ये दुनिया बेहद बड़ी है और इस दुनिया में रहने वाले कुछ लोगों का ईगो उससे भी बड़ा है. लेकिन इसी दुनिया में कुछ ऐसी चीज़ें भी होती हैं, जो अमीर-गरीब, बड़े-छोटे, पतले-मोटे, सबके बीच का अंतर मिटा देती हैं.

इनमें से एक होता है हमारा रोज़ाना का ही एक महत्वपूर्ण काम यानि…

जब से मनुष्यों ने इस धरती पर कदम रखा है, उसके बाद से ही भारतीय स्टाइल में ही शौच की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता रहा. लेकिन पिछले कुछ सालों में तकनीक ने हर चीज़ को सुविधाजनक बनाने की कोशिश की है. ग्लोबलाइज़ेशन के इस दौर में कई चीज़ों का आधुनिकरण और पश्चिमी सभ्यता के कई तौर तरीकों को अपनाया जाने लगा और इससे अपना टॉयलेट भी अछूता नहीं रहा.

Always learning, always growing. 🚽#洋式 #westerntoilet

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16वीं शताब्दी के आसपास राजा-महाराजाओं के लिए फ़्लश टॉयलेट्स का निर्माण हुआ था. इन टॉयलेट्स का इस्तेमाल उस समय शानोशौकत भरा माना जाता था. इसके अलावा राजाओं को ये तरीका एक राजगद्दी पर बैठने का एहसास दिलाता और मानसिक तौर पर एक Superior Complexity से भर देता था.

Never sat on this much gold before #goldentoilet

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उस समय तक ज़्यादातर लोगों के पास शौचालय की सुविधा नहीं होती थी. पश्चिमी टॉयलेट्स का चलन 19वीं शताब्दी तक आते-आते काफ़ी मशहूर हो चला था, लेकिन इसका इस्तेमाल करने वाले कई लोगों में कब्ज़, आंत्र रोग, बवासीर की बीमारियों की शिकायतें सामने आने लगीं.

हालांकि इन बीमारियों में काफ़ी हद तक आपकी डाइट, लाइफ़स्टाइल और स्ट्रेस लेवल मायने रखता है, लेकिन रिसर्चर्स का कहना है कि बैठने के अंदाज़ से भी कुछ बीमारियों को बढ़ावा मिलता है. पश्चिमी टॉयलेट्स का इस्तेमाल Rectum पर अनचाहा दबाव डालता है.

हालांकि कुछ पश्चिमी देश आखिरकार भारतीय टॉयलेट्स की अहमियत को समझ पा रहे हैं. कई देशों में स्टूल को एक ‘वाशरूम लक्ज़री’ के तौर पर मार्केट में प्रमोट भी किया जा रहा है.

भारतीय स्टाइल में बैठने को ‘स्क्वाटिंग’ कहा जाता है. इस पोज़िशन में बैठने से शरीर के टिशुज़ की सफ़ाई की प्रक्रिया तेज़ हो जाती है. पश्चिमी तरीके की तुलना में कम से कम बाहरी चीज़ों की ज़रुरत पड़ती है. 

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इसके अलावा भारतीय टॉयलेट्स पश्चिमी टॉयलेट्स की तुलना में ईको-फ्रेंडली होते हैं. टॉयलेट पेपर की बचत के साथ-साथ पानी भी कम इस्तेमाल होता है. साइंस ने भी ये साबित किया है कि जो लोग पश्चिमी टॉयलेट्स का इस्तेमाल करते हैं उन्हें आंत्र रोग होने की संभावना ज़्यादा होती है.

ज़ाहिर है विविधताओं से भरी इस दुनिया में सभी लोगों द्वारा एक ही अंदाज़ में एक महत्वपूर्ण गतिविधि की जा रही हो, ऐसा मुमकिन नहीं है. लेकिन कौन सा तरीका लोगों के लिए बेहतर है, इसका विश्लेषण तो किया ही जा सकता है.