अब इस घर की आबादी मेहमानों पर है
कोई आ जाए तो वक़्त गुज़र जाता है
सहज, सरल और पलभर में दिल में घर कर लेने वाले लफ़्ज़, यही हैं ज़ेहरा निगाह की शायरियां. दुनियाभर में फैल रही नफ़रतों से कुछ पलों का सुकून हर किसी की ज़रूरत है, कुछ लोग ये सुकून इंस्टाग्राम और स्नैपचैट फ़िल्टर्स में ढूंढते हैं. और कुछ शख्सियतें ये सुकून दूसरों में क़लम के ज़रिये बांटते हैं. उन चुनींदा शख़्सियों में से एक हैं ज़ेहरा निगाह.
ज़ेहरा का जन्म आज़ादी से पहले, हैदराबाद में हुआ. विभाजन के बाद, ज़ेहरा का परिवार पाकिस्तान चला गया, उस वक़्त ज़ेहरा 10 साल की थीं. ज़ेहरा के पिता सरकारी नौकरी करते थे और उन्हें शायरी में दिलचस्पी थी.
बचपन से ही ज़ेहरा ने काग़ज़, क़लम और लफ़्ज़ों से दोस्ती कर ली थी. मशहूर शायरों के अल्फ़ाज़ ज़ेहरा ने दिल में उतार लिए और उन्हें क्लासिकल उर्दू शायरी से काफ़ी प्रेरणा मिली.
आज नज़र करते हैं ज़ेहरा के कुछ शेर-


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