया था.
धारनी कहती हैं- ‘मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं किसी स्कूल में जाऊंगी. उस स्पेशल स्कूल में पढ़ने में मुझे कई दिक्कतें हुई लेकिन मैंने हार नहीं मानी. अब मैंने 12वीं की परीक्षा पास कर ली है. मेरा सपना है कि मैं एक कलेक्टर बनूं. उससे पहले मैं कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग करना चाहती हूं.’
दूसरी कहानी है एस. ई. गोकुल की. इन्हें साल 2014 में एक बीड़ी फ़ैक्टरी में बाल मज़दूर के रूप में बचाया गया था. इन्होंने 12वीं की परीक्षा में 389 अंक प्राप्त किए हैं. इनका सपना है कि वो एक एस्ट्रोनॉट बने.
गोकुल ने कहा- ‘मैंने जब चलना भी नहीं सीखा था तब मेरे पिता का देहांत हो गया था. मेरी दीदी और मां चाची के यहां रहती थीं. मैंने छोटी उम्र से ही बीड़ी की फ़ैक्टरी में काम करना शुरू कर दिया था.’
NCLP के प्रोजेक्ट मैनेजर एम. राजा पंडियन ने बताया कि गोकुल के साथ तमिलनाडु के पेरनामबट इलाके से 19 और बाल मज़दूरों को रेस्क्यू किया गया था. इनमें से 17 बच्चों ने इस साल 12वीं की परीक्षा पास कर ली है. उनका मानना है कि छोटे-छोटे कदम उठा कर ही बड़े लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है. ये 17 बच्चे बाल मज़दूरी को जड़ से मिटाने की ओर वही छोटे कदम हैं.
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