महान सम्राट समुद्रगुप्त ‘गुप्त राजवंश’ के चौथे राजा चन्द्रगुप्त प्रथम के पुत्र थे. समुद्रगुप्त को इतिहास का सबसे सफ़ल सम्राट माना जाता है. समुद्रगुप्त ‘गुप्त राजवंश’ के चौथे शासक थे, उनके शासनकाल को भारत के लिये स्वर्णयुग की शुरूआत भी कहा जाता है. 

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महान शासक समुद्रगुप्त का जन्म कब और कहां हुआ था इसके कोई पुख्ता सबूत तो नहीं हैं, लेकिन इतिहास के पन्नों में उनके शासन काल का जिक्र ज़रूर मिलता है, जोकि 330-380 ई. के आसपास बताया जाता है. कहा जाता है कि उस दौर में पाटलिपुत्र उनके साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी. 

समुद्रगुप्त बचपन से ही बेहद बुद्धिमान व कुशाग्र थे. किशोरावस्था तक उनके अंदर राजा के सारे गुण आ गए थे, यही कारण था कि उनके पिता चंद्रगुप्त ने अपने अन्य बेटों में से सिर्फ़ उन्हें ही अपना उत्तराधिकारी चुना. लेकिन चंद्रगुप्त के अन्य बेटों को ये बात पसंद नहीं आई और उन्होंने समुद्रगुप्त का विरोध करना शुरू कर दिया. यहां तक कि उन्होंने अपने ही छोटे भाई के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ दिया. 

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कई इतिहासकारों का कहना है कि चंद्रगुप्त की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार के लिये संघर्ष हुआ जिसमें समुद्रगुप्त एक प्रबल दावेदार बन कर उभरे. कहा तो ये भी जाता है कि समुद्रगुप्त ने शासन पाने के लिये अपने प्रतिद्वंद्वी बड़े भाई राजकुमार काछा को हराकर पाटलिपुत्र के सम्राट बने थे.   

इस गृहकलह को शांत करने में समुद्रगुप्त को करीब 1 वर्ष का समय लगा. इसके बाद उन्होंने ‘दिग्विजययात्रा’ की. उनकी इस यात्रा का वर्णन प्रयाग में अशोक मौर्य के स्तंभ पर खुदा हुआ है. भारत जीतने के लिए चलाए गए उनके अधिकतर अभियान हर क्षेत्र में कामयाब रहे. अपने पहले ‘आर्यावर्त युद्ध’ में उन्होंने अपने विरोधी तीन राजाओं को हराकर सभी को हैरान कर दिया था. 

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इस दौरान समय बीतता गया समुद्रगुप्त अपने रणकौशल से छोटे-छोटे राज्यों को जीतकर अपने साम्राज्य को बढ़ाते चले गए. इसके बाद उन्होंने ‘दक्षिणापथ’ के युद्ध में दक्षिण के बारह राजाओं को चित्त कर 12 राज्यों पर विजय प्राप्त की. इस युद्ध की ख़ास बात ये थी कि वो चाहते तो हारे हुए राजाओं को मार सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. 

कुछ ही सालों में समुद्रगुप्त का साम्राज्य पश्चिम में गांधार से लेकर पूर्व में आसाम तक, जबकि उत्तर में हिमालय के कीर्तिपुर जनपद से लेकर दक्षिण में सिंहल तक फैल गया. इस दौरान उन्होंने सिर्फ़ युद्ध ही नहीं जीते, बल्कि कई नष्टप्राय जनपदों का पुनरुद्धार भी किया. ब्राह्मणों, दीनों, अनाथों को अपार दान दिया, जिस कारण देशभर में उनका ही गुणगान होने लगा. अपने इन्हीं कार्यों के चलते समुद्रगुप्त ने पूरे भारतवर्ष में अपना शासन स्थापित कर लिया था. इस दौरान वो एक भी युद्ध नहीं हारे. 

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समुद्रगुप्त भारत का ‘नेपोलियन’ 

प्रसिद्ध इतिहासकार विंसेंट स्मिथ ने तो समुद्रगुप्त की प्रशंसा में उन्हें भारत का नेपोलियन तक कह दिया था. लेकिन इतिहासकार डॉ. आयंगर विंसेंट स्मिथ की इस बात से इतने आहत हुए कि उन्होंने तर्क के साथ इसके विरोध में कहा कि नेपोलियन सत्ता का भूखा था. उसकी नीतियां कई मामलों में प्रत्येक जनता के हित में नहीं थीं. जबकि सम्राट समुद्रगुप्त एक महान शासक होने के साथ-साथ आम जनता से प्रेम करने वाले और कला प्रेमी भी थे. सम्राट समुद्रगुप्त की किसी भी युद्ध में पराजय नहीं हुई, जबकि नेपोलियन बोनापार्ट ‘वाटर लू’ के युद्ध में हार गया था. 

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योद्धा ही नहीं शानदार आर्टिस्ट भी थे 

समुद्रगुप्त को सिर्फ़ एक महान योद्धा समझते हैं वालों को बता दें कि, समुद्रगुप्त वीणा बजाने में भी माहिर थे वो काफ़ी अच्छे संगीतकार थे. उनके द्वारा बनवाए गए कई सिक्कों में इसकी झलक देखने को मिलती है. इसके अलावा वो एक कवि के रूप में विख्यात रहे. उस दौर में उन्हें कवियों का राजा भी कहा जाता था. 

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भारत में मुद्रा का श्रेय भी समुद्रगुप्त को ही जाता है. वो शुद्ध स्वर्ण व उच्चकोटि की ताम्र मुद्राओं को प्रचलन में लाए थे. अपने शासनकाल में उन्होंने 7 प्रकार के सिक्के बनवाए थे जिन्हें आर्चर, बैकल एक्स, अश्वमेघ, टाइगर स्लेयर, राजा-रानी और लयरिस्ट नामों से जाने गए. 

अपने पूरे शासनकाल में एक भी युद्ध न हारने वाले समुद्रगुप्त को इसीलिए महान सम्राट कहा जाता है.