साहिर लुधियानवी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. करोड़ों लोग, हज़ारों बार, हर रोज़ रेडियो पर उनका नाम सुनते हैं. जब तक दुनिया में गीतों को जीने वाले लोग रहेंगे, जब तक ख़ूबसूरत अल्फ़ाज़ों पर मर-मर जाने वाले लोग रहेंगे, तब तक इस अमर शायर और गीतकार का नाम यूं ही गूंजता रहेगा. जब तक लोग इश्क़ करते रहेंगे, अधूरे इश्क़ में तड़पते रहेंगे, मयस्सर न हो सकी मोहब्बत के गम में उनके साथी बनते रहेंगे साहिर के गीत.

साहिर पहले गीतकार थे, जिन्हें अपने गानों के लिए रॉयल्टी मिलती थी. ये उन्हीं का प्रयास था कि आकाशवाणी पर गानों के प्रसारण के समय गायक तथा संगीतकार के साथ गीतकार का भी नाम लिया जाने लगा. इससे पहले तक गानों के प्रसारण समय सिर्फ गायक और संगीतकार का नाम ही उद्घोषित होता था. हिंदी फ़िल्मों के सभी गीतगार इस काम के लिए उनके ऋणी रहेंगे.

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दर्द, ख़ूबसूरती, कसक के शायर, साहिर लुधियानवी उन चुनिंदा शायरों में से हैं, जिन्होंने फ़िल्मी गीतों को तुकबंदी से आगे बढ़ा कर ख़ूबसूरत शेरों-शायरी तक पहुंचाया. वो पहले ऐसे गीतकार थे, जिसके लिखे गीतों पर संगीतकारों ने धुनें बनायीं. उनका कहना था कि अगर गीत सामने नहीं हो, तो उसकी धुन नहीं बनाई जा सकती और न ही उसे गाया जा सकता है, इसलिए वह निर्माताओं से अपने गानों के लिए लता मंगेशकर से एक रुपया ज़्यादा लिया करते थे. उन्होंने संगीतकार और गायक के दर्जे से गीतकार को ऊंचा मानते हुए ज़्यादा पारिश्रमिक दिए जाने की मांग की थी.

ये हैं उनकी लिखी हुई कुछ चुनिंदा नज़्में:

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