दिन-रात काम करके वो थक चुकी है. वो रुकना चाहती है, ठहरना चाहती, पर रुक नहीं सकती, क्योंकि अगर वो रुक गई तो कई लोगों की ज़िंदगी रुक जायेगी. हम बात कर रहे हैं 72 वर्षीय सरोजनी अम्मा की, जो पिछले 55 वर्षों से लोगों को अपने हाथों का खाना खिला रही हैं. सरोजनी अम्मा केरल के Chalappuram की रहने वाली हैं. अम्मा की दिनचर्या रात 2 बजे से शुरू होती है.
क्या है अम्मा की कहानी?

एक इंटरव्यू के दौरान अम्मा ने बताया कि उनका बचपन एक ग़रीब परिवार में गुज़रा है. 17 साल की उम्र से उन्होंने घर-घर जाकर काम करना शुरू कर दिया, ताकि ज़िंदगी गुजर-बसर की जा सके. पति की मौत के बाद घर की आर्थिक स्थिति और ख़राब हो गई, जिसके चलते घर-घर काम करना उनकी मजबूरी बन गया. सरोजनी अम्मा के दो बेटे भी हैं, उनमें से बड़ा बेटा नौकरी करता था, पर किस्मत देखिये कुछ साल पहले ही उसका एक्सीडेंट हुआ और वो बेड पर आ गया. हालात के हाथों मजबूर और बेटे की देख-रेख करने के लिये इन अम्मा ने लोगों तक अपने हाथ का खाना पहुंचाना शुरू किया.

अम्मा कहती हैं, ‘मैं 20 साल पहले यहां आई थी. मैं अपने नियोक्ता विजयकुमार की शुक्रगुज़ार हूं, जिन्होंने मेरे पड़ोसी के कहने पर काम करने की अनुमति दी. बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो अपने घर की सुविधाओं का उपयोग करने देते हैं. मुझे यक़ीन है कि मैं उन्हें कोई परेशानी नहीं पहुंचाउंगी.’

इसके अलावा वो उस ऑटोवाले की भी शुक्रगुज़ार हैं, जो उन्हें टिफ़िन लोगों तक पहुंचाने में मदद करता है. अम्मा रात 2 में बजे उठ जाती हैं. 3 बजे तक स्नान करके खाना बनाना शुरू कर देती हैं. 8 बजे डिलीवरी के लिये निकल जाती हैं और 9 बजे तक डिलीवरी पूरी भी कर देती हैं. अम्मा की पूरी कोशिश रहती है कि टिफ़िन ग्राहकों तक समय से पहुंचे.

इसलिये सुबह का काम ख़त्म करके वो 5.30 बजे तक शाम के खाने की तैयार शुरू कर देती हैं. पिछले 4 वर्षों से अम्मा ने एक भी दिन की छुट्टी नहीं ली है और वो ओणम जैसे त्योहारों में भी लोगों तक खाना पहुंचाती हैं. अम्मा कहती हैं कि जब लोग उनके खाने की तारीफ़ करते हैं, तो उन्हें बेहद ख़ुशी मिलती है. अम्मा कहती हैं कि वो थक गई हैं, पर रुक नहीं सकती हैं, क्योंकि कई लोग उनपर निर्भर हैं. जब तक वो गिर नहीं जाती, वो नहीं रुकेंगी.
आज के उन युवाओं के लिये अम्मा प्रेरणा हैं, जो कहते हैं कि कुछ करने की उम्र कहां रही!