मगरमच्छ का नाम सुनते ही अच्छे-अच्छे इंसान की हालत ख़राब होने लगती है, लेकिन श्योपुर तहसील के तीन गांव ऐसे हैं, जहां के ग्रामीण अपनी जान जोख़िम में डालकर मगरमच्छ के सामने से पानी भरते हैं.
दलारना, ईचनाखेड़ली और मलारना गांव के लोगों की सुबह आम लोगों की तरह नहीं होती. सुबह के 8 बजते ही गांव के लोग इकठ्ठा होकर, कुल्हाड़ी और लाठियों के साथ पार्वती नदी के किनारे, अपनी जान ख़तरे में डालकर मगरमच्छ और घड़ियाल को भगाने की जद्दोजहद में जुट जाते हैं. बेबस ग्रामीण ये काम पैसा कमाने के लिए नहीं, बल्कि नदी से पीने का पानी लेने के लिए कर हैं.
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दरअसल श्योपुर तहसील के ग्रामीणों का कहना है कि कुंए और हैंडपंप से निकलने वाला खारा पानी पीने लायक नहीं होता है, इसीलिए नदी किनारे जाकर मगरमच्छ और घड़ियाल को भगा कर, वहां से पानी लाना पड़ता है. इस कारण अबतक मगरमच्छ कई ग्रामीणों को अपना शिकार बना चुके हैं.
ईचनाखेड़ली निवासी जगीबाई के मुताबिक, ‘घड़ियाल सेंक्चुरी के अफ़सर ग्रामीणों को नदी किनारे न जानें की चेतावनी भी दे चुके हैं. चुनावी माहौल में नेताओं ने पाइप लाइन बिछाने का वादा किया लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ.’
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मामले में दलारना के सरपंच मांगीलाल गुर्जर का कहना है कि ‘दलारना-मलारना गांव के लिए हनुमान मंदिर के पास बोर है, उससे ग्रामीण पानी लेते हैं. ईचनाखेड़ली गांव में पीने के पानी का संकट है, वहां के लोग पानी लेने के लिए नदी में जाते हैं. जल्द ही इस गांव में नलजल योजना का काम करवाया जाएगा.’
सच में मजबूरी इंसान से क्या-क्या नहीं करवाती. पानी के लिए हर दिन अपनी ज़िंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं ये ग्रामीण और तमाशाबीन बनी है सरकार.